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कोरिया: मील का पत्थर साबित होगा आनंदपुर नर्सरी का सीट बॉल, जानें इसकी खासियत - प्लास्टिक पौध रोपण

कोरिया वन मंडल बैकुंठपुर के अंतर्गत लगभग 40 किलोमीटर दूर आनंदपुर नर्सरी में सीट बॉल तैयार किया जा रहा है और 25 एकड़ की खूबसूरत नर्सरी में विभिन्न प्रकार के फलदार पौधे, औषधि पौधे और वन्य पौधों सुशोभित हो रहे हैं, जहां पर सभी का बीजारोपण कर उन्हें तैयार किया जाता है. सीट बॉल्स के संबंध में कोरिया वन मंडल में यह एक प्रयोग मात्र है.

क्ले मिट्टी की बॉल
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Published : Jun 29, 2019, 11:40 PM IST

कोरिया: आनंदपुर नर्सरी में सीट बॉल तैयार किया जा रहा है. बैकुंठपुर वन मंडल की यह पहल यदि सफल हुई तो यह पौधरोपण के लिए मील का पत्थर साबित होगा. वन मंडल की नर्सरियों में प्रायः वन में उगने वाले पेड़ों के साथ पीपल और बरगद दुर्लभ प्रजाति के पौधों के बीच की एक गेंद तैयार करवा रहे हैं, जहां यह पेड़ खत्म हो गए है, वहां इन्हें फेंका जाएगा और यह स्वयं अंकुरित होकर पेड़ बनेंगे. बॉल्स को फेंकने के लिए स्थान का चयन कर लिया गया है.

मील का पत्थर साबित होगा आनंदपुर नर्सरी का सीट बॉल

बता दें कोरिया वन मंडल बैकुंठपुर के अंतर्गत लगभग 40 किलोमीटर दूर आनंदपुर नर्सरी में सीट बॉल तैयार किया जा रहा है और 25 एकड़ की खूबसूरत नर्सरी में विभिन्न प्रकार के फलदार पौधे, औषधि पौधे और वन्य पौधों सुशोभित हो रहे हैं, जहां पर सभी का बीजारोपण कर उन्हें तैयार किया जाता है. सीट बॉल्स के संबंध में कोरिया वन मंडल में यह एक प्रयोग मात्र है.

15 हजार सीट बॉल तैयार की जा रही है
हर नर्सरी में 15-15 हजार सीट बॉल तैयार की जा रही है. इन सीट बॉल्स में कम बजट में भी पर्यावरण में एक सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है. सीट बॉल्स से जंगली पेड़, अर्धजंगली पेड़, फलदार पेड़, चारे के पेड़, अनाज-सब्जियां आदि सब एक साथ आ सकते हैं. इस तकनीक में फसलों पर छाया का असर नहीं होता है. इस प्रकार बहुत कम जगह में बहुत अधिक पैदावार की जा सकती है.

फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की जाएगी
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य प्लास्टिक पौध रोपण की तैयारी की जा रही है. इसकी तैयारी जोर-शोर से हो रही है. यह काफी संख्या में तैयार भी हो गई है और भी बनाने का काम जारी है. इसे प्रयोग के तौर पर खाली पड़ी भूमि पर पहले डाला जाएगा. इसके बाद फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करवाई जाएगी. अच्छे परिणाम आने पर इसे और बढ़ाया जाएगा. ये बीज (सीड बॉल्स) किसी भी खाली जमीन पर फेंक दिए जाते हैं और इनके लिए जंगल के अंदर जाना भी जरूरी नहीं होता. इसे गुलेल के माध्यम से फेंका जा सकता है. यह तरीका कारगर साबित हो सकता है, क्योंकि इससे पेड़ उगाने में हो रहा खर्च आधे से भी कम हो जाता है.

