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SPECIAL: लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 हो या 21? जानिए छत्तीसगढ़ की बेटियों और समाज के लोगों की राय

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Published : Sep 10, 2020, 6:33 PM IST

Updated : Sep 15, 2020, 5:41 PM IST

केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने पर विचार कर रही है. ETV भारत ने इस मुद्दे पर शहरी और ग्रामीण अंचल की लड़कियों से राय जानी. सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोगों से भी बातचीत की गई. सभी का कहना है कि शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने से लड़कियों का भविष्य संवरेगा.

chhattisgarh girls reaction on marriage age
फाइल फोटो

रायपुर: भारत में लड़कों के लिए शादी करने की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 वर्ष है. बाल विवाह रोकथाम कानून 2006 के तहत इससे कम उम्र में शादी गैरकानूनी है. ऐसा करने पर 2 साल की सजा और 1 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है. अब सरकार लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र की सीमा बढ़ाकर 21 वर्ष करने पर विचार कर रही है. सितंबर महीने में शुरू होने वाले मानसून सत्र में केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाने को लेकर बिल ला सकती है.

जानिए छत्तीसगढ़ की बेटियों और समाज के लोगों की राय

1978 में शारदा अधिनियम में संशोधन के बाद लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी. बाल विवाह अधिनियम के मुताबिक भारत में शादी के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए, लेकिन अब लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाया जा सकता है. ETV भारत ने इस मुद्दे को लेकर शहरी और ग्रामीण अंचलों की लड़कियों से उनकी राय जानी.

शादी की उम्र 21 साल करने को लेकर लड़कियों में खुशी

शहर और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियां शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने की बात से खुश नजर आ रहीं हैं. वे कहती हैं कि ज्यादातर ग्रामीण अंचलों में लड़कियों की शादी समय से पहले ही कर दी जाती है, जिससे उन्हें कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है. उन्हें इतनी समझदारी नहीं होती की शादी के बाद घर-परिवार को कैसे संभाला जाए. 18 साल तक की लड़कियों में ज्यादातर बचपना होता है, वह खुद के बारे में भी ठीक से नहीं सोच पातीं. जल्द शादी करने से उन्हें पढ़ाई करने का मौका भी नहीं मिल पाता.

लड़कियां कहती हैं कि अब पहले जैसा जमाना नहीं रह गया, जब लड़कियां घरों में रहकर अपनी पूरी जिंदगी गुजार देती थीं. अब हर क्षेत्र में लड़कियां आगे बढ़ रहीं हैं. आज हर लड़की गोल-ओरिएंटेड हैं. सरकार का यह फैसला लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में कारगर साबित होगा. लड़कियां भविष्य में कुछ बनना चाहती हैं, कुछ हासिल करना चाहती हैं, उनके लिए यह बिल काफी मददगार साबित होगा.

लड़कियों की साक्षरता दर में होगी वृद्धि

सामाजिक कार्यकर्ता वर्णिका शर्मा कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का यह निर्णय सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक तीनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित होगा और निर्णायक भूमिका अदा करेगा.

वर्णिका शर्मा के मुताबिक 18 साल के बाद की आयु तेजी से तर्कशक्ति के विकास की आयु होती है. PSC और UPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया भी स्नातक रखा गया है. क्योंकि पूरे ग्रेजुएशन के दौरान कोई भी लड़की परिस्थितियों को लेकर अपनी समझदारी विकसित कर रही होती है. इस बीच लड़कियां सामंजस्य बैठाना भी बेहतर तरीके से सीख जाती हैं.

वर्णिका शर्मा यह भी कहती हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में लड़कियों की शादी की न्युनतम उम्र अगर 21 साल कर दी जाती है तो यह समूचित साबित होगी. यह पहल ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की साक्षरता दर को भी बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित होगी.

'21 साल की उम्र में लड़कियों की आत्मनिर्भरता ज्यादा होती है'

सिंधु महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कन्हैया छुगानी कहते हैं कि 21 साल की उम्र में लड़कियों की आत्मनिर्भरता ज्यादा होती है. अगर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 कर दी जाती है तो लड़कियां ज्यादा शिक्षित होंगी. जब लड़कियां शिक्षित होंगी, तो वे अपने आने वाले बच्चों को भविष्य में अच्छी शिक्षा दे पाएंगी. एक बेहतर जीवन जीने के लिए आज के दौर में लड़कियों का पढ़ा-लिखा होना बेहद जरूरी है.

