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आजादी का अमृत महोत्सव: जब कंडेल सत्याग्रह में शामिल होने छत्तीसगढ़ आए थे महात्मा गांधी - Azadi Ka Amrit Mahotsav

आजादी के आंदोलन में कंडेल सत्याग्रह का अहम योगदान है. गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती (Know Kandel Satyagraha on azadi ka amrit mahotsav) थी.

Kandel Satyagraha
कंडेल सत्याग्रह
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Published : Aug 6, 2022, 6:40 PM IST

Updated : Aug 6, 2022, 7:28 PM IST

रायपुर: पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस उपलक्ष्य पर हर घर तिरंगा का अभियान चलाया गया है. लोग बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं. इस मौके पर ईटीवी भारत कंडेल सत्याग्रह के बारे में आपको बताने जा रहा है. ये वही सत्याग्रह है, जिसके लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ आए (Know Kandel Satyagraha on azadi ka amrit mahotsav) थे.

दरअसल, महात्मा गांधी पहली बार 1920 में कंडेल सत्याग्रह में हिस्सा लेने छत्तीसगढ़ आए थे. वहीं दूसरी बार 1933 में गांधी छत्तीसगढ़ पधारे. उनकी इन यात्राओं के दौरान कई दिलचस्प वाकये हुए, जो आज भी इतिहासकार याद करते हैं. चलिए हम आपको इन यात्राओं के दौरान हुई दिलचस्प घटनाओं से रू-ब-रू कराते हैं.

किसानों ने धमतरी में की थी बगावत: 1920 के आसपास महात्मा गांधी भारत के सबसे बड़े नेता को तौर पर स्थापित हो चुके थे. देश के लोग अपनी आवाज गांधी में खोजने लगे थी. इस दौरान धमतरी के पास अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ किसानों ने बगावत कर दी. प्रशासन किसानों पर पानी चुराने का आरोप लगा कर लगान वसूली कर रहा था और उनके मवेशियों को जब्त कर रहा था. इससे इलाके के किसान बेहद दुखी थे. तंग आकर छत्तीसगढ़ के स्थानीय नेताओं ने इस आंदोलन में गांधी जी को शामिल करने का फैसला किया. पंडित सुंदरलाल शर्मा गांधी जी को लेने कोलकाता गए.

गांधी ने जनसभा की तो मैदान का नाम पड़ गया गांधी मैदान: 20 दिसंबर, 1920 को रायपुर रेलवे स्टेशन पर गांधी जी का भव्य स्वागत हुआ. उनकी एक झलक पाने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा था उसी शाम गांधी जी ने एक जनसभा को संबोधित किया जिसे आज भी रायपुर में गांधी मैदान के नाम से जाना जाता है.

गांधी को सुनने के लिए उमड़ी भीड़: धमतरी में भी गांधी की सभा में शामिल होने के लिए अपार जन समूह मौजूद था. हालात कुछ इस तरह के बन गए कि गांधी मंच तक ही नहीं पहुंच पा रहे थे, तब उन्हें गुरुर के उमर सेठ अपने कंधे पर बैठाकर मंच तक लेकर आए.

आदेश वापस लेने को मजबूर हुए अधिकारी: इधर कंडेल सत्याग्रह में गांधी जी के आने की खबर सुनकर सिंचाई विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर फूल गए. उन्होंने किसानों के खिलाफ दिए आदेश को वापस ले लिया.

यह भी पढ़ें: हर घर तिरंगा अभियान 2022 : कोरिया के केंद्रीय स्कूल में निकली प्रभात फेरी

गांधीजी की स्मृति साथ ले गए लोग: धमतरी से लौटने के बाद शाम को गांधी जी ने कंकाली पारा स्थित आनंद समाज लाइब्रेरी के पास एक विशाल सभा को संबोधित किया था. उस दौरान मोहन दास करमचंद गांधी की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस चबूतरे से उन्होंने सभा को संबोधित किया था, उस चबूतरे के ईंटों को निकालकर लोग अपने साथ बतौर स्मृति ले गए.

लोगों ने खुलकर तिलक स्वराज फंड में दिया दान: गांधी जी की इस यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के लोगों ने दिल खोलकर तिलक स्वराज फंड में दान दिया. महात्मा गांधी रायपुर से सीधे नागपुर रवाना हुए, जहां कांग्रेस के सम्मेलन में वे असहयोग आंदोलन का ऐलान करने वाले थे. इस घोषणा को सुनने के लिए रायपुर से पंडित सुंदरलाल शर्मा और रविशंकर शुक्ल समेत कई नेता नागपुर गए थे.

