रायपुर: हजारों साल पहले मूर्ति बनाने की कला को धनीराम का परिवार आज भी जीवित कर रखा है. रायगढ़ के एकताल गांव में रहने वाले शिल्पकार धनीराम का परिवार (Craftsman Dhaniram family) अपने पुश्तैनी परंपरा यानी धातुओं में बारीक दस्तकारी कर अनोखी कलाकृतियां तैयार करने का काम करते हैं. इस कला को ढोकरा शिल्प कहा जाता है. ढोकरा आर्ट देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है.
इस क्षेत्र में धनीराम के पूरे परिवार को नेशनल पुरस्कार (National Award) मिल चुका है. पहले पिता गोविंद रामसिंह को भारत सरकार ने पुरस्कृत किया. उसके बाद धनीराम, फिर उसकी पत्नी धनमती को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. इतना ही नहीं बल्कि धनवती इकलौती ऐसी महिला है, जिसे ढोकरा आर्ट के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. ऐसे में ईटीवी भारत ने ढोकरा शिल्पकार धनीराम से खास बातचीत की.
सवाल: ढोकरा आर्ट के क्षेत्र में कब से काम कर रहे हैं?
जवाब: यह हमारा पुश्तैनी कला है. यह दादा दर पीढ़ी और मोहन जोदड़ो के समय से चला आ रहा है. इस पुश्तैनी परंपरा का अब मैं निर्वहन कर रहा हूं.
सवाल: कितने पुरस्कार आपको और आपके परिवार को मिल चुके हैं?
जवाब: सबसे पहले मेरे पिताजी को 1985 में मध्यप्रदेश शासन से शिखर सम्मान मिला था. उसके बाद दिल्ली में 1987 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. मेरे पिता जापान, हांगकांग, सिंगापुर, बैंकॉक हो आए हैं. वे भारत के हर कोने में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं. उसके बाद सन 2000 में मेरे पिताजी को छतीसगढ़ सरकार से दाऊ मंदराजी सम्मान मिला. उन्होंने बहुत सारे देशों में अपनी कला की ट्रेनिंग दी हैं. उसके बाद मुझे 1997 में इसी कला के क्षेत्र में नेशनल अवार्ड मिला है. भारत के हर राज्यों में प्रदर्शनी कर चुका हूं. इतना नहीं बल्कि ओडिसा और छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में बच्चों को इसकी ट्रेनिंग भी दिया है. मैंने अपना नए डिजाइन को भारत सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से अपने गांव में 100 परिवारों को भी ट्रेनिंग दी है. जिसकी वजह से गांव वालों का स्तर भी बेहतर हो सका है. मेरी पत्नी को भी नेशनल अवार्ड मिला है, जो वर्ल्ड में पहली महिला है. जिसे ढोकरा आर्ट के क्षेत्र में अवार्ड मिला है. हाल ही में मेरे बेटे को भी छत्तीसगढ़ शासन का स्टेट अवार्ड मिला है.
सवाल: क्या आप दूसरे राज्यों में भी ढोकरा आर्ट की ट्रेनिंग देते हैं?
जवाब: ढोकरा आर्ट के क्षेत्र में लोगों को जानकारी हो और इसे बढ़ावा देने के लिए ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में लोगों को ट्रेनिंग दे चुका हूं. कई राज्यों में लगने वाली प्रदर्शनी में भी शामिल हो चुका हूं, तीन बार विदेश दौरा भी किया है. जिसमें फ्रांस, मंगोलिया और सऊदी अरब शामिल हैं.
सवाल: अधुनिकता का दौर है, आप विदेशों तक गए, वहां लोग इस कला को किस तरह देखते हैं?
जवाब: हमारा जो पुश्तैनी डिजाइन है. हमारा जो पारंपरिक कल्चर है, उसको हम लोग दर्शाते हैं. जिसमें कि हमारा पुराना इतिहास को हम सामने लाते हैं. यदि बात खरीदी बिक्री की करें तो पहले हम लोग गांव क्षेत्रों के लिए काम करते थे. आज भी उसे करते हैं. जैसे कि गांव में महिलाओं के लिए कराट, कमर पट्टा, बाजूबंद समेत अनेक चीजे बनाते थे. इसके साथ ही लड़कियों को दहेज में देने वाला जागर, घंटी, देवी देवताओं से संबंधित काम करते हैं.
सवाल: ढोकरा आर्ट में कौन कौन सी डिजाइन है, इसे तैयार करने में कितना समय लगता है.
जवाब: जो सीखने वाले होते हैं, उनको ज्यादा टाइम नहीं लगता. जैसे पढ़ाई में जो क,का.. मात्रा जो पकड़ लिया तो वह पूरा कंप्लीट कर लेता है. इस टाइप का मन का रुचि होना चाहिए. छोटा हो या बड़ा हो समय लगेगा, लेकिन प्रगति एक ही है मतलब मेहनत तो अलग लगेगा काम के हिसाब से मान लीजिए कोई दो दिन का है कोई 5 दिन कोई 6 दिन कोई 7, लेकिन उसके काम का जरिया एक ही तरह का होता है.
सवाल: आप यदि बनाते हैं तो आपको कितना समय लगता है?
जवाब: कम से कम 4 से 5 दिन या एक सप्ताह लग जाता है. यदि आइटम धूप का मौसम है तो जल्दी हो जाता है, लेकिन बरसात या ठंड में थोड़ा कम होता है.
सवाल: इस कला को बढ़ावा देने के लिए आगे क्या करना चाहते हैं?
जवाब: मेरे दो बच्चे अभी जयपुर से डिजाइनर का कोर्स कर लौटे हैं. हमारे समाज में यह पहली बार हुआ है. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से इस कोर्स के लिए भेजा गया था. ऐसे में मेरा उद्देश्य है कि मेरे बच्चे 4 साल का जो कोर्स करके लौटे हैं, जो कुछ भी सीखा और डिजाइन बनाए हैं, उसको निकालेंगे और जो हमारे समाज के जो भी भाई बंधु भटक रहे हैं चूंकि सब लोग इस काम को छोड़ने की परिस्थिति में है. बहुत से लोग इसे करने की इच्छुक नहीं है. क्योंकि लगातार मटेरियल का रेट बढ़ रहा है. उस हिसाब से हमको मजबूरी, रोटी नहीं मिल पा रही है. इसलिए मेरे बच्चे जो पढ़ाई किए हैं तो उनका जो डिजाइन है. वो आगे जाके पूरे फैमिली में बांट करके सभी को नए डिजाइन का काम देंगें.
इस तरह मिला पुरस्कार
- पिता गोविंद राम- 1987 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
- धनीराम झोरका - 1997 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
- पत्नी धनमती झोरका- 2003 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
- बेटा- विजय झोरका- छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 2011-12 में स्टेट पुरस्कार से सम्मानित