'बदल चुकी है लोगों की सोच'

राजधानी रायपुर के अग्रवाल समाज के प्रतीक अग्रवाल और साहू समाज के अनिल साहू का कहना है कि केंद्र सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य होगा. इससे न सिर्फ लड़कियों को अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका मिलेगा, बल्कि वे भविष्य में बेहतर करियर बनाकर सफलता हासिल कर सकती हैं. पहले के जमाने में लड़कियों को लेकर बंधन हुआ करते थे. लड़कियां घर से बाहर नहीं निकलती थीं. 12वीं तक पढ़ाई कर लेना ही तब बहुत बड़ी बात होती थी. लेकिन आज सब एडवांस हो चुका है. लोगों की सोच में काफी बदलाव आए हैं. लड़कियों को शारीरिक रूप से भी मजबूती मिलेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि लड़कियों को वैवाहिक दुष्कर्म से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध घोषित कर देना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शादी की न्यूनतम आयु पर फैसला लेने का निर्णय केंद्र सरकार पर छोड़ दिया था. कोर्ट के दिशा-निर्देश का पालन करते हुए मोदी सरकार इस पर विचार कर रही है.

लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने के फायदे

  • पढ़ाई पूरी करने का मौका मिलेगा.
  • ग्रेजुएट होने के साथ ही भविष्य के लिए बेहतर सोच पाएंगी.
  • शारीरिक और मानसिक रूप से मैच्योर होने के लिए समय मिलेगा.
  • जब पढ़ी-लिखी लड़की मां बनेगी तो आने वाली पीढ़ी भी का भविष्य भी बेहतर होगा.
  • शादी को लेकर अपना मन बना पाएंगी और घर-परिवार को बेहतर समझेंगी.

विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ

  • हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 5(III) में लड़कियों के लिए 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल की आयु सीमा शादी के लिए तय है.
  • इस्लाम में बच्चे को यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही शादी के योग्य मान लिया जाता है.
  • स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 भी लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की न्यूनतम आयु को शादी की उम्र की मान्यता देता है. इससे कम उम्र में यौन संबंध को बलात्कार ही माना जाता है.

कैसे अस्तित्व में आया यह कानून

  • आईपीसी ने 1860 में 10 साल की आयु की लड़की के साथ यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में डाला था.
  • 1927 में रेप संबंधी कानूनी प्रावधानों के तहत सहमति की उम्र (Age of consent) विधेयक में यह घोषित किया था कि 12 साल से कम आयु की लड़की के साथ शादी अवैध मानी जाएगी. इसे इंडियन नेशनल मूवमेंट के रूढ़िवादी नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा.
  • 1929 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम ने शादी के लिए लड़कियों की उम्र 16 और लड़कों की उम्र 18 साल तय की. इसे शारदा कानून भी कहा जाता है. 1978 में संशोधन के बाद लड़कियों के लिए विवाह की आयुसीमा 18 और लड़कों के लिए यह सीमा 21 साल की गई. साल 2006 में बालविवाह रोकथाम कानून में इसी दायरे में कुछ और बेहतर प्रावधानों को शामिल करते हुए सख्त कानून बना दिया गया.

स्त्री-पुरूष के लिए शादी की उम्र अलग-अलग क्यों ?

  • इसके पीछे कोई कानूनी कारण नहीं है.
  • जितने भी कानून बने हैं, वह धर्मों और परंपराओं का अनुगमन यानी पालन करना है . लॉ कमीशन का कंसलटेशन पेपर यह सवाल उठाता है कि यह जो कानून हैं, वो रूढ़िवादी, घिसी-पिटी (Stereotype) परंपराओं को ही मजबूती देते हैं, जो यह मानते हैं कि पत्नी-पति से छोटी ही होनी चाहिए.
  • महिला अधिकारों की वकालत करने वाले भी यह कहते हैं कि यह कानून रूढ़िवादी सोच को ही बढ़ावा देता है कि लड़कियां लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं. इसलिए इनकी जल्दी शादी कर देनी चाहिए.
  • लॉ कमीशन कहता है कि लड़के और लड़की की शादी की न्यूनतम आयु बराबर होनी चाहिए, ताकि वैवाहिक जीवन के निर्णयों में दोनों की भागीदारी बराबर हो.

अलग-अलग देशों में शादी की आयु

देशशादी की न्यूनतम आयु
लड़कालड़की
पाकिस्तान 18 साल 16 साल
चीन22 साल 20 साल
बांग्लादेश 21 साल 18 साल
अफगानिस्तान 18 साल 16 साल
भूटान18 साल 18 साल
जापान18 साल 16 साल
ऑस्ट्रेलिया18 साल 18 साल
इंडोनेशिया19 साल 16 साल

वित्तीय वर्ष 2020-21 का आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महिलाओं के मां बनने की सही उम्र के निर्धारण के लिए एक टास्क फोर्स के गठन का एलान किया था. लड़कियों की न्यूनतम उम्र सीमा में बदलाव के लिए पीछे उद्देश्य मातृ मृत्यु दर (Maternal mortality rate) में कमी लाना है. बहरहाल देखना होगा की केंद्र सरकार कब इस फैसले पर अपनी मुहर लगाती है.

