रायपुर: छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों को अब जियो टैगिंग के माध्यम से नजदीकी गौठान की सटीक जानकारी मिल सकेगी. प्रदेश में गौठानों के जियो टैगिंग का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है. वर्तमान में 3 हजार 350 गौठानों की जियो टैगिंग की जा चुकी है. इससे ग्रामीणों के लिए अपने पशुओं के नजदीकी गौठान में व्यस्थापन में काफी सहूलियत होगी. जियो टैगिंग करने से न सिर्फ गौठान की लोकेशन की जानकारी मिलेगी, बल्कि पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान और बधियाकरण जैसे कामों के लिए पशु पालकों और पशु पालन विभाग को भी आसानी होगी.
प्रदेश के गौठानों की सटीक स्थिति पता करने के लिए विभागीय वेबसाइट http://nggb.cg.nic.in में जियो टैगिंग गौठान बटन दबाने पर नक्शे पर गौठान की स्थिति और फोटो की जानकारी प्राप्त की जा सकती है. गौठानों के जियो टैग का काम पशुधन विकास विभाग के कर्मचारी गौठान पर पहुंच कर मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग कर अक्षांश और देशांतर दर्ज करेंगे.
लॉकडाउन के बाद बचे हुए गौठानों की जिया टैगिंग
वर्तमान में प्रदेश में आधे से अधिक ग्राम पंचायतों में गौठानों के कार्य स्वीकृत किए जा चुके हैं और 1 हजार 929 गौठान पूर्ण हो चुके हैं. प्रदेश में कुल 10 हजार 5 ग्राम पंचायतों में से 5 हजार 409 ग्राम पंचायतों में गौठान स्वीकृत किए जा चुके हैं. स्वीकृत गौठानों को पूरा करने की प्रक्रिया तेजी से की जा रही है. वहीं बचे हुए ग्राम पंचायतों में भी गौठानों के काम लगातार स्वीकृत किए जा रहे हैं. लॉकडाउन के बाद बचे हुए गौठानों की भी जिया टैगिंग प्राथमिकता से की जाएगी.
स्व-सहायता समूहों के लिए खुला आय का साधन
छत्तीसगढ़ शासन की सुराजी ग्राम योजना के तहत राज्य में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से गांव-गांव में नरवा, गरूवा, घुरवा और बाड़ी के विकास के काम प्राथमिकता से कराए जा रहे हैं. सुराजी ग्राम योजना के महत्वपूर्ण घटक गरूवा के अंतर्गत ग्राम पंचायतों में पशुओं के लिए गौठान का निर्माण कराया जा रहा है. गौठानों में गांव के पशुओं का उचित व्यस्थापन हो रहा है, इसके साथ ही साथ यहां गोबर और गौ मूत्र से कम्पोस्ट खाद और वर्मी खाद बनाने, गमला, दिया, धूप बत्ती निर्माण की गतिविधियां भी स्व-सहायता समूहों की ओर से संचालित की जा रही है, जिनसे स्व-सहायता समूहों को आय भी हो रही है.