रायपुरः साल 2021 अपने अंतिम पायदान पर है. नये साल 2022 के स्वागत के लिए लोग अपने-अपने तरीके से तैयारी कर रहे हैं. बीत रहा साल 2021 पूरी तरह चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के ईर्द-गिर्द घूमता नजर आया. चूंकि साल 2020 ने प्रदेश-देश और विदेशों में भी जमकर मौत का तांडव मचाया. फिर अप्रैल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर ने एक बार फिर से लोगों को तबाह किया.
आलम ये था कि आम लोगों को बचाते-बचाते कई चिकित्सक अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठे थे. कोरोना महामारी से लड़ते-लड़ते चिकित्सा विभाग ने कई ऐसे कारनामे (Chhattisgarh Health Department year ender 2021) किए, जो कि अपने आप में एक नजीर रही. साल 2021 में कोरोना के अलावा रायपुर में कई दुर्लभ बीमारियों के ऑपरेशन हुए हैं, जिसका इलाज असंभव था. आज हम आपको ऐसी ही कुछ दुर्लभ बीमारी के ऑपरेशन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो रायपुर के हॉस्पिटल में हुए (Achievements of Chhattisgarh Health Department ) हैं.
"प्लेसेंटा परक्रेटा" के जटिल केस में महिला की बची जान (successful operation of placenta percreta in raipur)
1 जुलाई को बलौदा बाजार में 24 वर्षीय महिला के लिए जानलेवा प्लेसेंटा परक्रेटा का इलाज रायपुर के मेकाहारा में विभागाध्यक्ष डॉक्टर ज्योति जयसवाल के नेतृत्व में किया गया. सामान्यत: गर्भनाल या प्लेसेंटा बच्चेदानी गर्भाशय की दीवार से हल्की सी चिपकी रहती है. जैसे ही बच्चे की डिलीवरी होती है संकुचन के फलस्वरूप आंवल भी बाहर निकल कर आ जाता है. लेकिन इस केस में आंवल का कुछ हिस्सा बच्चेदानी में ही फंसा हुआ था, जिससे लगातार महिला को रक्तस्त्राव हो रहा था. प्लेसेंटा परक्रेटा एक जानलेवा स्थिति है. जिसका समय पर उपचार नहीं मिलने से प्रसूता की जान भी जा सकती है. बलौदा बाजार की एक गर्भवती महिला ने 1 महीने पहले अपने ही घर पर ही जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था. जन्म के दौरान महिला को काफी रक्तस्त्राव हुआ था. इसके साथ ही गर्भाशय से आंवल नहीं निकला था. फिर महिला को नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था. यहां से रेफर के बाद जब बलौदाबाजार जिला अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद उसे रायपुर रेफर किया गया. रायपुर के मेकाहारा में महिला का सफल ऑपरेशन किया गया. उसके स्वस्थ होने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.
18 जुलाई को रायपुर के मेकाहारा में 40 वर्षीय मरीज का एओटिक डायसेक्शन का सफल ऑपरेशन किया गया. हॉट, चेस्ट, सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर कृष्णकांत साहू सहित उनकी टीम ने इस दुर्लभ बीमारी का ऑपरेशन किया. मरीज के धमनी की आंतरिक दीवार क्षतिग्रस्त हो गई थी. रक्त का प्रवाह धमनी के बाहर होने लगा था, जिसे एओटिक डायसेक्शन कहते हैं. डॉक्टरों की टीम ने ऑपरेशन कर क्षतिग्रस्त महाधमनी के हिस्से को काटकर शरीर से अलग कर महाधमनी की जगह में 7X14 साइज का आर्टिफिशियल ग्राफ्ट लगाकर उसे दोनों पैरों की नसों से जोड़ दिया. इससे उसके दोनों पैरों में पूर्ण रक्त संचार प्रारंभ हो गया. ऑपरेशन के 5 दिन बाद मरीज के स्वस्थ होने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.
