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शौक जो बना जिंदगी का जुनून, अब घोड़ों की टापों पर होती है सुबह शाम, दे रहे यंगस्टर्स को मुकाम - HORSE RIDING CLUB IN RAIPUR

बचपन से आदित्य को घोड़ों का शौक था. उम्र बढ़ी तो शौक जुनून में बदल गया. आज 47 बेशकीमती घोड़ों के मालिक हैं.

HORSE RIDING CLUB IN RAIPUR
शौक जो बना जिंदगी का जुनून (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 21, 2025, 12:17 PM IST

रायपुर: स्पीड और 5G के जमाने में घोड़े अगर किसी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाए तो आपको हैरत जरुर होगी. पर जब आप रायपुर के आदित्य से मिलेंगे तो आपको खुद पता चल जाएगा कि कोई फाइव जी के जमाने में भी घोड़ों का दीवाना क्यों है. हॉर्स राइडिंग की क्लब चलाने वाले आदित्य को बचपन से घोड़े पालने और उसके करीब रहने का शौक रहा. जैसे जैसे आदित्य की उम्र बढ़ी वैसे वैसे उनका शौक भी परवान चढ़ता गया. शुरुआत में कुछ घोड़ों को खरीदकर हॉर्स राइडिंग क्लब शुरू की.

शौक जो बना जिंदगी का जुनून: कुछ घोड़ों के साथ शुरु किया गया कारोबार आज बड़े बिजनेस में बदल गया है. आज आदित्य के पास 47 से ज्यादा बेहतीन नस्ल के घोड़े मौजूद हैं. आदित्य अपने हॉर्स राइडिंग क्लब लोगों को राइडिंग की ट्रेनिंग भी देते हैं. अपने हॉर्स राइडिंग के कारोबार से न सिर्फ वो अपना रोजगार कर रहे हैं बल्कि कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. उनके हॉर्स राइडिंग क्लब में कई स्टूडेंट हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग लेने आते हैं. कई राइडर तो ऐसे हैं जो कई हॉर्स राइडिंग इवेंट में पार्टिसिपेट भी कर चुके हैं.

हॉर्स राइडिंग (ETV Bharat Chhattisgarh)

घोड़े का प्रेम और शौक इतना बढ़ा की जीवन में इसके बिना कोई चीज ही दिखाई नहीं पड़ी. स्पोर्ट्स में भी मेरी रुचि है लेकिन उससे ज्यादा मेरी रुचि घोड़े को पालने में है. घोड़े के प्रेम में मैं इतना पागल हो गया कि मैं राइडिंग क्लब शुरु कर दिया. अभी हमारे पास 47 मारवाड़ नस्ल के घोड़े हैं - आदित्य प्रताप सिंह, डायरेक्टर, राइडिंग क्लब

मारवाड़ के घोड़ों की खासियत: आदित्य के सरीखेड़ी के अस्तबल में मारवाड़ नस्ल के 47 घोड़े हैं. जिसमें 44 घोड़ी और 3 घोड़े हैं. आदित्य के अस्तबल में 18 घोड़े वर्तमान में मौजूद हैं. 29 घोड़े को आदित्य प्रताप सिंह ने स्कूल कॉलेज और कम्युनिटी को कॉन्ट्रैक्ट बेस पर दिया है. आदित्य कहते हैं कि मारवाड़ के घोड़े लंबी दूरी तय करने के लिए जाने जाते हैं. मारवाड़ के घोड़ों में मेंटेनेंस का खर्चा कम होता है और उनकी खुराक भी ज्यादा नहीं होती. मारवाड़ के घोड़े काफी फुर्तीले माने जाते हैं.

नए घोड़े लाने के लिए भी फंड एकत्रित करना होता है. स्कूल कॉलेज और कम्युनिटी में मेंटेनेंस का फंड जाता है. कस्टमर राइडिंग क्लब में राइडिंग करने आते हैं, उनकी सर्विस और हॉस्पिटीलिटी के सर्विस का फंड रहता है. मैनेजमेंट कंसलटेंट का भी काम देखना होता है - प्रियांश कंसारी, को फाउंडर, राइडिंग क्लब

