रायपुर/हैदराबाद: कभी राइफल थामने वाले हाथों में अब कलम है. खून खराबे से दूर बेहतर भविष्य की चाहत ने नक्सली होने का ठप्पा मिटाने की जिद पैदा कर दी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं सरेंडर कर चुके नक्सलियों की, जो छत्तीसगढ़ में 10वीं की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. आत्मसमर्पण करने वाले छह नक्सलियों में 3 पुरुष और 3 ही महिलाएं हैं, जो हथियार डालने के बाद कबीरधाम जिले के कवर्धा शहर में पुलिस लाइंस में रह रहे हैं. कक्षा 10वीं की राज्य ओपन स्कूल परीक्षा के लिए सभी के फॉर्म जमा कराए गए हैं.
दो जोड़े भी लिखेंगे अपनी किस्मत की इबारत: आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में दो जोड़े भी शामिल हैं. ये कबीरधाम जिले में छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश सीमा से सटे जंगलों में सक्रिय थे. 2019 और 2021 के बीच इन नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था. माओवाद प्रभावित बीजापुर जिले के काकेकोरमा गांव के मूल निवासी साल 2005 में एक आश्रम स्कूल में पढ़ाई कर रहा था. जब सलवा जुडूम आंदोलन शुरू हुआ. उन्होंने बताया "बस्तर संभाग के अंदरूनी इलाकों में कई स्कूल बंद कर दिए गए और छात्रों को डर के मारे अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा."
पढ़ाई दोबारा शुरू करने से पहले जबरन संगठन में ले गए: सरेंडर कर चुके नक्सली ने कहा कि "इससे पहले कि वह अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर पाता, स्थानीय नक्सली नेता उसे और एक अन्य लड़के (जिसने बाद में आंध्र प्रदेश में आत्मसमर्पण कर दिया) के साथ ले गए. दोनों को जबरन 2009 में प्रतिबंधित संगठन में शामिल कर लिया. उन्हें 2016 में एक मंडल समिति के सदस्य के रूप में प्रमोशन देकर नक्सलियों के महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ क्षेत्र में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उसने शीर्ष नेता मिलिंद तेलतुम्बडे के साथ काम किया. मिलिंद को 2021 में पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था.
नक्सली पति पत्नी ने कलम की चाहत में डाले हथियार: सरेंडर कर चुके एक नक्सली की पत्नी भी नक्सली थी. दोनों 2019 में एक शिविर से भाग गए और सामान्य जीवन जीने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया. सरेंडर को लेकर नक्सलियों ने कहा, "हम दोनों पढ़ना चाहते थे. मेरी पत्नी ने नक्सली संगठन में काम करते हुए लिखना सीखा. आत्मसमर्पण करने के बाद हम शिक्षा हासिल करना चाहते थे और अब हम स्थानीय पुलिस की मदद से ऐसा कर पा रहे हैं।"
तीन दशक से नक्सलवाद से लड़ रहा है बस्तर: एक अन्य आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली दंपति को भी पढ़ने का मौका मिला है. "बस्तर तीन दशकों से अधिक समय से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ रहा है. हिंसा के कारण उसके जैसे कई लोग शिक्षा से दूर हो गए."बीजापुर के भैरमगढ़ इलाके के रहने वाला युवक 2013 में 19 साल की उम्र में प्रतिबंधित संगठन में शामिल हुआ और 2020 में आत्मसमर्पण किया था.
पढ़ने में हर तरह का सहयोग, मुफ्त कोचिंग भी देंगे: कबीरधाम के पुलिस अधीक्षक लाल उमेद सिंह ने मीडिया को बताया कि "आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने पढ़ने की इच्छा जताई थी. उन्हें किताबें देने के साथ ही 10वीं की खुली परीक्षा के लिए आवेदन करने में मदद की गई. परीक्षा की तैयारी के लिए उन्हें मुफ्त कोचिंग भी दी जाएगी. इससे आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों को बाहरी दुनिया से जुड़ने में मदद मिलेगी और वे स्वरोजगार कर सकते हैं या भविष्य में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन कर सकेंगे."