रायपुर: आज दुनिया भर में पत्रकारों की सुरक्षा चिंता का विषय बना हुआ है. जिस तेजी से संचार के माध्यम बढ़ रहे हैं उसी तेजी से पत्रकार भी कहीं ना कहीं निशाने पर आ रहे हैं.
विश्वभर के कई देशों में हालात इतने बिगड़ गए हैं कि वहां स्वतंत्र पत्रकारिता करना आसान काम नहीं रहा. पत्रकार खौफ के साये में रहकर अपना काम कर रहे हैं. बात अगर भारत की, की जाए तो कई राज्यों में पत्रकार सुरक्षा अधिनियम लागू करने की मांग कर रहे है. इनमें हमारा राज्य छत्तीसगढ़ भी शामिल है. जहां इस तरह के कानून बनाए जाने की बात कही जा रही है.
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की हालत
छत्तीसगढ़ एक नक्सल प्रभावित राज्य है. जाहिर सी बात है कि यहां पत्रकारिता करना किसी चुनौती से कम नहीं है. खासतौर पर बस्तर की बात की जाए तो वहां पत्रकार कई बार मुखबिर मान लिए जाते हैं और लाल आतंक का निशाना बन जाते हैं. सरकारी महकमा भी कई बार उन्हें संदेह भरी निगाह से देखता है. इन दोनों स्थितियों में पत्रकार की सुरक्षा दांव पर लगी होती है. इसी सुरक्षा की चिंता में बस्तर के अंदरूनी हालात कई बार आम जनता के सामने नहीं आ पाते क्योंकि वहां जाकर रिपोर्टिंग करना सीधा-सीधा अपने सुरक्षा को खतरे में डालने वाली बात है.
इस सबके बीच ये सवाल उठना लाजमी है कि आखिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता के सिपाहियों को कब तक यूं ही डर के साये में अपना काम करना पड़ेगा. अगर ऐसे ही हालात बने रहे तो पत्रकारिता कैसे चौथे स्तंभ की भूमिका निभा पाएगा.
फोन टैपिंग के मामले बढ़े
हाल ही में पत्रकारों के फोन टैपिंग कराए जाने का मामला सामने आया है. इनमें छत्तीसगढ़ के भी कुछ पत्रकार शामिल हैं. इसको लेकर भी पत्रकारिता जगत में चिंता के बादल छाए हुए हैं.
2 नवंबर को ही क्यों मनाते हैं ये दिन
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2013 में हर साल 2 नवंबर को ये खास दिन मनाने की घोषणा की थी. महासभा में पास किए गए प्रस्ताव में सभी सदस्यों से पत्रकारों के खिलाफ किए गए अपराध से दंड मुक्ति खत्म करने का आह्वान किया गया.
दो पत्रकारों की हुई थी हत्या
इस दिन को 2 नवंबर को ही मनाए जाने के पीछे एक वजह है. फ्रांस के दो रेडियो पत्रकार क्लाउदे वेरलोन और गिसिलेन दुपोंत को अफ्रीका के नॉर्थ माली से अपहरण करने के बाद हत्या कर दी गई थी. इन दोनों पत्रकारों के याद में भी इस दिन को इंटरनेशनल डे टू एंड इंप्युनिटी फॉर क्राइम अगेंस्ट जर्नलिस्ट के रूप में मनाया जाता है.
700 से ज्यादा पत्रकारों की हो चुकी है हत्या
संयुक्त राष्ट्र के मुताबक पिछले एक दशक में दुनिया भर में 700 से ज्यादा पत्रकार अपने ड्यूटी के दौरान मारे जा चुके हैं. हालांकि इनमें दूरदराज होने वाली घटनाओं के आंकड़े शामिल नहीं हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में पत्रकारिता करना कितनी बड़ी चुनौती बनती जा रही है.