रोजगार के मौके भी मुहैया कराए: राइडिंग क्लब की मैनेजमेंट देखने वाली सारा जैन ने बताया कि कंपटीशन बहुत सारे लेवल के होते हैं. मैं खुद स्टेट नेशनल लेवल पार्टिसिपेट की हूं. नेशनल शो जंपिंग करती थीं. दिल्ली में 2016 में पार्टिसिपेट की थी. उसके पहले 2005 से राइटिंग स्टार्ट की थी. राइडिंग क्लब से पिछले 1 साल से जुड़ी हुई हूं. यहां पर मैनेजमेंट में मदद करती हूं. राइडिंग क्लब के घोड़े और क्लब की देखभाल करती हूं. राइडिंग क्लब में रोजाना राइडिंग करती हूं. पेशे से लॉयर हूं. बिजनेस फैमिली से बिलॉन्ग करती हूं और उसे भी संभालती हूं.

एक्स आर्मी पर्सन हूं. पिछले दो महीने से राइडिंग क्लब में ट्रेनिंग देने का काम कर रहा हूं. हॉर्स राइडिंग बच्चे एक बार में नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में बच्चों को बार-बार समझाना पड़ता है और उस हिसाब से धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं - दिनेश कुमार यादव, ट्रेनर, राइडिंग क्लब

तेजी से बढ़ रहा कारोबार: राइडिंग क्लब के को फाउंडर प्रियांश कंसारी का कहना है कि वह राइडिंग क्लब में एडमिनिस्ट्रेशन देखते हैं. अकाउंट और फाइनेंस देखना होता है. अलग-अलग सेक्टर के लिए फंडस एलोकेट करके रखना पड़ता है. जैसे घोड़े के मैनेजमेंट का एक फंड है. बहुत सारे विभागों में रिसर्च चलता है.

मैं पिछले दो सालों से यहां पर आ रहा हूं. धीरे-धीरे चीजों को समझने और जानने लगा हूं. घोड़े के ऊपर बैठना कैसे हैं उसे कंट्रोल कैसे करना है. घोड़े को चलाना कैसे हैं. टर्न कैसे करना है. हॉर्स की आदत कब बिगड़ती है. इसे कैसे ठीक करना है. बेसिकली इसे हॉबी के तौर पर रखना चाहूंगा. स्कूल में रहते हुए कंपटीशन में भी हिस्सा लूंगा. बचपन से मेरी सोच थी कि घोड़े को खुद से चलाने में कैसी फीलिंग आती होगी, यही सोचकर मैंने हॉर्स राइडिंग करने की सोची. - राफीक बुखारी, हॉर्स राइडर

रिटायर्ड आर्मी मैन हैं ट्रेनर: राइडिंग क्लब के ट्रेनर दिनेश कुमार यादव आर्मी के रिटायर्ड पर्सन हैं. दिनेश का कहना है कि बच्चे जो फर्स्ट एनरोलमेंट के दौरान आते हैं उनको घोड़े के बारे में ग्रूमिंग के बारे में समझाना जरूरी होता है. घोड़े को किस तरीके से तैयार करना है हम ये बताते हैं. घोड़ों की बेसिक जानकारी देने के बाद उनकी ट्रेनिंग शुरू की जाती है.

हॉर्स राइडिंग पिछले 7 साल से कर रही हूं लेकिन रायपुर के कैंटर्स क्लब में पिछले 6 महीने से हॉर्स राइडिंग के लिए आ रही हूं. इस क्लब में आने के बाद दूसरे दिन से ही कैंटर्स कराना शुरू किया गया है. लास्ट मंथ से थोड़ा-थोड़ा जंप करने लगी हूं. भविष्य में प्रोफेशनल हॉर्स राइडर बनने की चाह है. लंदन में अपना खुद का अस्तबल भी खोलना चाहती हूं - अनिका पांडे, हॉर्स राइडर

बचपन से मेरा झुकाव घुड़सवारी की ओर रहा है. रॉयल लाइफ में हम लोगों को हॉर्सेस के साथ देखते हैं. ऐसे में मेरे मन में भी ख्याल आया कि मैं भी हॉर्स राइडिंग करूं. बचपन से यह मेरा पैशन रहा है. कैंटर्स क्लब में मुझे राईडिंग करते हुए 2 साल हो गए हैं. यहां का माहौल पूरी तरह से फैमिली की तरह है. भविष्य में किसी कंपटीशन में भी मेरी जाने की इच्छा है - सौम्या, हॉर्स राइडर

घोड़ों के प्रति दीवानगी: हॉर्स राइडिंग क्लब कैंटर को चलाने वाले से लेकर यहां सीखने आने वाले सभी घोड़ों को लेकर दीवानें हैं. रायपुर जैसे शहर में इस तरह के हॉर्स राइडिंग क्लब का होना अपने आप में बड़ी बात है.