रायपुर: भारत में लड़कों के लिए शादी करने की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 वर्ष है. बाल विवाह रोकथाम कानून 2006 के तहत इससे कम उम्र में शादी गैरकानूनी है. ऐसा करने पर 2 साल की सजा और 1 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है. अब सरकार लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र की सीमा बढ़ाकर 21 वर्ष करने पर विचार कर रही है. सितंबर महीने में शुरू होने वाले मानसून सत्र में केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाने को लेकर बिल ला सकती है.

जानिए छत्तीसगढ़ की बेटियों और समाज के लोगों की राय

1978 में शारदा अधिनियम में संशोधन के बाद लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी. बाल विवाह अधिनियम के मुताबिक भारत में शादी के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए, लेकिन अब लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाया जा सकता है. ETV भारत ने इस मुद्दे को लेकर शहरी और ग्रामीण अंचलों की लड़कियों से उनकी राय जानी.

शादी की उम्र 21 साल करने को लेकर लड़कियों में खुशी

शहर और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियां शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने की बात से खुश नजर आ रहीं हैं. वे कहती हैं कि ज्यादातर ग्रामीण अंचलों में लड़कियों की शादी समय से पहले ही कर दी जाती है, जिससे उन्हें कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है. उन्हें इतनी समझदारी नहीं होती की शादी के बाद घर-परिवार को कैसे संभाला जाए. 18 साल तक की लड़कियों में ज्यादातर बचपना होता है, वह खुद के बारे में भी ठीक से नहीं सोच पातीं. जल्द शादी करने से उन्हें पढ़ाई करने का मौका भी नहीं मिल पाता.

लड़कियां कहती हैं कि अब पहले जैसा जमाना नहीं रह गया, जब लड़कियां घरों में रहकर अपनी पूरी जिंदगी गुजार देती थीं. अब हर क्षेत्र में लड़कियां आगे बढ़ रहीं हैं. आज हर लड़की गोल-ओरिएंटेड हैं. सरकार का यह फैसला लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में कारगर साबित होगा. लड़कियां भविष्य में कुछ बनना चाहती हैं, कुछ हासिल करना चाहती हैं, उनके लिए यह बिल काफी मददगार साबित होगा.

लड़कियों की साक्षरता दर में होगी वृद्धि

सामाजिक कार्यकर्ता वर्णिका शर्मा कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का यह निर्णय सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक तीनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित होगा और निर्णायक भूमिका अदा करेगा.

वर्णिका शर्मा के मुताबिक 18 साल के बाद की आयु तेजी से तर्कशक्ति के विकास की आयु होती है. PSC और UPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया भी स्नातक रखा गया है. क्योंकि पूरे ग्रेजुएशन के दौरान कोई भी लड़की परिस्थितियों को लेकर अपनी समझदारी विकसित कर रही होती है. इस बीच लड़कियां सामंजस्य बैठाना भी बेहतर तरीके से सीख जाती हैं.

वर्णिका शर्मा यह भी कहती हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में लड़कियों की शादी की न्युनतम उम्र अगर 21 साल कर दी जाती है तो यह समूचित साबित होगी. यह पहल ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की साक्षरता दर को भी बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित होगी.

'21 साल की उम्र में लड़कियों की आत्मनिर्भरता ज्यादा होती है'

सिंधु महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कन्हैया छुगानी कहते हैं कि 21 साल की उम्र में लड़कियों की आत्मनिर्भरता ज्यादा होती है. अगर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 कर दी जाती है तो लड़कियां ज्यादा शिक्षित होंगी. जब लड़कियां शिक्षित होंगी, तो वे अपने आने वाले बच्चों को भविष्य में अच्छी शिक्षा दे पाएंगी. एक बेहतर जीवन जीने के लिए आज के दौर में लड़कियों का पढ़ा-लिखा होना बेहद जरूरी है.