पॉलिथीन की थैलियों से मिलेगा निजाद
इसके अलावा पॉलिथीन की थैलियों से भी निजाद मिलता है. इस सीड बॉल्स के चारकोल में लिप्त होने की वजह से जानवर इनसे दूर रहते हैं और जैसी बारिश होती है. यह अंकुरित होना शुरू हो जाते हैं. धीरे-धीरे बंजर लग रही जमीन भी ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से हरी-भरी हो जाती है. इसके अलावा जहां वैज्ञानिक खेती से फसलें मिट्टी, पानी, हवा में जहर घुलता है और सूखा पड़ता है, वहीं कुदरती खेती में इसके विपरीत परिणाम आते हैं और जमीन उर्वरक पानीदार और हरियाली से भर जाती है.

सीट बॉल्स क्या है
बीजों को जब क्ले मिट्टी की परत से आधा इंच से लेकर 1 इंच तक की गोलियों से सुरक्षित कर लिया जाता है. इसे सीट बोल कहते हैं. क्ले मिट्टी वह है जो मिट्टी के बर्तनों मूर्ति आदि को बनने में उपयोग में लाई जाती है, जो तालाब की तलेटी नदी नालों के किनारे जमी पाई जाती है. यह सर्वोत्तम खाद होती है यह बहुत महीन चिकनी होती है. इसकी गोली बहुत कड़क मजबूत बनती है, जिसे चूहा और चिड़िया तोड़ नहीं सकते. इस मिट्टी में असंख्य जमीन को उपजाऊ और नमी प्रदान करने वाले सूक्ष जीवाणु रहते हैं.

पोषक तत्व प्रदान करती है क्ले
इसके एक कण को सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इसमें सूक्ष्म जीवाणुओं के अलावा निर्जीव कुछ भी नहीं रहता है. यह गोली आम जंगली बीजों की तरह जमीन पर पड़ी रहती है. क्ले की जैविकता तेजी से पौधे को पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान कर देती है, जिससे बंपर उत्पादन मिलता है. सीट बॉल का उपयोग जहरीले रसायनों और बिना गोबर के कुदरती खेती करने और मरुस्थल को हरियाली में बदलने के लिए उपयोग में लाया जाता है.

सीट बाल की खोज किसने कैसे की
सीट बाल की खोज जापान के जीवाणु विशेषक मसनोबु फूकोकजी ने की थी. इससे अनेको साल बिना जुताई की कुदरती खेती करते रहे हैं. उनकी पैदावार वैज्ञानिक खेती से बहुत अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता वाली पाई गई है. इसके बाद केन्या के 43 साल के टेड्डी किंयानजुई ने सीड बॉल्स की शुरुआत की. टेड्डी के पास पर्यावरण बचाने के लिए काले रंग की बॉल है, जिसे उन्होंने सीट बॉल का नाम दिया है.

2017 से ही प्लास्टिक पर लगा हुआ है बैन
यह सीट बहुत काले रंग के चारकोल में लिपटे वो बीज है, जिनके अंदर पर्यावरण को बचाने का अंश पल रहा होता है. यह भी चमत्कारी गोल्डन गूस के अंडे जैसे हैं, जिसमें सोना निकलता है, यह सोना हमारे पेड़ हैं, जो हमें जीवन प्रदान करते हैं. टेड्डी को पर्यावरण बचाने कि यह अनमोल सौगात उनके पिता से मिली है और इनके इस जज्बे के कारण केन्या में 2017 से ही प्लास्टिक पर बैन लगा हुआ है. अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो पौधारोपण के लिए प्लास्टिक की थैलियों से मुक्ति मिल जाएगी.

कोरिया: आनंदपुर नर्सरी में सीट बॉल तैयार किया जा रहा है. बैकुंठपुर वन मंडल की यह पहल यदि सफल हुई तो यह पौधरोपण के लिए मील का पत्थर साबित होगा. वन मंडल की नर्सरियों में प्रायः वन में उगने वाले पेड़ों के साथ पीपल और बरगद दुर्लभ प्रजाति के पौधों के बीच की एक गेंद तैयार करवा रहे हैं, जहां यह पेड़ खत्म हो गए है, वहां इन्हें फेंका जाएगा और यह स्वयं अंकुरित होकर पेड़ बनेंगे. बॉल्स को फेंकने के लिए स्थान का चयन कर लिया गया है.

