रायपुर: एक मासूम बच्ची के साथ महिला कर्मचारी द्वारा बेरहमी से मारपीट की थी. मामले में दत्तक ग्रहण केंद्र में मासूम बच्चों को पीटने वाली प्रोग्राम मैनेजर सीमा द्विवेदी को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है. आइए जानते हैं कि दत्तक ग्रहण केंद्र क्या है? किन बच्चों को यहां रखा जाता है? स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को दत्तक केंद्र देने की क्या प्रक्रिया है? केंद्र में कौन-कौन सी सुविधाएं होती हैं? इन सारे सवालों के जवाब के लिए ईटीवी भारत की टीम ने महिला एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी निशा मिश्रा से खास बातचीत की.
सवाल: प्रदेश में कितने दत्तक केंद्र संचालित हैं?
जवाब: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वर्तमान में एक दत्तक ग्रहण केंद्र है. जिसका संचालन मातृछाया सेवा भारती के द्वारा किया जा रहा है.
सवाल: स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को दत्तक केंद्र देने की क्या प्रक्रिया है?
जवाब: दत्तक केंद्र देने के लिए विज्ञापन के जरिए एनजीओ के प्रस्ताव बनाए जाते हैं. जो स्वयंसेवी संस्थाएं विशेष रूप से महिला ओर बच्चों के कल्याण के क्षेत्र में काम कर रही हैं, उनके प्रस्ताव मंगाए जाते हैं. कुछ शर्ते होती है, उसके अनुसार दस्तावेज बुलाए जाते हैं. इसके लिए मापदंड निर्धारित किए गए हैं. इसके बाद आवेदन पत्र जिला स्क्रीनिंग कमिटी के पास पहुंचता है. उसके बाद संस्थाओं का प्रेजेंटेशन देखा जाता है. जिला स्तरीय समिति सबसे उपयुक्त पाए जाने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को चुनकर उसकी अनुशंसा राज्य शासन को भेजती है. उसके आज राज्य शासन इन दत्तक केंद्र को संचालित करने की स्वीकृति उस स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को देता है.
सवाल: स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को दत्तक केंद्र देने क्या स्थानीय को प्राथमिकता दी जाती है?
जवाब: ऐसा कोई जरूरी नहीं है. स्क्रीनिंग के दौरान बच्चों और महिलाओं के क्षेत्र में जिस स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) ने बहुत अच्छा काम किया है. जिस एनजीओ का कार्य का अनुभव इस क्षेत्र में अच्छा रहा है, उसे प्राथमिकता दी जाती है. उसमें स्थानीय वाली बात नहीं होती है, यह सभी छत्तीसगढ़ के ही होते हैं. इसलिए इसमें स्थानीय होना कोई क्राइटेरिया नहीं है.
सवाल: दत्तक केंद्रों में किन बच्चों को रखा जाता है?
जवाब: इसमें दो तरह के बच्चे को रखा जाता है. पहला देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे (सीएनसीपी) है. यह 6 साल तक के बच्चे होते हैं, जिनके माता-पिता नहीं होते या माता और पिता में से एक नहीं है. उन बच्चों को देखने संरक्षण की आवश्यकता होती है. दूसरा ऐसे बच्चे भी रहते हैं, जिनके माता-पिता नहीं है और वह दत्तक ग्रहण के लायक हैं. जिन बच्चों के माता-पिता का पता नहीं चलता है, उन्हें लीगली फ्री कराया जाता है और बाद में पेपर में सूचना जारी की जाती है. 1 महीने का नोटिस दिया जाता है. यदि कोई दावा करता है और बच्चे से उसका कोई संबंध है, तो उस पर विचार किया जाता है. नहीं तो कोई आपत्ति ना आने पर उस बच्चे को लीगल तौर पर एडॉप्शन प्रोसेस में भेज दिया जाता है.
सवाल: दत्तक केंद्र में किस तरह की व्यवस्थाएं होती है?