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रायपुर: स्पीड और 5G के जमाने में घोड़े अगर किसी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाए तो आपको हैरत जरुर होगी. पर जब आप रायपुर के आदित्य से मिलेंगे तो आपको खुद पता चल जाएगा कि कोई फाइव जी के जमाने में भी घोड़ों का दीवाना क्यों है. हॉर्स राइडिंग की क्लब चलाने वाले आदित्य को बचपन से घोड़े पालने और उसके करीब रहने का शौक रहा. जैसे जैसे आदित्य की उम्र बढ़ी वैसे वैसे उनका शौक भी परवान चढ़ता गया. शुरुआत में कुछ घोड़ों को खरीदकर हॉर्स राइडिंग क्लब शुरू की.

शौक जो बना जिंदगी का जुनून: कुछ घोड़ों के साथ शुरु किया गया कारोबार आज बड़े बिजनेस में बदल गया है. आज आदित्य के पास 47 से ज्यादा बेहतीन नस्ल के घोड़े मौजूद हैं. आदित्य अपने हॉर्स राइडिंग क्लब लोगों को राइडिंग की ट्रेनिंग भी देते हैं. अपने हॉर्स राइडिंग के कारोबार से न सिर्फ वो अपना रोजगार कर रहे हैं बल्कि कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. उनके हॉर्स राइडिंग क्लब में कई स्टूडेंट हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग लेने आते हैं. कई राइडर तो ऐसे हैं जो कई हॉर्स राइडिंग इवेंट में पार्टिसिपेट भी कर चुके हैं.

हॉर्स राइडिंग (ETV Bharat Chhattisgarh)

घोड़े का प्रेम और शौक इतना बढ़ा की जीवन में इसके बिना कोई चीज ही दिखाई नहीं पड़ी. स्पोर्ट्स में भी मेरी रुचि है लेकिन उससे ज्यादा मेरी रुचि घोड़े को पालने में है. घोड़े के प्रेम में मैं इतना पागल हो गया कि मैं राइडिंग क्लब शुरु कर दिया. अभी हमारे पास 47 मारवाड़ नस्ल के घोड़े हैं - आदित्य प्रताप सिंह, डायरेक्टर, राइडिंग क्लब

मारवाड़ के घोड़ों की खासियत: आदित्य के सरीखेड़ी के अस्तबल में मारवाड़ नस्ल के 47 घोड़े हैं. जिसमें 44 घोड़ी और 3 घोड़े हैं. आदित्य के अस्तबल में 18 घोड़े वर्तमान में मौजूद हैं. 29 घोड़े को आदित्य प्रताप सिंह ने स्कूल कॉलेज और कम्युनिटी को कॉन्ट्रैक्ट बेस पर दिया है. आदित्य कहते हैं कि मारवाड़ के घोड़े लंबी दूरी तय करने के लिए जाने जाते हैं. मारवाड़ के घोड़ों में मेंटेनेंस का खर्चा कम होता है और उनकी खुराक भी ज्यादा नहीं होती. मारवाड़ के घोड़े काफी फुर्तीले माने जाते हैं.

नए घोड़े लाने के लिए भी फंड एकत्रित करना होता है. स्कूल कॉलेज और कम्युनिटी में मेंटेनेंस का फंड जाता है. कस्टमर राइडिंग क्लब में राइडिंग करने आते हैं, उनकी सर्विस और हॉस्पिटीलिटी के सर्विस का फंड रहता है. मैनेजमेंट कंसलटेंट का भी काम देखना होता है - प्रियांश कंसारी, को फाउंडर, राइडिंग क्लब

रोजगार के मौके भी मुहैया कराए: राइडिंग क्लब की मैनेजमेंट देखने वाली सारा जैन ने बताया कि कंपटीशन बहुत सारे लेवल के होते हैं. मैं खुद स्टेट नेशनल लेवल पार्टिसिपेट की हूं. नेशनल शो जंपिंग करती थीं. दिल्ली में 2016 में पार्टिसिपेट की थी. उसके पहले 2005 से राइटिंग स्टार्ट की थी. राइडिंग क्लब से पिछले 1 साल से जुड़ी हुई हूं. यहां पर मैनेजमेंट में मदद करती हूं. राइडिंग क्लब के घोड़े और क्लब की देखभाल करती हूं. राइडिंग क्लब में रोजाना राइडिंग करती हूं. पेशे से लॉयर हूं. बिजनेस फैमिली से बिलॉन्ग करती हूं और उसे भी संभालती हूं.

