रायपुर : 6 सितंबर को पोला (Pola) का पर्व मनाया जाएगा. इसको लेकर बाजार सज गया है, लेकिन बाजार से रौनक गायब है. मिट्टी के बने खिलौने और बैल अलग-अलग साइज और रंगों में उपलब्ध हैं. लेकिन पिछले साल की तुलना में इस बार मिट्टी और लकड़ी के बने बैल के दाम में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है. भारत कृषि प्रधान देश है, यहां के किसान अपने बैल को भगवान (Lord) मानते हैं. पोला के दिन मिट्टी से बने बैल और मवेशियों की पूजा की जाती है.
छत्तीसगढ़ में 6 सितंबर को पोला का पर्व मनाया जाएगा. पोला पर्व में किसान मवेशियों की पूजा के साथ ही मिट्टी और लकड़ी के बने बैल की भी पूजा घरों में पूरे विधि-विधान से की जाती है. पोला पर्व को लेकर बाजार भी सज गया है, लेकिन बाजार से रौनक गायब है. ग्राहकी भी नहीं के बराबर है. पिछले साल की तुलना में इस साल मिट्टी और लकड़ी से बने बैल की कीमत थोड़ी बढ़ गई है. पोला का पर्व छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है. शहरी इलाकों में पोला पर्व का उत्साह पहले की तुलना में अब थोड़ा कम हो गया है, लेकिन पर्व को देखते हुए बाजार जरूर सज गया है.
अन्नपूर्णा माता के गर्भधारण करने के कारण खेत पर जाना होता है वर्जित
बड़े-बुजुर्ग बैल सौंदर्य का आनंद लेते हैं. साथ ही बच्चे इस दिन लकड़ी मिट्टी या लोहे के बने हुए छोटे-छोटे बैलों को रस्सी से बांधकर दौड़ाते हैं और उछल-कूद मचाते हैं. चारों तरफ उल्लास हर्ष और आनंद का वातावरण रहता है. बच्चे इस दिन बहुत खुश होते हैं. मान्यता है कि अन्नपूर्णा माता इस दिन गर्भ धारण करती हैं. इस उपलक्ष्य में खेतों में नहीं जाने का भी नियम है.
छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और एमपी के कई हिस्सों में मनाया जाता है पोला
इस दिन धान के पौधों में दूध भरता है. यह पवित्र त्योहार महाराष्ट्र में भी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन पूरन पोली और खीर बनाई जाती है, जिससे बैलों को भोग लगाने के बाद परिवार प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है. यह त्योहार पूरे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में पूरे जोश के साथ मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से कृषि प्रधान पर्व है. इस दिन वर्षा होना भी शुभ माना जाता है.