रायपुर: हमारे शरीर में आंख सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है. अगर हम दुनिया की खूबसूरती को महसूस कर रहे हैं तो आंख ही वो जरिया है. आंख के बिना इंसान जी तो सकता है, लेकिन उसकी दुनिया कैसी हो सकती है, इसकी कल्पना वहीं कर सकता है जिसने कभी दुनिया देखी हो और अचानक किसी हादसे में अपनी आंखें खो दी हो. आंख इंसानों के लिए कुदरत की दी हुई सबसे नायाब तोहफे में से एक है. आज हम इसी की देखभाल से संबंधित जानकारी दे रहे हैं. इसपर विशेष जानकारी देने के लिए हमारे साथ हैं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अस्पताल के एसोसिएट प्रोफेसर और रेटीना सर्जन डॉक्टर संतोष सिंह पटेल.
सवाल: गर्मियों में आंखों का कैसे ख्याल रखें ?
जवाब: ज्यादा गर्मी या देर तक धूप में रहने से ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या होती है. इसमें आंखों में छोटे-छोटे दाने हो जाते हैं. आंखों में खुजली होने के साथ पानी निकलता है. गर्मी के दिनों में ये समस्या ज्यादा होती है. ये समस्या छोटे-बड़े सभी लोगों में देखी जाती है. इनसे बचने के धूप में कम से कम निकलना चाहिए. समय-समय पर पानी पीते रहना चाहिए. धूल और प्रदूषण से आंखों को बचाना चाहिए. धूप में निकलते समय अच्छे क्वालिटी के धूप चश्मे का इस्तेमाल करना चाहिए.
सवाल: कोरोना के दौरान लोग इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा करीब आये हैं.
जवाब: कोरोना संक्रमण काल में लॉकडाउन के दौरान सभी स्कूल-कॉलेज बंद रहे. कई निजी कंपनियों के साथ सरकारी विभाग ने भी वर्क फ्रॉम होम का आप्शन दिया. जिससे लोग स्क्रीन पर ज्यादा से ज्यादा समय बिताने लगे. लगातार स्क्रीन पर काम और पढ़ाई करने के कारण कई लोगों के चशमे का नंबर बढ़ गया. कई लोग जिनकी आंखे ठीक थी, उन्हें चशमा लगाना पड़ा. ऐसे में लोगों को बड़ी स्क्रीन पर शिफ्ट होना चाहिए. बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस के लिए मोबाइल की जगह टैबलेट या लैपटॉप का इस्तेमाल करना चाहिए. घर में मनोरंजन के लिए टेलीविजन का इस्तेमाल करना चाहिए. कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल करना चाहिए.
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सवाल: कई लोगों में संक्रमण के बाद आंखों से संबंधित समस्या देखी गई है.
जवाब: कोरोना संक्रमण में पेशेंट ज्यादा कमजोर हो जाते हैं. कमजोरी और वेट लॉस के कारण आंखों में ड्राइनेस और लालिमा आ जाती है. हालांकि ऐसा कुछ ही कोरोना पेशेंट में देखा गया है. कुछ लोगों में रेटिना की समस्या भी आई है. अगर ऐसी कोई समस्या है तो उन्हें आंखों की जांच कराना चाहिए. हालांकि कोरोना के कारण आंखों से संबंधित कोई बड़ा रोग नहीं होता है. अगर कोई समस्या होती है तो वह इलाज से ठीक हो सकती है.
सवाल: कुछ लोग आंखों की देखभाल के लिए self-medication भी करते हैं. उन्हें क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
जवाब: आंखों में किसी भी प्रकार की समस्या के लिए कभी भी self-medication नहीं लेना चाहिए. self-medication में कई बार गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है. गर्मी के दिनों में ड्राई आई के साथ इचिंग की समस्या होती है. ज्यादातर देखा गया है कि एलर्जी में लोग मेडिकल शॉप या गांव के प्रैक्टिशनर से कोई भी ड्राप ले लेते हैं. इससे तुरंत लाभ मिलता है और आंखों से लालिमा चली जाती है. आंखों से खुजली खत्म हो जाती है और लोग अच्छा महसूस करते हैं, लेकिन ऐसी दवाईयों का इस्तेमाल लंबे समय तक करने से आंखों में काला मोतियाबिंद की समस्या हो जाती है. जिससे कारण आंखों की रोशनी धीरे-धीरे चली जाती है. शुरुआत में इसका पता नहीं चलता और एक समय बाद आंखों की पूरी रोशनी खत्म हो जाती है. जिसे बाद में ठीक करना मुमकिन नहीं है. लोगों को हमेशा अच्छे डॉक्टर की सलाह से ही आंखों के लिए कोी दवा लेनी चाहिए. समय-समय पर आंखों की जांच भी कराते रहना चाहिए.
