रायपुर: दिल्ली में हुई भाजपा चुनाव समिति की बैठक से छन-छनकर जो खबर आ रही है, उससे प्रदेश की सियासत में खलबली सी मच गई है. दरअसल, मंगलवार को भाजपा कार्य समिति की बैठक में छत्तीसगढ़ के एक भी प्रत्याशी का नाम तय नहीं हो पाया है. पार्टी आलाकमान ने सभी सीटिंग सांसदों के नाम को रिजेक्ट कर दिया है और प्रदेश प्रभारी अनिल जैन को नए नाम लाने के लिए कहा है. कहा ये भी जा रहा है कि पिछला चुनाव हारने वाले और हाल ही में विधानसभा चुनाव हारने वालों को भी पार्टी उम्मीदवार नहीं बनाएगी.
बता दें कि पार्टी इस बार प्रदेश के सबसे लंबे समय तक सांसद रहे नेता रमेश बैस को टिकट नहीं देने वाली है. वहीं ये भी बताया जा रहा है कि राजनांदगांव विधानसभा में अभिषेक सिंह को टिकट न देकर उनके पिता पूर्व सीएम रमन सिंह का नाम जोड़ा जाएगा. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी अब अभिषेक सिंह को प्रदेश लेवल में मौका देकर रमन सिंह को केन्द्र की ओर बुलाना चाह रही है.
फैसले का क्या असर पड़ सकता है
1. सात बार से लगातार जीतने वाला सांसद मुकाबले हो जाएगा बाहर- जी हां, अगर भाजपा आलाकमान छत्तीसगढ़ के सभी सांसदों को इस बार बदलने का फैसला कर लेता है, तो प्रदेश की सियासत में जो सबसे बड़ा बदलाव आएगा, उनमें रमेश बैस का इस चुनाव में हिस्सा न लेना होगा. लगातार सात बार से लोकसभा चुनाव जीत रहे रमेश बैस राजधानी रायपुर सीट को भाजपा का मजबूत किला बना दिया है. वे हर बार बड़े अंतर से चुनाव जीतते रहे हैं. ग्रामीण पॉलीटिक्स में गहरी पैठ रखने वाले बैस अटल सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें इस बार भी प्रबल दावेदार माना जा रहा है, लेकिन खबरों के मुताबिक उनका नाम इस बार काट दिया जाता है, तो इसे चुनाव के पहले बड़ा उलटफेर कहा जाएगा.
2. कहा जा रहा है कि रमन सिंह को राजनांदगांव से उनके पुत्र की जगह पर उतारा जा सकता है. धरमलाल कौशिक बिलासपुर और बृजमोहन अग्रवाल रायपुर से और वहीं कोरबा से ननकीराम कंवर को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है, लेकिन इस फार्मूले से पार्टी के पास बस्तर, कांकेर और दुर्ग में एक शसक्त प्रत्याशी की तलाश मुश्किल हो सकती है.
3. आगर सिर्फ यही फॉर्मूला अपनाया गया, तो पार्टी के पास जातिगत समीकरण को साधने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
4. कांग्रेस के पास ये कहने का मौका रहेगा कि भाजपा सांसद पांच साल निष्क्रिय रहे, तभी भाजपा नेतृत्व ने अपने सभी सांसदों को घर बैठा दिया है.
5. भीतरघात का भी खतरा- एक साथ सभी दस सांसदों का टिकट काटने से पार्टी में भीतरघात होने का खतरा भी मंडरा सकता है. अगर ये नेता भले ही पार्टी के विरोध में कुछ न करें अगर ये पार्टी के पक्ष में काम नहीं करेंगे, तो भी इसका चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है.