रायपुर: लघु और मध्यम किसान पूरी तरह से वर्षा आधारित खेती पर निर्भर रहते हैं. मानसून के समय किसान दलहन और तिलहन की खेती करते हैं. बड़े किसान सिंचाई के माध्यम से खेती करते हैं. लेकिन गरीब और लघु किसान मानसूनी बारिश पर आधारित रहकर खेती से अपने परिवार का गुजर बसर करते हैं. प्रदेश के किसानों को मानसून का बेसब्री से इंतजार रहता है.
"जून के महीने में छत्तीसगढ़ में बारिश के दस्तक देते ही प्रदेश के किसान खरीफ की फसल धान लगाने वाले किसान जो मानसून पर आधारित है, वे किसान बारिश के बाद ही धान का रोपा और थरहा लगाते हैं. रोपा लगाने के बाद प्रदेश के किसान थरहा लगाते हैं. मानसून के आते ही जमीन में नमी की मात्रा 80% तक पहुंच जाती है. बारिश के मौसम में अरहर और सोयाबीन की फसल भी ली जा सकती है. गोबर खाद को मुख्य खेत तक पहुंचाना खेतों की साफ सफाई निंदाई का काम किया जाता है." - डॉ घनश्याम साहू, आईजीकेवी के कृषि वैज्ञानिक
किसानों के लिए बरिश बेहद जरूरी: आईजीकेवी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ घनश्याम साहू ने बताया कि "मानसून के समय ही छत्तीसगढ़ के किसान खेतों की लेबलिंग का काम भी शुरू करते हैं. प्रदेश के किसानों को मानसून का बेसब्री से इंतजार रहता है. जिस साल बारिश अच्छी होती है, तो किसानों को फसल की पैदावार अच्छी मिलती है. लेकिन जिस समय बारिश कम होती है, उस समय फसल की पैदावार भी कम हो जाती है. किसान मूंगफली, उड़द, अरहर जैसी चीजें भी इस मानसून सीजन में लगा सकते हैं. कुछ किसान चिंतित भी रहते हैं, जिन खेतों में पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं रहती, वहां पर किसान बुवाई का काम पहले करते हैं. जिसके बाद दूसरे खेत जिसमें कम पानी वाली होती है, उसमें दूसरी चीजों की खेती करते हैं."
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मानसून में देरी: छत्तीसगढ़ में 20 साल पहले मानसून 15 से 18 जून के मध्य शुरू हो जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सही समय पर मानसून छत्तीसगढ़ नहीं पहुंच रहा है. प्रदेश के अधिकांश किसान मानसूनी बारिश पर निर्भर रहते हैं. किसान मानसूनी बारिश शुरू होने के बाद ही अपनी खेती कार्य शुरू करते हैं.