सवाल: आई चेकअप को लेकर लोग कन्फ्यूज रहते हैं कि कब और क्यों आंखों की जांच कराना चाहिए?
जवाब: सबसे पहले बात नवजात की करते हैं. अगर बच्चे का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से है. फुल टर्म और नॉरमल बर्थ है, तो कोई समस्या नहीं है. फिर भी अगर कोई समस्या होती है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. 5 से 6 साल की उम्र में बच्चों का एक बार नॉर्मल आई चेकअप कराना ही चाहिए. एक एम्बलायोपिया बीमारी होती है. जिसमें आखों के चश्मे का नम्बर अलग-अलग होता है. इसमें एक आंख से अच्छा दिखता रहता है और हम काम चलाते रहते हैं, लेकिन जब हम बड़े होते हैं तो पता चलता है कि दूसरी आंख में अलग नंबर का चश्मा था. जिसका इस्तेमाल नहीं किया और जब एज हो जाती है और उस नंबर का चश्मा लगाया जाता है तो दिखाई नहीं देता है. अगर 5 से 6 साल की उम्र में इस बीमारी का पता लगाकर चश्मा लगाएं तो इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है.
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इसके बाद जब 40 साल की उम्र होती है. उस दौरान आंखों का चेकअप कराना चाहिए. क्योंकि एक समय के बाद आंखों में पास का चश्मा लगता है. उसके बाद 50-60 साल की उम्र में ग्लोकोमा और कैटरेक्ट के लिए आखों का चेकअप कराना चाहिए.
यदि बच्चा प्रीमेच्योर पैदा होता है तो उसके जन्म के दो हफ्ता या 3 हफ्ते में एक रेटीना चेकअप कराना बेहद आवश्यक है, क्योंकि उसका इलाज बच्चे के एक से डेढ़ महीने के भीतर ही करना होता है. अगर समय पर इलाज नहीं किया गया तो बच्चा हमेशा के लिए ब्लाइंड रहेगा.
सवाल: डायबिटीज मरीजों को आंखों के लिए क्या सावधानियां रखनी चाहिए ?
जवाब: डायबिटीज मल्टी ऑर्गन डिजीज है. जो शरीर के बहुत सारे अंगों को प्रभावित करती है इसमें से एक आंख भी है. अगर डायबिटीज को कंट्रोल में रखा जाए तो किसी भी ऑर्गन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. अनकंट्रोल डायबिटीज के कारण अगर आंखों में कोई प्रॉब्लम होती है तो आंखों का सालाना चेकअप कराना चाहिए. जिससे आंखों की रोशनी बनी रहेगी. मरीज अनकंट्रोल डायबिटीज में रहते हैं और आंखों का चेकअप नहीं कराते हैं. एक समय के बाद उनकी रेटिना में समस्या होती है और आंखों के पर्दे में खून का थक्का जमना और रोशनी खराब होना शुरू होता है. इन सभी का सबसे अच्छा इलाज है कि अपने डायबिटीज को कंट्रोल में रखें. हेल्थी रहें और समय-समय पर चेकअप कराते रहें.
सवाल: कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में आंखों को लेकर क्या सावधानियां बरतनी चाहिए ?
जवाब: इससे बचाव के लिए दिए गए गाइडलाइन का पालन करना चाहिए. कभी भी किसी से मिलते समय अपने नाक और मुंह को ढंक कर रखें. कभी भी अपने फेस को टच करने से पहले अपना हाथ हमेशा धोएं. आंखों को सुरक्षित रखने के लिए कभी भी किसी से हाथ मिलाने या किसी चीज को छूने के बाद बिना हाथ धूले आंखों को नहीं छूना चाहिए. मौसमी फल और हरी सब्जियां खाते रहें.