जवाब: दत्तक केंद्र में बच्चों की समुचित व्यवस्था और देखभाल के लिए पर्याप्त संख्या में सदस्य होते हैं. कई बच्चे जन्म के तुरंत बाद दो-चार दिन से लेकर 1 माह, 4-6 महीने तक के बच्चे भी आते हैं. उनकी देखभाल के लिए आया होती हैं, जो बच्चो को मालिश और दूध पिलाने से लेकर सारे काम करती हैं. वहां पर बच्चों के लिए खुशनुमा माहौल रखा जाता है. बच्चों की रुचि और स्वास्थ्य के अनुसार स्वास्थवर्धक खानपान और भोजन मुहैया कराया जाता है. ज्यादा छोटे बच्चों की दिन में दो बार मालिश की जाती है. सारे बच्चों का टीकाकरण और स्वास्थ्य परीक्षण कर उनका रिकॉर्ड रखा जाता है. थोड़ा बड़े होने पर बच्चों के खेल कूद और इसके साथ थोड़ी बहुत पढ़ाई की व्यवस्था भी की जाती है.
सवाल: दत्तक केंद्र में बच्चों को कब तक रखा जाता है ?
जवाब: लीगल तौर पर फ्री होने के बाद बच्चा एडॉप्शन में चला गया, तो कोई बात नहीं. लेकिन यदि कोई बच्चा एडॉप्शन में नहीं जाता है, तो 6 साल तब उसे दत्तक केंद्र में रखा जाता है. उसके के बाद यदि लड़की है, तो उसे बालिका गृह और लड़का है, तो बाल गृह में भेजा जाता है. जहां वह अपने स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ आगे सामान्य दिनचर्या में जीवन यापन करने लगता है.
सवाल: दत्तक केंद्र की निगरानी कैसे की जाती है ?
जवाब: रायपुर की बात की जाए, तो वहां पर अब तक ऐसी कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है. मैं खुद समय-समय पर दत्तक केंद्र का निरीक्षण करती हूं. हाल ही में मैने एक हफ्ते पहले ही रायपुर स्थित दत्तक केंद्र का निरीक्षण किया था . हमारे यहां अपर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक जिला समिति है. वह समिति हर 3 महीने में सभी संस्थाओं का निरीक्षण करती है. इस समिति के द्वारा लास्ट मंथ भी निरीक्षण किया गया है. ना सिर्फ दत्तक केंद्र बल्कि अन्य संस्थाओं का भी निरीक्षण समिति के द्वारा किया जाता है.
सवाल: जब समिति निरीक्षण करने जाए, तो हो सकता है कि सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त मिले. बच्चे खुलकर नहीं बोल सकते, ऐसी परिस्थिति में आप कैसे निरीक्षण करती हैं?
जवाब: समिति के निरीक्षण का एक प्रोफार्मा होता है, जो काफी विस्तृत होता है. जिसमें सारी जानकारी काफी सावधानी से भरी जाती है. एक एक बात संस्था की उसमें रिकॉर्ड होती है. हम लोग कभी बताकर नहीं जाते हैं. हम लोग अचानक निरीक्षण करने पहुंचते हैं. जो भी जानकारी प्राप्त होती है, उसे रिकॉर्ड कर लाया जाता है. मेरे आने के बाद दो बार निरीक्षण किया जा चुका है. अब तक ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है. निरीक्षण के दौरान वहां उपस्थित लोगों को बच्चों की देखरेख से संबंधित कई सुझाव भी हम लोग समय-समय पर देते रहते हैं.
सवाल: कांकेर में दत्तक केंद्र में बच्ची के साथ हुई मारपीट की घटना को आप किस रूप में देखते हैं?
जवाब: बच्चे भगवान का रूप होते हैं. यह वे छोटे बच्चे हैं, जिनके परिवार में कोई नहीं होता है. वह बच्चे विशेष रूप से स्नेह, सहानुभूति और प्रेम के पात्र हैं. उनको उसकी बहुत आवश्यकता है. ऐसी संस्थाओं में इन बच्चों को दिल और मानवीता के साथ रखना चाहिए. यही हमारा प्रयास भी है.