रायपुर : होली से पहले के आठ दिनों में विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना लाभकारी माना जाता है.इन 8 दिनों के दौरान, विष्णु के भक्त प्रह्लाद ने स्वयं भगवान विष्णु की पूजा की और बदले में स्वयं भगवान ने उनकी सहायता की. इसलिए होलाष्टक के दौरान लोग स्नान, मंत्र, विभिन्न देवी-देवताओं की स्तुति करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. इस दौरान यह सुझाव दिया जाता है कि व्यक्ति को अधिक से अधिक भगवद भजन और वैदिक अनुष्ठान, यज्ञ करने चाहिए ताकि वे अपने सभी कष्टों से छुटकारा पा सकें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार के रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती है और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.
होलाष्टक में क्या न करें : जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि होलाष्टक के इन 8 दिनों में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और अन्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं. इसके अलावा, अंत्येष्टि को छोड़कर बाकी सभी सांस्कृतिक कार्य इन दिनों में नहीं किए जा सकते हैं. होलाष्टक के दौरान बहुओं के घर आने, सगाई करने, गोद भराई करने और सूर्य की पूजा करने और बच्चे के जन्म के बाद छठ पूजा करने के लिए कोई अच्छा मुहूर्त नहीं होता है. साथ ही इन 8 दिनों में कोई नया व्यापार शुरू करना भी अशुभ माना जाता है.
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क्या है होलाष्टक की पौराणिक कथा : ऐसा माना जाता है कि इन 8 दिनों में राजा हिरण्यकशिप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की पूजा करने और उनके प्रति अपनी भक्ति दिखाने से रोकने के लिए कई तरह की यातनाएं दी थीं.लेकिन विष्णु की कृपा से प्रह्लाद ने साहस के साथ हर मुश्किल का सामना किया. इससे हिरण्यकशिपु अपनी बहन होलिका के पास गया. मदद के लिए होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में रखकर उसे आग लगाने को कहा.क्योंकि होलिका को वरदान मिला था कि वो आग से नहीं जल सकती.लेकिन होलिका जिसे गोद में लेकर बैठी थी.वो विष्णु का अनन्य भक्त था. इसलिए आग लगते ही होलिका उसमें भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया. ये दिन अष्टमी का था. इसी दिन हिरण्यकश्यप का वध भगवान के नरसिंह अवतार ने किया. इसलिए होलाष्टक समाप्ति की तिथि भी यही है.