रायपुर: पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस उपलक्ष्य पर हर घर तिरंगा का अभियान चलाया गया है. लोग बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं. इस मौके पर ईटीवी भारत कंडेल सत्याग्रह के बारे में आपको बताने जा रहा है. ये वही सत्याग्रह है, जिसके लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ आए (Know Kandel Satyagraha on azadi ka amrit mahotsav) थे.

दरअसल, महात्मा गांधी पहली बार 1920 में कंडेल सत्याग्रह में हिस्सा लेने छत्तीसगढ़ आए थे. वहीं दूसरी बार 1933 में गांधी छत्तीसगढ़ पधारे. उनकी इन यात्राओं के दौरान कई दिलचस्प वाकये हुए, जो आज भी इतिहासकार याद करते हैं. चलिए हम आपको इन यात्राओं के दौरान हुई दिलचस्प घटनाओं से रू-ब-रू कराते हैं.

किसानों ने धमतरी में की थी बगावत: 1920 के आसपास महात्मा गांधी भारत के सबसे बड़े नेता को तौर पर स्थापित हो चुके थे. देश के लोग अपनी आवाज गांधी में खोजने लगे थी. इस दौरान धमतरी के पास अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ किसानों ने बगावत कर दी. प्रशासन किसानों पर पानी चुराने का आरोप लगा कर लगान वसूली कर रहा था और उनके मवेशियों को जब्त कर रहा था. इससे इलाके के किसान बेहद दुखी थे. तंग आकर छत्तीसगढ़ के स्थानीय नेताओं ने इस आंदोलन में गांधी जी को शामिल करने का फैसला किया. पंडित सुंदरलाल शर्मा गांधी जी को लेने कोलकाता गए.

गांधी ने जनसभा की तो मैदान का नाम पड़ गया गांधी मैदान: 20 दिसंबर, 1920 को रायपुर रेलवे स्टेशन पर गांधी जी का भव्य स्वागत हुआ. उनकी एक झलक पाने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा था उसी शाम गांधी जी ने एक जनसभा को संबोधित किया जिसे आज भी रायपुर में गांधी मैदान के नाम से जाना जाता है.

गांधी को सुनने के लिए उमड़ी भीड़: धमतरी में भी गांधी की सभा में शामिल होने के लिए अपार जन समूह मौजूद था. हालात कुछ इस तरह के बन गए कि गांधी मंच तक ही नहीं पहुंच पा रहे थे, तब उन्हें गुरुर के उमर सेठ अपने कंधे पर बैठाकर मंच तक लेकर आए.

आदेश वापस लेने को मजबूर हुए अधिकारी: इधर कंडेल सत्याग्रह में गांधी जी के आने की खबर सुनकर सिंचाई विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर फूल गए. उन्होंने किसानों के खिलाफ दिए आदेश को वापस ले लिया.

यह भी पढ़ें: हर घर तिरंगा अभियान 2022 : कोरिया के केंद्रीय स्कूल में निकली प्रभात फेरी

गांधीजी की स्मृति साथ ले गए लोग: धमतरी से लौटने के बाद शाम को गांधी जी ने कंकाली पारा स्थित आनंद समाज लाइब्रेरी के पास एक विशाल सभा को संबोधित किया था. उस दौरान मोहन दास करमचंद गांधी की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस चबूतरे से उन्होंने सभा को संबोधित किया था, उस चबूतरे के ईंटों को निकालकर लोग अपने साथ बतौर स्मृति ले गए.

लोगों ने खुलकर तिलक स्वराज फंड में दिया दान: गांधी जी की इस यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के लोगों ने दिल खोलकर तिलक स्वराज फंड में दान दिया. महात्मा गांधी रायपुर से सीधे नागपुर रवाना हुए, जहां कांग्रेस के सम्मेलन में वे असहयोग आंदोलन का ऐलान करने वाले थे. इस घोषणा को सुनने के लिए रायपुर से पंडित सुंदरलाल शर्मा और रविशंकर शुक्ल समेत कई नेता नागपुर गए थे.

Last Updated : Aug 6, 2022, 7:28 PM IST
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