मील का पत्थर साबित होगा आनंदपुर नर्सरी का सीट बॉल

बता दें कोरिया वन मंडल बैकुंठपुर के अंतर्गत लगभग 40 किलोमीटर दूर आनंदपुर नर्सरी में सीट बॉल तैयार किया जा रहा है और 25 एकड़ की खूबसूरत नर्सरी में विभिन्न प्रकार के फलदार पौधे, औषधि पौधे और वन्य पौधों सुशोभित हो रहे हैं, जहां पर सभी का बीजारोपण कर उन्हें तैयार किया जाता है. सीट बॉल्स के संबंध में कोरिया वन मंडल में यह एक प्रयोग मात्र है.

15 हजार सीट बॉल तैयार की जा रही है
हर नर्सरी में 15-15 हजार सीट बॉल तैयार की जा रही है. इन सीट बॉल्स में कम बजट में भी पर्यावरण में एक सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है. सीट बॉल्स से जंगली पेड़, अर्धजंगली पेड़, फलदार पेड़, चारे के पेड़, अनाज-सब्जियां आदि सब एक साथ आ सकते हैं. इस तकनीक में फसलों पर छाया का असर नहीं होता है. इस प्रकार बहुत कम जगह में बहुत अधिक पैदावार की जा सकती है.

फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की जाएगी
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य प्लास्टिक पौध रोपण की तैयारी की जा रही है. इसकी तैयारी जोर-शोर से हो रही है. यह काफी संख्या में तैयार भी हो गई है और भी बनाने का काम जारी है. इसे प्रयोग के तौर पर खाली पड़ी भूमि पर पहले डाला जाएगा. इसके बाद फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करवाई जाएगी. अच्छे परिणाम आने पर इसे और बढ़ाया जाएगा. ये बीज (सीड बॉल्स) किसी भी खाली जमीन पर फेंक दिए जाते हैं और इनके लिए जंगल के अंदर जाना भी जरूरी नहीं होता. इसे गुलेल के माध्यम से फेंका जा सकता है. यह तरीका कारगर साबित हो सकता है, क्योंकि इससे पेड़ उगाने में हो रहा खर्च आधे से भी कम हो जाता है.

पॉलिथीन की थैलियों से मिलेगा निजाद
इसके अलावा पॉलिथीन की थैलियों से भी निजाद मिलता है. इस सीड बॉल्स के चारकोल में लिप्त होने की वजह से जानवर इनसे दूर रहते हैं और जैसी बारिश होती है. यह अंकुरित होना शुरू हो जाते हैं. धीरे-धीरे बंजर लग रही जमीन भी ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से हरी-भरी हो जाती है. इसके अलावा जहां वैज्ञानिक खेती से फसलें मिट्टी, पानी, हवा में जहर घुलता है और सूखा पड़ता है, वहीं कुदरती खेती में इसके विपरीत परिणाम आते हैं और जमीन उर्वरक पानीदार और हरियाली से भर जाती है.

सीट बॉल्स क्या है
बीजों को जब क्ले मिट्टी की परत से आधा इंच से लेकर 1 इंच तक की गोलियों से सुरक्षित कर लिया जाता है. इसे सीट बोल कहते हैं. क्ले मिट्टी वह है जो मिट्टी के बर्तनों मूर्ति आदि को बनने में उपयोग में लाई जाती है, जो तालाब की तलेटी नदी नालों के किनारे जमी पाई जाती है. यह सर्वोत्तम खाद होती है यह बहुत महीन चिकनी होती है. इसकी गोली बहुत कड़क मजबूत बनती है, जिसे चूहा और चिड़िया तोड़ नहीं सकते. इस मिट्टी में असंख्य जमीन को उपजाऊ और नमी प्रदान करने वाले सूक्ष जीवाणु रहते हैं.

पोषक तत्व प्रदान करती है क्ले
इसके एक कण को सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इसमें सूक्ष्म जीवाणुओं के अलावा निर्जीव कुछ भी नहीं रहता है. यह गोली आम जंगली बीजों की तरह जमीन पर पड़ी रहती है. क्ले की जैविकता तेजी से पौधे को पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान कर देती है, जिससे बंपर उत्पादन मिलता है. सीट बॉल का उपयोग जहरीले रसायनों और बिना गोबर के कुदरती खेती करने और मरुस्थल को हरियाली में बदलने के लिए उपयोग में लाया जाता है.