एक्स आर्मी पर्सन हूं. पिछले दो महीने से राइडिंग क्लब में ट्रेनिंग देने का काम कर रहा हूं. हॉर्स राइडिंग बच्चे एक बार में नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में बच्चों को बार-बार समझाना पड़ता है और उस हिसाब से धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं - दिनेश कुमार यादव, ट्रेनर, राइडिंग क्लब

तेजी से बढ़ रहा कारोबार: राइडिंग क्लब के को फाउंडर प्रियांश कंसारी का कहना है कि वह राइडिंग क्लब में एडमिनिस्ट्रेशन देखते हैं. अकाउंट और फाइनेंस देखना होता है. अलग-अलग सेक्टर के लिए फंडस एलोकेट करके रखना पड़ता है. जैसे घोड़े के मैनेजमेंट का एक फंड है. बहुत सारे विभागों में रिसर्च चलता है.

मैं पिछले दो सालों से यहां पर आ रहा हूं. धीरे-धीरे चीजों को समझने और जानने लगा हूं. घोड़े के ऊपर बैठना कैसे हैं उसे कंट्रोल कैसे करना है. घोड़े को चलाना कैसे हैं. टर्न कैसे करना है. हॉर्स की आदत कब बिगड़ती है. इसे कैसे ठीक करना है. बेसिकली इसे हॉबी के तौर पर रखना चाहूंगा. स्कूल में रहते हुए कंपटीशन में भी हिस्सा लूंगा. बचपन से मेरी सोच थी कि घोड़े को खुद से चलाने में कैसी फीलिंग आती होगी, यही सोचकर मैंने हॉर्स राइडिंग करने की सोची. - राफीक बुखारी, हॉर्स राइडर

रिटायर्ड आर्मी मैन हैं ट्रेनर: राइडिंग क्लब के ट्रेनर दिनेश कुमार यादव आर्मी के रिटायर्ड पर्सन हैं. दिनेश का कहना है कि बच्चे जो फर्स्ट एनरोलमेंट के दौरान आते हैं उनको घोड़े के बारे में ग्रूमिंग के बारे में समझाना जरूरी होता है. घोड़े को किस तरीके से तैयार करना है हम ये बताते हैं. घोड़ों की बेसिक जानकारी देने के बाद उनकी ट्रेनिंग शुरू की जाती है.

हॉर्स राइडिंग पिछले 7 साल से कर रही हूं लेकिन रायपुर के कैंटर्स क्लब में पिछले 6 महीने से हॉर्स राइडिंग के लिए आ रही हूं. इस क्लब में आने के बाद दूसरे दिन से ही कैंटर्स कराना शुरू किया गया है. लास्ट मंथ से थोड़ा-थोड़ा जंप करने लगी हूं. भविष्य में प्रोफेशनल हॉर्स राइडर बनने की चाह है. लंदन में अपना खुद का अस्तबल भी खोलना चाहती हूं - अनिका पांडे, हॉर्स राइडर

बचपन से मेरा झुकाव घुड़सवारी की ओर रहा है. रॉयल लाइफ में हम लोगों को हॉर्सेस के साथ देखते हैं. ऐसे में मेरे मन में भी ख्याल आया कि मैं भी हॉर्स राइडिंग करूं. बचपन से यह मेरा पैशन रहा है. कैंटर्स क्लब में मुझे राईडिंग करते हुए 2 साल हो गए हैं. यहां का माहौल पूरी तरह से फैमिली की तरह है. भविष्य में किसी कंपटीशन में भी मेरी जाने की इच्छा है - सौम्या, हॉर्स राइडर

घोड़ों के प्रति दीवानगी: हॉर्स राइडिंग क्लब कैंटर को चलाने वाले से लेकर यहां सीखने आने वाले सभी घोड़ों को लेकर दीवानें हैं. रायपुर जैसे शहर में इस तरह के हॉर्स राइडिंग क्लब का होना अपने आप में बड़ी बात है.

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