रायपुर: दुर्गा पूजा के आखिरी दिन विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन बंगाली समाज के लोगों के लिए 'सिंदूर खेला' का विशेष महत्व होता है. सुहागिन महिलाएं 'सिंदूर खेला' रस्म में भाग लेती हैं. इसी के साथ दुर्गा पूजा समाप्त हो जाती है.
सिंदूर खेला का महत्व
- बंगाल में ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा अपने चारों बच्चों मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय के साथ धरती पर अवतरित होती हैं और विजयदशमी के दिन मां वापस अपने घर लौट जाती हैं.
- मां को विदा करने से पहले सुहागिन महिलाएं एक विशेष परम्परा मनाती है, जिसे सिंदूर दान या सिंदूर खेला कहते हैं.
- इस दिन घर की सुहागिन महिलाएं नए कपड़े और गहनें पहनकर मां दुर्गा के पंडाल जाती हैं. पंडाल में महिलाएं पान, शंख, मिठाई और सिंदूर लेकर जाती हैं.
- इस रस्म में सबसे पहले पान के पत्ते से मां के दोनों गालों को स्पर्श करते हुए वरण करती हैं. इसके बाद उन्हें सिंदूर पहनाती हैं और वहीं सिंदूर से अपनी मांग और शाखा (विशेष चूड़ी) को स्पर्श करती हैं.
- इस रस्म के आखिरी में अन्य सुहागिनों को मिठाई खिलाकर और सिंदूर लगाकर सौभाग्य का आशिष लेती हैं. इस तरह हर साल मां दुर्गा को दशहरा के दिन विदा करने की परंपरा चली आ रही है.