सीट बाल की खोज किसने कैसे की
सीट बाल की खोज जापान के जीवाणु विशेषक मसनोबु फूकोकजी ने की थी. इससे अनेको साल बिना जुताई की कुदरती खेती करते रहे हैं. उनकी पैदावार वैज्ञानिक खेती से बहुत अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता वाली पाई गई है. इसके बाद केन्या के 43 साल के टेड्डी किंयानजुई ने सीड बॉल्स की शुरुआत की. टेड्डी के पास पर्यावरण बचाने के लिए काले रंग की बॉल है, जिसे उन्होंने सीट बॉल का नाम दिया है.

2017 से ही प्लास्टिक पर लगा हुआ है बैन
यह सीट बहुत काले रंग के चारकोल में लिपटे वो बीज है, जिनके अंदर पर्यावरण को बचाने का अंश पल रहा होता है. यह भी चमत्कारी गोल्डन गूस के अंडे जैसे हैं, जिसमें सोना निकलता है, यह सोना हमारे पेड़ हैं, जो हमें जीवन प्रदान करते हैं. टेड्डी को पर्यावरण बचाने कि यह अनमोल सौगात उनके पिता से मिली है और इनके इस जज्बे के कारण केन्या में 2017 से ही प्लास्टिक पर बैन लगा हुआ है. अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो पौधारोपण के लिए प्लास्टिक की थैलियों से मुक्ति मिल जाएगी.

Intro:कोरिया वन मंडल इन दिनों पर्यावरण बचाने के लिए अभिनव प्रयोग करने जा रहा है । बैकुंठपुर वन मण्डल की यह पहल यदि सफल हुई तो यह पौधरोपण के लिए मील का पत्थर साबित होगा । वन मंडल की नर्सरियों में प्रायः वन में उगने वाले पेड़ों के साथ पीपल और बरगद दुर्लभ प्रजाति के पौधों के बीच की एक गेंद तैयार करवा रहे हैं । जिन्हें जहां पे खत्म हो गए हैं वहां इन्हें फेका जाएगा । यह स्वयं अंकुरित होकर पेड़ बनेंगे इसके लिए स्थान का चयन बॉल्स को फेंकने के लिए कर लिया गया है । खराब क्षेत्र जहां उपजाऊ जमीन नहीं है जैसे नदी के किनारे पहाड़ की ढलान अत्यधिक कटाव वाली भूमि पर विलुप्त होने वाली प्रजाति का रिजनरनेस किया जायेगा ।


Body:आपको बता दें कोरिया वन मंडल बैकुंठपुर के अंतर्गत लगभग 40 किलोमीटर दूर आनंदपुर नर्सरी में सीट बॉल तैयार किया जा रहा है और 25 एकड़ की खूबसूरत नर्सरी में विभिन्न प्रकार के फलदार पौधे औषधि पौधे वन्य पौधों सुशोभित हो रहे हैं । जहां पर सभी का बीजारोपण कर उन्हें तैयार किया जाता है । सीट बॉल्स के संबंध में कोरिया वन मंडल में यह एक प्रयोग मात्र है । हर नर्सरी में 15-15 हजार सीट बॉल तैयार की जा रही है। इन सीट बॉल्स में कम बजट में भी पर्यावरण में एक सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। सीट बॉल्स से जंगली पेड़ अर्धजंगली पेड़ फलदार पेड़ चारे के पेड़ अनाज सब्जियां आदि सब एक साथ आ सकते हैं । इस तकनीक में फसलों पर छाया का असर नहीं होता है ।इस प्रकार बहुत कम जगह से बहुत अधिक पैदावार की जा सकती है । जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य प्लास्टिक पौध रोपण की तैयारी की जा रही है। इसकी तैयारी जोर शोर से की जा रही है काफी संख्या में तैयार कर ली गई है और बनाने का काम जारी है। इसे प्रयोग के तौर पर खाली पड़ी भूमि पर पहले डाला जाएगा । पहले और बाद में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करवाई जाएगी । अच्छे परिणाम आने पर इसे और बढ़ाया जाएगा । ये बीज (सीड बॉल्स) किसी भी खाली जमीन पर फेंक दे जाते हैं और इनके लिए जंगल के अंदर जाना भी जरूरी नहीं होता । गुलेल के माध्यम से फेंका जा सकता है यह तरीका कारगर साबित हो सकता है क्योंकि इससे पेड़ उगाने पर हो रहा खर्चा आधे से भी कम हो जाता है । इसके अलावा पॉलिथीन की थैलियों से भी निजाद मिलता है ।इस सीड बॉल्स के चारकोल में लिप्त होने की वजह से जानवर इनसे दूर रहते हैं और जैसी बारिश होती है। यह अंकुरित होना शुरू हो जाते हैं । धीरे धीरे बंजर लग रही जमीन भी ऊंचे ऊंचे पेड़ों से हरी-भरी हो जाती है । इसके अलावा जंहा वैज्ञानिक खेती से फसलें मिट्टी पानी हवा में जहर घुलता है और सूखा पड़ता है ।वही कुदरती खेती में इसके विपरीत परिणाम आते हैं और जमीन उर्वरक पानीदार और हरियाली से भर जाती है ।