'बदल चुकी है लोगों की सोच'

राजधानी रायपुर के अग्रवाल समाज के प्रतीक अग्रवाल और साहू समाज के अनिल साहू का कहना है कि केंद्र सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य होगा. इससे न सिर्फ लड़कियों को अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका मिलेगा, बल्कि वे भविष्य में बेहतर करियर बनाकर सफलता हासिल कर सकती हैं. पहले के जमाने में लड़कियों को लेकर बंधन हुआ करते थे. लड़कियां घर से बाहर नहीं निकलती थीं. 12वीं तक पढ़ाई कर लेना ही तब बहुत बड़ी बात होती थी. लेकिन आज सब एडवांस हो चुका है. लोगों की सोच में काफी बदलाव आए हैं. लड़कियों को शारीरिक रूप से भी मजबूती मिलेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि लड़कियों को वैवाहिक दुष्कर्म से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध घोषित कर देना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शादी की न्यूनतम आयु पर फैसला लेने का निर्णय केंद्र सरकार पर छोड़ दिया था. कोर्ट के दिशा-निर्देश का पालन करते हुए मोदी सरकार इस पर विचार कर रही है.

लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 करने के फायदे

  • पढ़ाई पूरी करने का मौका मिलेगा.
  • ग्रेजुएट होने के साथ ही भविष्य के लिए बेहतर सोच पाएंगी.
  • शारीरिक और मानसिक रूप से मैच्योर होने के लिए समय मिलेगा.
  • जब पढ़ी-लिखी लड़की मां बनेगी तो आने वाली पीढ़ी भी का भविष्य भी बेहतर होगा.
  • शादी को लेकर अपना मन बना पाएंगी और घर-परिवार को बेहतर समझेंगी.

विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ

  • हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 5(III) में लड़कियों के लिए 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल की आयु सीमा शादी के लिए तय है.
  • इस्लाम में बच्चे को यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही शादी के योग्य मान लिया जाता है.
  • स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 भी लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की न्यूनतम आयु को शादी की उम्र की मान्यता देता है. इससे कम उम्र में यौन संबंध को बलात्कार ही माना जाता है.

कैसे अस्तित्व में आया यह कानून

  • आईपीसी ने 1860 में 10 साल की आयु की लड़की के साथ यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में डाला था.
  • 1927 में रेप संबंधी कानूनी प्रावधानों के तहत सहमति की उम्र (Age of consent) विधेयक में यह घोषित किया था कि 12 साल से कम आयु की लड़की के साथ शादी अवैध मानी जाएगी. इसे इंडियन नेशनल मूवमेंट के रूढ़िवादी नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा.
  • 1929 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम ने शादी के लिए लड़कियों की उम्र 16 और लड़कों की उम्र 18 साल तय की. इसे शारदा कानून भी कहा जाता है. 1978 में संशोधन के बाद लड़कियों के लिए विवाह की आयुसीमा 18 और लड़कों के लिए यह सीमा 21 साल की गई. साल 2006 में बालविवाह रोकथाम कानून में इसी दायरे में कुछ और बेहतर प्रावधानों को शामिल करते हुए सख्त कानून बना दिया गया.

स्त्री-पुरूष के लिए शादी की उम्र अलग-अलग क्यों ?

  • इसके पीछे कोई कानूनी कारण नहीं है.
  • जितने भी कानून बने हैं, वह धर्मों और परंपराओं का अनुगमन यानी पालन करना है . लॉ कमीशन का कंसलटेशन पेपर यह सवाल उठाता है कि यह जो कानून हैं, वो रूढ़िवादी, घिसी-पिटी (Stereotype) परंपराओं को ही मजबूती देते हैं, जो यह मानते हैं कि पत्नी-पति से छोटी ही होनी चाहिए.
  • महिला अधिकारों की वकालत करने वाले भी यह कहते हैं कि यह कानून रूढ़िवादी सोच को ही बढ़ावा देता है कि लड़कियां लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं. इसलिए इनकी जल्दी शादी कर देनी चाहिए.
  • लॉ कमीशन कहता है कि लड़के और लड़की की शादी की न्यूनतम आयु बराबर होनी चाहिए, ताकि वैवाहिक जीवन के निर्णयों में दोनों की भागीदारी बराबर हो.

अलग-अलग देशों में शादी की आयु

देशशादी की न्यूनतम आयु
लड़कालड़की
पाकिस्तान 18 साल 16 साल
चीन22 साल 20 साल
बांग्लादेश 21 साल 18 साल
अफगानिस्तान 18 साल 16 साल
भूटान18 साल 18 साल
जापान18 साल 16 साल
ऑस्ट्रेलिया18 साल 18 साल
इंडोनेशिया19 साल 16 साल

वित्तीय वर्ष 2020-21 का आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महिलाओं के मां बनने की सही उम्र के निर्धारण के लिए एक टास्क फोर्स के गठन का एलान किया था. लड़कियों की न्यूनतम उम्र सीमा में बदलाव के लिए पीछे उद्देश्य मातृ मृत्यु दर (Maternal mortality rate) में कमी लाना है. बहरहाल देखना होगा की केंद्र सरकार कब इस फैसले पर अपनी मुहर लगाती है.

Last Updated : Sep 15, 2020, 5:41 PM IST
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