ओड़िशा में संबलपुर जिले के मजदूर परिवार का बच्चा जन्मजात हृदय रोग वीएसडी क्लोजर से पीड़ित था. पिता ने बच्चे के इलाज की कई अस्पतालों में जानकारी ली. हालांकि इलाज संभव नहीं हो पाया. इसके बाद परिवार ने एम्स के सीटीवीएस विभाग में ओपीडी के माध्यम से संपर्क किया. 14 वर्षीय बच्चे को वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट नाम की बीमारी थी. जिसकी वजह से बच्चे को सांस लेने में तकलीफ, जल्दी थकान होने, हाथ और पैर में निरंतर सूजन रहने की शिकायतें हो रही थीं. बीमारी के कारण उसके शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित हो रहे थे. 2 अगस्त को बच्चे को एम्स में भर्ती किया गया. इसके बाद सीटीवीएस विभाग ने तुरंत ऑपरेशन का निर्णय लिया. एक टीम बनी, जिसमें सीटीवीएस विभाग के साथ कार्डियोलॉजी, एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग के चिकित्सकों ने सर्जरी की प्रक्रिया की. योजनाबद्ध तरीके से ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन में डॉक्टरों को सफलता मिली और 14 वर्ष के बच्चे को जटिल सर्जरी के बाद जन्मजात हृदय रोग वीएसडी क्लोजर से छुटकारा मिल सका.
29 जुलाई को गरियाबंद की 26 वर्षीय महिला पेट दर्द और पेट में पानी भर जाने से सूजन की समस्या के कारण रायपुर के मेकाहारा में एडमिट हुई थी. जांच में पता चला कि महिला के पेट में दुर्लभ स्टोन बेबी है. इसके बाद स्त्री व प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष डॉक्टर ज्योति जयसवाल और उनकी टीम ने महिला का सफल ऑपरेशन किया. उसके पेट से 7 महीने का दुर्लभ स्टोन बेबी निकाला गया. बच्चेदानी के बाहर पेट यानी एब्दोमन में भ्रूण का विकास होकर स्टोन बेबी में बदल जाने की स्थिति बहुत ही दुर्लभ है. इस प्रकार के केस का प्रकाशन भी मेडिकल जनरल में बहुत ही कम देखने को मिलता है.
"माइकोटिक एन्यूरिज्म" का किया गया सफल ऑपरेशन (Successful operation of mycotic aneurysm in Raipur)
2 जून को रायपुर एम्स में 43 वर्षीय बिलासपुर निवासी मरीज का सफल ऑपरेशन किया गया. मरीज को माइकोटिक एन्यूरिज्म नाम की दुर्लभ बीमारी थी. जो कोविड और म्यूकोरमाइकोसिस की वजह से हुई थी. "माइकोटिक एन्यूरिज्म" फेफड़ों से संबंधित बीमारी है. 2 जून को चिकित्सा विशेषज्ञ डॉक्टर क्लेइन डेंटिस और डॉक्टर नितिन कश्यप की टीम ने रोगी के फेफड़े की सर्जरी की. ऑपरेशन के बाद उसे विशेषज्ञों की निगरानी में रखा गया और 15 जून को हॉस्पिटल से उसे छुट्टी दे दी गई.
"टाकायासू आर्टराइटिस" का सफल ऑपरेशन (Successful operation of Takayasu Arteritis in Raipur)
26 नवंबर को रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में जबलपुर की 23 वर्षीय महिला का सफल ऑपरेशन किया गया. महिला को "टाकायासू आर्टराइटिस" नाम की दुर्लभ बीमारी थी. मेकाहारा के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर स्मित श्रीवास्तव और उनकी पूरी टीम ने लगातार 3 घंटे की ऑपरेशन कर महिला की जान बचाई. कहा जाता है टाकायासू आर्टराइटिस का समय पर उपचार न होने से हार्ट फेल होने का संभावना बनी रहती है.