नारायणपुर: जिले के अबूझमाड़ इलाके में इन दिनों वनोपज अधिक मात्रा में आने लगे हैं. इस वजह से अबूझमाड़ के जनजाति अब जंगल से निकलकर शहरी क्षेत्र तक आसानी से आ रहे हैं. अबूझमाड़ के जंगलों का वनोपज यहां के लोगों के लिए आय का मुख्य साधन है.
अबूझमाड़ में मिलने वाले वनोपज में सबसे ज्यादा फूल झाड़ू होता है. इन्हें घने जंगल के बीच में से काटकर शहरों तक लाया जाता है. झाड़ू कटिंग करने की प्रक्रिया बहुत ही मेहनत और मुश्किल भरी होती है. झाड़ू कटिंग में बहुत खतरा भी होता है. कटिंग के दौरान कई बार अबूझमाड़ के मडिया जनजाति के लोगों को जंगली जानवरों से सामना होता है. जंगली जानवरों से अचानक आमना-सामना होने पर वे घायल हो जाते हैं. कई बार तो लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं.
जानवर घास में छुपे रहते हैं
फूल झाड़ू एक प्रकार का घास होता है. बड़े होने के कारण जानवर इन घास में छुपे रहते हैं और लोगों पर हमला कर देते हैं. भारी मेहनत भरा काम होने के बाद भी फूल झाड़ू के उचित दाम इन लोगों को नहीं मिल पाता, जिसके कारण ये झाड़ू उन्हें बिचौलियों को बेचना पड़ता है.
5 गुना ज्यादा दाम में बेचते हैं बिचौलिए
इन दिनों सरकार ने 1 किलो फूल झाड़ू का मूल्य 30 रुपये रखा है. वहीं बिचौलिए इसे 32 रुपए में खरीद कर आम बाजार में 5 गुना ज्यादा दाम पर बेचते हैं. अबूझमाड़ के निवासियों को इससे काफी नुकसान होता है, आय का कोई साधन नहीं होने के कारण मजबूरी में बिचौलियों को अपना झाड़ू बेच देते हैं.
वनोपज से आशा की किरण
अबूझमाड़ में वनोपज से आशा की किरण जगती है. यहां के लोगों के लिए वनोपज ही आय का एक साधन है. अबूझमाड़ में कोई भी काम नहीं मिल पाता न ही विकास के कोई काम चल रहे हैं. दूसरी ओर अबूझमाड़ में निकलने वाले वनोपज जैसे कोसा, सहद, हर्रा, बेड़ा, फूल झाड़ू, कोसरा, चिरौंजी, लाख, धूप और आयुर्वेदिक दवाइयां भारी मात्रा में मिलते हैं.
सरकार नहीं देती कोई हर्जाना
इन वनोपज को बड़ी मेहनत से लोग इकट्ठा करते हैं. उसके बाद भी सरकार उनकी मेहनत का कोई हर्जाना नहीं देती. इस वजह से अबूझमाड़ के निवासी बिचौलियों को अपना कीमती वनोपज बहुत कम दाम में देने को मजबूर हैं.