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Navaratri Ghat Sthapana : चैत्र नवरात्रि का शुभ मुहूर्त और महत्व जानिए - Ghat Sthapana

सनातन परंपरा में माता को भगवती शक्ति, साहस, ज्ञान विज्ञान लक्ष्मी और बुद्धि का प्रतीक माना गया है. चैत्र नवरात्र ऋतु परिवर्तन नई फसल के आगमन का समय है. यह संक्रमण काल का समय माना गया है. यहां से हिंदू नव पंचांग की शुरुआत होती है.Chaitra Navratri Ghat Sthapana

Chaitra navaratri 2023
नवरात्रि का जीवन में महत्व
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Published : Mar 14, 2023, 5:42 PM IST

Updated : Mar 21, 2023, 6:48 PM IST

हिंदू नव पंचांग की शुरुआत

रायपुर : हिंदू पंचांग पांच तत्व तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन तथ्यों पर आधारित है. अर्थात इन पांचों से मिलकर हिंदू पंचांग बनता है. कुल 7 वार, 15 तिथि, 27 नक्षत्र, 27 योग और 11 करण माने गए हैं. नव हिंदू पंचांग चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं. मूल रूप में यह तिथि सृष्टि स्थापना दिवस और नूतन आर्य हर्ष के रूप में जाना जाता है.


हिंदू नववर्ष का स्वागत :ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "यह सनातन सभ्यता में नवीन वर्ष है. इसका स्वागत पूजन उत्साह उमंग और उल्लास से किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवती मां दुर्गा ने दैत्य शक्तियों का विनाश करने के लिए और मानवता को बचाए रखने के लिए समस्त राक्षसों और नकारात्मक शक्तियों का सर्वनाश किया. तब से ही भगवती की पूजन आराधना की जाती है.''

कई जगहों पर होती है घट स्थापना : ''चैत्र शुक्ल पक्ष में जगह जगह माता की स्थापना की जाती है. 22 मार्च को घट स्थापन का समय सुबह 11:36 से लेकर दोपहर दोपहर 12:24 तक है. यह नवरात्र का आरंभ कहलाता है. इस वर्ष का संवत्सर नाम पिंगल है. महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है. यह प्रकृति या सृष्टि के जन्म होने का समय माना गया है. यह ऋतु परिवर्तन का समय है. इस समय यज्ञ, हवन, पूजन पाठ, मंत्र सिद्धि ध्यान आदि करना पूर्णता सफल माना जाता है."


नवरात्रि में माता के नौ रूपों की पूजा : :ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "9 दिन माता भगवती की पूजा की जाती है. दुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, स्कंद माता, सिद्धिदात्री, महागौरी आदि अनेक रूपों में मां दुर्गा की पूजा की जाती है. अलग-अलग स्थानों पर दुर्गा के पंडाल लगाए जाते हैं. यह संपूर्ण पक्ष उजियारे प्रकाश आत्मानुभूति का है. यह समय परिवार घर और कुटुंबीजनों के साथ बैठकर नए रूप में जीवन को संवारने का है. यह नए संकल्पों नए प्रकल्पों का महापर्व है. पूरे दिवस मंदिरों में चमक रोशनी और बिजली रहती है. जगह-जगह जवारे के साथ माता की स्थापना की जाती है.

ये भी पढ़ें- 1100 साल पुराने हनुमान मंदिर की महिमा, फूल चढ़ाने से होती है मन्नत पूरी

जीवन में आती है नई ऊर्जा : पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक : सभी मंदिरों में नवरात्रि के दीपक जलाए जाते हैं. यह दीपक तेल अथवा घी के द्वारा जलाए जाते हैं. चारों तरफ उत्साह, उर्जा और धनात्मकता का अद्भुत वातावरण देखने को मिलता है. चैत्र शुक्ल पक्ष नवरात्रि हमारे जीवन को नए आयाम, नई ऊर्जा और नई गति प्रदान करती है. इससे हमारे दशा और दिशा का का निर्धारण होता है. चैत्र मास हिंदू पंचांग का सबसे पहला महीना माना गया है. इस दिन नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी की जन्म जयंती पूरे भारतवर्ष में उल्लास के साथ मनाई जाती है. मर्यादा पुरुषोत्तम जयंती वंशज भगवान रामचंद्र जी ने पिता की खातिर एक झटके में राजपाठ को छोड़ दिया. सत्य अहिंसा और परिग्रह ब्रम्हचर्य व्रत का पालन किया और संपूर्ण मानवता को महान संदेश प्रदान किया."