सीट बॉल्स क्या है
बीजों को जब क्ले मिट्टी की परत से आधा इंच से लेकर 1 इंच तक की गोल-गोल गोलियों से सुरक्षित कर लिया जाता है । इसे सीट बोल कहते हैं । क्ले मिट्टी वह है जो मिट्टी के बर्तनों मूर्ति आदि को बनने में उपयोग में लाई जाती है ।जो तालाब की तलेटी नदी नालों के किनारे जमा पाई जाती है यह सर्वोत्तम खाद होती है यह बहुत महीन चिकनी होती है ।इसकी गोली बहुत कड़क मजबूत बनती है। जिसे चूहा चिड़िया तोड़ नहीं सकता है ।इसमें बीच पूरी तरह सुरक्षित हो जाता है। इस मिट्टी में असंख्य जमीन को उपजाऊ और नमी प्रदान करने वाले सूक्ष जीवाणु रहते हैं । इसके एक कण को सूक्ष्मदर्शी से देखने पर । इसमें सूक्ष जीवाणुओं के अलावा निर्जीव कुछ भी नहीं रहता है। यह गोली आम जंगली बीजों की तरह जमीन पर पड़ी रहती है । बरसात या अनुकूल मौसम आने पर जाती है ।क्ले की जैविकता तेजी से पौधे को पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान कर देती है । जिससे बंपर उत्पादन मिलता है । सीट बल का उपयोग जहरीले रसायनों और बिना गोबर के कुदरती खेती करने और मरुस्थल को हरियाली में बदलने के लिए उपयोग में लाया जाता है ।
सीट बाय की खोज किसने कैसे की
सीट बाल की खोज जापान के जीवाणु विशेषक मसनोबु फूकोकजी ने की है । ये अनेको साल इसे बिना जुताई की कुदरती खेती करते रहे हैं ।उनकी पैदावार वैज्ञानिक खेती से बहुत अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता वाली पाई गई है । इसके बाद केन्या के 43 साल के टेड्डी किंयानजुई ने सीड बॉल्स की शुरुआत की । टेड्डी के पास पर्यावरण बचाने के लिए काले रंग की बॉल है जिसे उन्होंने सीट बॉल का नाम दिया है ।यह सीट बहुत काले रंग के चारकोल में लिपटे वो बीज है । जिनके अंदर पर्यावरण को बचाने का अंश पल रहा होता है । यह भी चमत्कारी गोल्डन गूस के अंडे जैसे हैं जिसमें सोना निकलता है। यह सोना हमारे पेड़ हैं ।जो हमें जीवन प्रदान करते हैं । टेड्डी को पर्यावरण बचाने कि यह अनमोल सौगात उनके पिता से मिली है और इनके इस जज्बे के कारण केन्या में 2017 से ही प्लास्टिक पर बैन लगा हुआ है ।



Conclusion:अगर यह प्रयोग सफल होता है तो पौधारोपण के लिए प्लास्टिक की थैलियों से मुक्ति मिल जाएगी ।
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