रायपुर: राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार हर साल भारत देश में 26 जनवरी को बहादुर बच्चों को दिया जाता है. 1957 में इस पुरस्कार की शुरुआत की गई थी, जिसकी शुरुआत भारतीय बाल कल्याण परिषद ने की. खास बात यह है कि जिन बच्चों को यह पुरस्कार दिया जाता है उन बच्चों की पढ़ाई का खर्चा पूरा परिषद उठाता है. पुरस्कार के तौर पर बच्चों को प्रमाण पत्र एक पदक और नगद राशि दी जाती है. 6 से 18 साल के बच्चे तक को यह पुरस्कार दिया जाता है. गणतंत्र दिवस के दिन बहादुर बच्चे हाथी की सवारी करते हुए परेड में शामिल होते हैं.
कब शुरू हुआ था राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार: सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू ने साल 1957 में हरीश मेहरा को सबसे पहले बहादुरी का पुरस्कार दिया था. उस समय हरीश मेहरा की उम्र 14 साल के थे. दरअसल 2 अक्टूबर 1957 को रामलीला मैदान में रामलीला चल रहा था. अचानक आग आग की लपटें वहां पहले लगी. जहां पर पंडित जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी जगजीवन राम आदि हस्तियां मौजूद थी. गौरतलब है कि हरीश भी वहां पर वॉलिंटियर के तौर पर मौजूद थे. जैसे ही हरीश ने आग को फैलते देखा तो उन्होंने तुरंत 20 फीट ऊंचे खंभे के सहारे ऊंचाई पर चढ़ते हुए अपनी आंखों से उस बिजली की तार को काट डाला. ऐसा करने पर शरीर के दोनों हाथ बुरी तरह से जल चुके थे.
हरीश की ऐसी अद्भुत साहस को देखकर जवाहरलाल नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हरीश को नेशनल लेवल पर सम्मानित किया और वह इसे इतिहास के पन्नों में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाले पहला बच्चा हरीश मेहरा बने. भारतीय बाल कल्याण परिषद अब तक 871 बच्चों को पुरस्कार दिया जा चुका है, जिसमें से 253 लड़कियां शामिल है. वहीं 618 लड़के को यह पुरस्कार मिला है.
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वीरता पुरस्कार क्यों दिया जाता है: वीरता पुरस्कार उन बच्चों को दिया जाता है अपनी जान की परवाह न करते हुए देश, राज्य और यहां के लोगों के लिए कुछ साहस पूर्ण कार्य करते हैं. जिस वजह से उनका नाम रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया जाता है. सूची में आने के बाद उन्हें वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है.रा राज्य के लिए यह साल बेहद ही खास है. पिछली बार ही राज्य के एक नागरिक ने ऊंचे पर्वत पर जाकर भारत का झंडा लहराया था. जिस वजह से भी उसका नाम रिकॉर्ड में दर्ज हुआ और अंतरराष्ट्रीय लेवल पर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन हुआ.