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रायपुर में 23 फरवरी से तीन दिवसीय राष्ट्रीय कृषि मेला, जानें इसकी खासियत

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Published : Feb 22, 2020, 8:35 AM IST

रायपुर में 23 से 25 फरवरी तक राष्ट्रीय कृषि मेले का आयोजन किया जा रहा है. इस तीन दिवसीय मेले में किसानों के उत्पादित कृषि उपज से संबंधित विभिन्न सामग्रियों की प्रदर्शनी करने के लिए सह बिक्री के स्टॉल लगाए जाएंगे.

National Agriculture Fair will be held in Raipur from 23 February
रायपुर में 23 फरवरी से होगा राष्ट्रीय कृषि मेला का तीन दिवसीय आयोजन

रायपुर: राष्ट्रीय कृषि मेले का आयोजन राजधानी के तुलसी बाराडेरा स्थित फल सब्जी उपमंडी प्रांगण में 23 से 25 फरवरी तक होगा. इस तीन दिवसीय मेले में किसानों के उत्पादित कृषि उपज से संबंधित विभिन्न सामग्रियों की प्रदर्शनी के साथ सह बिक्री के स्टाल भी लगे रहेंगे.

इसके अलावा छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के अलग-अलग स्टाल भी रहेंगे, जिससे लोग इन व्यंजनों का लुत्फ उठा सकेंगे.

प्रदर्शनी में शामिल होने का समय

प्रदर्शनी सह बिक्री का स्टाल आम नागरिकों और किसानों के लिए सुबह 10 से शाम 6 बजे तक खुला रहेगा. पशुधन विकास विभाग जिला दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा की ओर से राष्ट्रीय कृषि मेले में 100 किसानों को लाया जाएगा. मेले में दूध से बने घी, जैविक खाद, दही के साथ-साथ कड़कनाथ मुर्गा और कड़कनाथ अंडों का विक्रय किया जाएगा.

कृषि फसलों का उत्पादन

बता दें कि छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार की उद्यानिकी और कृषि फसलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हो रहा है. खरीफ फसलों में मुख्यतः धान, मक्का, अरहर, उड़द, सोयाबीन और लघु धान्य के अंतर्गत कोदो, कुटकी प्रदेश की पहचान है. रबि फसल के अंतर्गत मुख्यतः गेहूं, चना, तिवड़ा, अलसी, कुसुम, सूरजमुखी की खेती की जाती है. वनों से मुख्यतः ईमली, चिरौंजी, महुआ बीज, लाख और अनेक प्रकार की औषधीय गुणों से युक्त वनोपज का उत्पादन हो रहा है.

प्रदेश के किसान उत्पादक संगठनों, महिला स्व-सहायता समूह और किसानों की ओर से परंपरागत फसलों के अतिरिक्त काला चावल, लाल चावल, शहद, आर्गेनिक सुगन्धित विष्णु भोग, आर्गेनिक अरहर, मूंग का उत्पादन भी व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है. साथ ही प्रदेश से इन उत्पादों का निर्यात भी अन्य प्रदेशों को हो रहा है.

गोबर से बनाए जा रहे हैं दिए

महिला स्व-सहायता समूह और कृषकों की ओर महुआ, काला चावल, रागी, ज्वार, सीताफल और मुनगा पत्ती से विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं, जो प्रदेशवासियों की ओर से काफी पसंद किए जा रहे हैं. इनकी मांग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है. प्रदेश के स्व-सहायता समूहों की ओर से गोबर से दिए और गमलों का निर्माण किया जा रहा है. साथ ही अगरबत्ती, फिनाइल, फूल झाडू, साबून का भी उत्पादन किया जा रहा है, जो प्राकृतिक और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होने के साथ-साथ सस्ता भी है.

रायपुर: राष्ट्रीय कृषि मेले का आयोजन राजधानी के तुलसी बाराडेरा स्थित फल सब्जी उपमंडी प्रांगण में 23 से 25 फरवरी तक होगा. इस तीन दिवसीय मेले में किसानों के उत्पादित कृषि उपज से संबंधित विभिन्न सामग्रियों की प्रदर्शनी के साथ सह बिक्री के स्टाल भी लगे रहेंगे.

इसके अलावा छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के अलग-अलग स्टाल भी रहेंगे, जिससे लोग इन व्यंजनों का लुत्फ उठा सकेंगे.

प्रदर्शनी में शामिल होने का समय

प्रदर्शनी सह बिक्री का स्टाल आम नागरिकों और किसानों के लिए सुबह 10 से शाम 6 बजे तक खुला रहेगा. पशुधन विकास विभाग जिला दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा की ओर से राष्ट्रीय कृषि मेले में 100 किसानों को लाया जाएगा. मेले में दूध से बने घी, जैविक खाद, दही के साथ-साथ कड़कनाथ मुर्गा और कड़कनाथ अंडों का विक्रय किया जाएगा.

कृषि फसलों का उत्पादन

बता दें कि छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार की उद्यानिकी और कृषि फसलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हो रहा है. खरीफ फसलों में मुख्यतः धान, मक्का, अरहर, उड़द, सोयाबीन और लघु धान्य के अंतर्गत कोदो, कुटकी प्रदेश की पहचान है. रबि फसल के अंतर्गत मुख्यतः गेहूं, चना, तिवड़ा, अलसी, कुसुम, सूरजमुखी की खेती की जाती है. वनों से मुख्यतः ईमली, चिरौंजी, महुआ बीज, लाख और अनेक प्रकार की औषधीय गुणों से युक्त वनोपज का उत्पादन हो रहा है.

प्रदेश के किसान उत्पादक संगठनों, महिला स्व-सहायता समूह और किसानों की ओर से परंपरागत फसलों के अतिरिक्त काला चावल, लाल चावल, शहद, आर्गेनिक सुगन्धित विष्णु भोग, आर्गेनिक अरहर, मूंग का उत्पादन भी व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है. साथ ही प्रदेश से इन उत्पादों का निर्यात भी अन्य प्रदेशों को हो रहा है.

गोबर से बनाए जा रहे हैं दिए

महिला स्व-सहायता समूह और कृषकों की ओर महुआ, काला चावल, रागी, ज्वार, सीताफल और मुनगा पत्ती से विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं, जो प्रदेशवासियों की ओर से काफी पसंद किए जा रहे हैं. इनकी मांग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है. प्रदेश के स्व-सहायता समूहों की ओर से गोबर से दिए और गमलों का निर्माण किया जा रहा है. साथ ही अगरबत्ती, फिनाइल, फूल झाडू, साबून का भी उत्पादन किया जा रहा है, जो प्राकृतिक और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होने के साथ-साथ सस्ता भी है.

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