रायपुर: दिल्ली में कुर्सी का रास्ता उत्तरप्रदेश से होकर गुजरता है, उसी तरह छत्तीसगढ़ में किसी राजनीतिक दल को सत्ता हासिल करनी है तो उसे बस्तर फतह करना जरूरी होता है. लेकिन बस्तर की आबोहवा कांग्रेस के पाले में बह रही है. इसलिए लगातार भाजपा के सीनियर लीडर बस्तर संभाग का दौरा कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ बीजेपी प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी (Chhattisgarh BJP state in charge D Purandeshwari) का पिछले 1 महीने में बस्तर का यह दूसरा दौरा है. इस बार 14 मार्च से 16 मार्च तक तीन दिवसीय दौरा है. इस दौरान डी. पुरंदेश्वरी बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा और बस्तर जिले के कार्यकर्ताओं की बैठक ले रहीं हैं. पुरंदेश्वरी के दौरे में खास बात यह है कि बस्तर प्रवास के दौरान उनके साथ भाजपा कोई बड़ा नेता नहीं है.
यह भी पढ़ें: रमन सिंह का राहुल गांधी पर तंज, चाय-कॉफी पीने से नहीं होगा बस्तर का विकास
बस्तर की नब्ज टटोलने पहुंचीं डी पुरंदेश्वरी
छत्तीसगढ़ की राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि बस्तर पर जिस पार्टी ने फतह कर ली, छत्तीसगढ़ उसका है. राज्य गठन के समय बस्तर संभाग भाजपा का गढ़ माना जाता था. 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बस्तर संभाग की 12 में से 9 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था, लेकिन आज की स्थिति की बात की जाय तो बस्तर संभाग आज कांग्रेस का गढ़ हो गया है. 12 विधानसभा सीटों में से 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. आखिर इसके पीछे क्या वजह है. 15 साल सत्ता में रहे भाजपा बस्तर में क्यों अपनी पकड़ होती जा रही है. यह भाजपा के लिए चिंता का विषय है.
बस्तर संभाग में सीटों की स्थिति
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लगभग 18 महीने का समय बचा है. बस्तर के आदिवासी वोट बैंक पर प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों की नजर है. साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में 9 सीटों पर भाजपा काबिज थी. 3 सीटें कांग्रेस के हिस्से में आई थी. 2008 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. 1 सीट कांग्रेस के हाथ में आई थी. 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने बस्तर में अपनी पकड़ बनाई और चुनावी नतीजों को पूरा उलट कर दिया. 2013 में बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में से 8 पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 4 सीटें भाजपा के हिस्से में आईं. साल 2018 में भी स्थिति लगभग यही रही कि 12 विधानसभा सीटों में से 11 पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 1 सीट भाजपा की झोली में आई. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में दंतेवाड़ा ही एक ऐसी सीट थी, जहां से भाजपा के भीमा मंडावी ने चुनाव जीता था. उन्होंने देवती कर्मा को 2,172 वोटों से हराया था. भीमा 4 महीने ही विधायक के तौर पर काम कर सके. 9 अप्रैल को लोकसभा चुनाव से कुछ घंटे पहले उनकी हत्या कर दी गई थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों के 9 महीने बाद हुए उपचुनाव में एक बार फिर से यह सीट कांग्रेस के पास आ गई.
यह भी पढ़ें: आदिवासी वोट बैंक पर बीजेपी की नजर, डी पुरंदेश्वरी फिर करेंगी बस्तर का दौरा
बस्तर मिशन पर भाजपा का तर्क
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि "भाजपा प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी लगातार छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहीं हैं. मालूम है कि एक संगठन का दायित्व होता है. प्रदेश का संगठन व्यवस्थित रूप से चले, सक्रियता उसमें बनी रहे, साथ ही साथ जो चुनाव की चुनौतियां रहती हैं. उस पर पार्टी किस तरीके से जीत हासिल कर सके, इन्हीं सब चीजों का विश्लेषण करने के लिए लगातार वरिष्ठ नेता का प्रदेश में दौरा होता रहता है. 2023 हमारा लक्ष्य है. इसके लिए व्यापक तैयारी प्रदेश प्रभारी के निर्देशन में चल रही है. छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग और सरगुजा संभाग किसी भी सरकार को बनाने में एक महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है. बस्तर में पहले हम मजबूत स्थिति में थे. लेकिन अभी की हमारी स्थिति बस्तर संभाग में ज्यादा मजबूत नहीं है. कांग्रेस के जन घोषणापत्र में कांग्रेस ने जो वादे किए हैं, आज तक वह पूरे नहीं हुए हैं. आज आदिवासी समुदाय अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है. हमारे कार्यकर्ता उनके बीच में जाकर भूपेश बघेल की नाकामी के बारे में बता रहे हैं. हमारी आगे की रणनीति , बूथ स्तर तक हमारा संगठन किस तरह मजबूत हो सकता है, इस बारे में बैठकें चल रही है. प्रदेश प्रभारी का दौरा छत्तीसगढ़ में हो रहा है. प्रदेश प्रभारी बीजापुर , नारायणपुर , बस्तर और संभाग का दौरा कर रहीं हैं. बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ सीधी बातचीत हो रही है. आने वाले समय की कार्ययोजना हम बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं से मिलकर बनाएंगे.''
यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ की जनता के पास भूपेश सरकार की विफलताओं को लेकर जाएगी भाजपा : डी पुरंदेश्वरी
क्या कहती है कांग्रेस
कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि ''भाजपा प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी बार-बार बस्तर जाकर भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह करने की कोशिश कर रही हैं. 15 साल भाजपा शासनकाल के दौरान इन्हीं आदिवासियों के जल , जंगल और जमीन पर कब्जा करने के लिए इनके अधिकारों का हनन किया गया. उनके विकास को बाधित कर उन पर लाठियां बरसाई गई और जेलों में बंद किया गया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार में आदिवासियों को उनका अधिकार मिल रहा है. बस्तर में बंद स्कूल खोले जा रहे हैं. वहां रोजगार की बात हो रही है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी जन समर्थन खो चुकी है. आदिवासी वर्ग को पता है कि 7 साल से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है, जिन्होंने आदिवासियों के लिए कुछ भी नहीं किया है. 15 साल के रमन शासनकाल के दौरान भी आदिवासी वर्ग ने यातनाएं झेली हैं."
वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी के मुताबिक "छत्तीसगढ़ का अब भी 40 फीसद हिस्सा जंगलों से ढंका हुआ है. पूरे देश में आदिवासी वर्ग के काफी ज्यादा लोग हैं. इस वजह से प्रदेश में पार्टियां आदिवासी वर्ग को टारगेट कर पूरे देश में यह बताती हैं कि प्रदेश में आदिवासियों के लिए विकास के कार्य हुए हैं. जिससे प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में पार्टियों के प्रति एक इमोशनल जुड़ाव लोगों का रहा. छत्तीसगढ़ में सरकार किसकी बनेगी, इसमें एक बहुत अहम रोल आदिवासी वर्ग का रहता है. इस वजह से लगातार भाजपा प्रदेश प्रभारी बस्तर का दौरा कर रहीं हैं. 2003 में राज्य गठन के बाद बस्तर के सीटों पर भाजपा का कब्जा था, लेकिन धीरे-धीरे भाजपा के हाथों से यह सीट फिसलती चली गई. अब बस्तर की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है."