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SPECIAL: छत्तीसगढ़ के इन आदिवासी गांवों में सदियों से है 'सोशल डिस्टेंसिंग'

आज इस कोरोना काल में जहां सोशल डिस्टेंसिंग को लाइफ का हिस्सा बनाने को कहा जा रहा है, वहीं नारायणपुर में आदिकाल से ही सोशल डिस्टेंसिंग की परंपरा निभाई जा रही है. इसके कारण वहां के आदिवासी लोग प्रकृति के बीच सेहत से भरपूर जीवन बिता रहे हैं.

social distancing for centuries in narayanpur to prevent infection
दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग
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Published : Jun 1, 2020, 10:26 AM IST

Updated : Jun 1, 2020, 11:43 AM IST

नारायणपुर: पूरी दुनिया इस समय कोविड-19 की महामारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रही है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ के दक्षिण वनांचल नारायणपुर में ये परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है. इस परम्परा के तहत अबूझमाड़िया जनजाति बाहुल्य क्षेत्र के आदिवासी परिवारों के लोग पुरातन काल से ही अलग-अलग घर बनाकर रहते हैं.

दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग

सेहत के लिहाज से भी बेहतर व्यवस्था

नारायणपुर जनजाति बाहुल्य जिलों के ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होकर भी वन भूमि पर अलग-अलग निवास करते हैं और इन्हीं जंगलों में रहकर जीवन का आनंद उठा रहे हैं.आदिवासी परिवार में यह चलन है कि परिवार में जितने भी बच्चे हैं, उनका अपना अलग घर होता है. परिवार में बड़े बेटे की शादी होने के तुरंत बाद ही मुख्य घर से थोड़ी दूरी पर उसका घर बना दिया जाता है और इसी तरह दूसरे बच्चों की शादी के बाद उनके लिए भी अलग घर तैयार कर दिया जाता है. इससे लोग आत्मनिर्भर होने के साथ ही स्वतंत्र जीवनयापन के साथ सोशल डिस्टेंसिंग के सिद्धांतों को भी पूरा कर रहे हैं.

social distancing for centuries in narayanpur to prevent infection
दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग
socialcenturies in narayanpur to prevent infection distancing for
दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग


प्रकृति के बीच सेहत का वरदान

जिला मुख्यालय से 34 किमी दूर आलनार के गांवों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ घर बनाकर अबूझमाड़िया परिवार अपने घरों में रह रहे हैं, जो सेहत की दृष्टि से भी अनुकूल और सादगीपूर्ण है. घर के आगे खुला आंगन, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और सूरज की भरपूर रोशनी इनके स्वास्थ्य के लिए वरदान है.आज कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेसिंग को अनिवार्य कर दिया गया है और विश्व स्तर पर माना गया है कि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में सामाजिक दूरी ही इस महामारी के प्रसार को रोकने का बेहतर और सहज-सरल उपाय है.

social distancing for centuries in narayanpur to prevent infection
दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग
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दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग

सोशल डिस्टेंसिंग सदियों पुरानी परंपरा

जनजाति अंचल में सदियों से चली आ रही इस परंपरा को आदर्श परंपराओं का आदि संवाहक कहा जा सकता है. आज जहां कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को जीवन का हिस्सा बनाने की अपील की जा रही है, वहीं ये कहना गलत नहीं होगा कि हमारे पूर्वजों ने इस तरह के संक्रमण को रोकने के उपाय सदियों पहले ही अपना लिए थे और इसे सामाजिक परंपरा का हिस्सा बना दिया. इसी वजह से मौजूदा समय में सोशल डिस्टेंसिंग के मामले में जनजाति क्षेत्रों को अग्रणी माना जा सकता है, शायद यही वजह है कि शहर में तेजी से फैल रहा कोरोना वायरस जनजाति क्षेत्रों में पहुंच नहीं पाया है.