हिंदू नव पंचांग की शुरुआत

रायपुर : हिंदू पंचांग पांच तत्व तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन तथ्यों पर आधारित है. अर्थात इन पांचों से मिलकर हिंदू पंचांग बनता है. कुल 7 वार, 15 तिथि, 27 नक्षत्र, 27 योग और 11 करण माने गए हैं. नव हिंदू पंचांग चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं. मूल रूप में यह तिथि सृष्टि स्थापना दिवस और नूतन आर्य हर्ष के रूप में जाना जाता है.


हिंदू नववर्ष का स्वागत :ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "यह सनातन सभ्यता में नवीन वर्ष है. इसका स्वागत पूजन उत्साह उमंग और उल्लास से किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवती मां दुर्गा ने दैत्य शक्तियों का विनाश करने के लिए और मानवता को बचाए रखने के लिए समस्त राक्षसों और नकारात्मक शक्तियों का सर्वनाश किया. तब से ही भगवती की पूजन आराधना की जाती है.''

कई जगहों पर होती है घट स्थापना : ''चैत्र शुक्ल पक्ष में जगह जगह माता की स्थापना की जाती है. 22 मार्च को घट स्थापन का समय सुबह 11:36 से लेकर दोपहर दोपहर 12:24 तक है. यह नवरात्र का आरंभ कहलाता है. इस वर्ष का संवत्सर नाम पिंगल है. महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है. यह प्रकृति या सृष्टि के जन्म होने का समय माना गया है. यह ऋतु परिवर्तन का समय है. इस समय यज्ञ, हवन, पूजन पाठ, मंत्र सिद्धि ध्यान आदि करना पूर्णता सफल माना जाता है."


नवरात्रि में माता के नौ रूपों की पूजा : :ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "9 दिन माता भगवती की पूजा की जाती है. दुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, स्कंद माता, सिद्धिदात्री, महागौरी आदि अनेक रूपों में मां दुर्गा की पूजा की जाती है. अलग-अलग स्थानों पर दुर्गा के पंडाल लगाए जाते हैं. यह संपूर्ण पक्ष उजियारे प्रकाश आत्मानुभूति का है. यह समय परिवार घर और कुटुंबीजनों के साथ बैठकर नए रूप में जीवन को संवारने का है. यह नए संकल्पों नए प्रकल्पों का महापर्व है. पूरे दिवस मंदिरों में चमक रोशनी और बिजली रहती है. जगह-जगह जवारे के साथ माता की स्थापना की जाती है.

ये भी पढ़ें- 1100 साल पुराने हनुमान मंदिर की महिमा, फूल चढ़ाने से होती है मन्नत पूरी

जीवन में आती है नई ऊर्जा : पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक : सभी मंदिरों में नवरात्रि के दीपक जलाए जाते हैं. यह दीपक तेल अथवा घी के द्वारा जलाए जाते हैं. चारों तरफ उत्साह, उर्जा और धनात्मकता का अद्भुत वातावरण देखने को मिलता है. चैत्र शुक्ल पक्ष नवरात्रि हमारे जीवन को नए आयाम, नई ऊर्जा और नई गति प्रदान करती है. इससे हमारे दशा और दिशा का का निर्धारण होता है. चैत्र मास हिंदू पंचांग का सबसे पहला महीना माना गया है. इस दिन नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी की जन्म जयंती पूरे भारतवर्ष में उल्लास के साथ मनाई जाती है. मर्यादा पुरुषोत्तम जयंती वंशज भगवान रामचंद्र जी ने पिता की खातिर एक झटके में राजपाठ को छोड़ दिया. सत्य अहिंसा और परिग्रह ब्रम्हचर्य व्रत का पालन किया और संपूर्ण मानवता को महान संदेश प्रदान किया."

Last Updated : Mar 21, 2023, 6:48 PM IST
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