बता दें कि अमेरिका के दो वरिष्ठ सरकारी चिकित्सक डॉ. रिर्चड हैशे और डॉ. कार्टर मेकर ने भी 14 साल पहले सोशल डिस्टेंसिंग की परिकल्पना की थी, लेकिन उस दौर में ना सिर्फ इस प्रस्ताव को शक की निगाह से देखा गया, बल्कि इसका मजाक भी उड़ाया गया.

नारायणपुर: पूरी दुनिया इस समय कोविड-19 की महामारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रही है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ के दक्षिण वनांचल नारायणपुर में ये परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है. इस परम्परा के तहत अबूझमाड़िया जनजाति बाहुल्य क्षेत्र के आदिवासी परिवारों के लोग पुरातन काल से ही अलग-अलग घर बनाकर रहते हैं.

दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग

सेहत के लिहाज से भी बेहतर व्यवस्था

नारायणपुर जनजाति बाहुल्य जिलों के ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होकर भी वन भूमि पर अलग-अलग निवास करते हैं और इन्हीं जंगलों में रहकर जीवन का आनंद उठा रहे हैं.आदिवासी परिवार में यह चलन है कि परिवार में जितने भी बच्चे हैं, उनका अपना अलग घर होता है. परिवार में बड़े बेटे की शादी होने के तुरंत बाद ही मुख्य घर से थोड़ी दूरी पर उसका घर बना दिया जाता है और इसी तरह दूसरे बच्चों की शादी के बाद उनके लिए भी अलग घर तैयार कर दिया जाता है. इससे लोग आत्मनिर्भर होने के साथ ही स्वतंत्र जीवनयापन के साथ सोशल डिस्टेंसिंग के सिद्धांतों को भी पूरा कर रहे हैं.

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दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग
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दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग


प्रकृति के बीच सेहत का वरदान

जिला मुख्यालय से 34 किमी दूर आलनार के गांवों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ घर बनाकर अबूझमाड़िया परिवार अपने घरों में रह रहे हैं, जो सेहत की दृष्टि से भी अनुकूल और सादगीपूर्ण है. घर के आगे खुला आंगन, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और सूरज की भरपूर रोशनी इनके स्वास्थ्य के लिए वरदान है.आज कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेसिंग को अनिवार्य कर दिया गया है और विश्व स्तर पर माना गया है कि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में सामाजिक दूरी ही इस महामारी के प्रसार को रोकने का बेहतर और सहज-सरल उपाय है.

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दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग
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दक्षिण वनांचल की सदियों पुरानी परंपरा है सोशल डिस्टेंसिंग

सोशल डिस्टेंसिंग सदियों पुरानी परंपरा

जनजाति अंचल में सदियों से चली आ रही इस परंपरा को आदर्श परंपराओं का आदि संवाहक कहा जा सकता है. आज जहां कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को जीवन का हिस्सा बनाने की अपील की जा रही है, वहीं ये कहना गलत नहीं होगा कि हमारे पूर्वजों ने इस तरह के संक्रमण को रोकने के उपाय सदियों पहले ही अपना लिए थे और इसे सामाजिक परंपरा का हिस्सा बना दिया. इसी वजह से मौजूदा समय में सोशल डिस्टेंसिंग के मामले में जनजाति क्षेत्रों को अग्रणी माना जा सकता है, शायद यही वजह है कि शहर में तेजी से फैल रहा कोरोना वायरस जनजाति क्षेत्रों में पहुंच नहीं पाया है.

बता दें कि अमेरिका के दो वरिष्ठ सरकारी चिकित्सक डॉ. रिर्चड हैशे और डॉ. कार्टर मेकर ने भी 14 साल पहले सोशल डिस्टेंसिंग की परिकल्पना की थी, लेकिन उस दौर में ना सिर्फ इस प्रस्ताव को शक की निगाह से देखा गया, बल्कि इसका मजाक भी उड़ाया गया.

Last Updated : Jun 1, 2020, 11:43 AM IST
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