बस्तर : जगदलपुर जिले में लंपी वायरस ने दस्तक दे दी है. अब तक जिले भर में 17 मवेशियों में लंपी बीमारी होनी की पुष्टि हुई है. यह बीमारी बेहद तेजी से जिले में फैल रही है. पशु एवं चिकित्सा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि '' बीमारी से ग्रस्त मवेशियों को समय पर इलाज मिलने पर मवेशियों के ठीक होने की संभावना इस बीमारी में ज्यादा रहती है. इसके लिए किसानों और पशुपालकों को जागरूक किया जा रहा है.'' साथ ही इस बीमारी से पशुओं को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने की बात विभाग के अधिकारियों ने कही है.
टीकाकरण अभियान तेज करने पर जोर :विभाग ने अलग-अलग इलाके के 50 मवेशियों का सैंपल लिया है. जिनमें से 17 की रिपोर्ट पॉजीटिव आई है. सभी संक्रमित मवेशियों को क्वारंटाइन किया गया है. ताकि दूसरे मवेशियों को इस बीमारी से बचाया जा सके. पशु एवं चिकित्सा विभाग के अधिकारी डॉ अभिषेक तिर्की ने बीमारी से मवेशियों को बचाने के लिए टीकाकरण अभियान तेज करने की बात भी कही है. बता दें कि इस वायरस से संक्रमित पशुओं में पहले बुखार आता है. मुंह और नाक से स्राव निकलता है. दुध उत्पादन कम हो जाता है.खाल के नीचे छोटी-छोटी गांठें बन सकती हैं, कुछ पशुओं में गले के नीचे गादी, छाती और पैरों में सूजन आ जाती है.
पशु मेले पर लगा प्रतिबंध : लंपी स्किन रोग के नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने दिशा निर्देश जारी किए हैं. जिसके अनुसार संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना. दूसरे प्रदेशों से पशुओं के आवागमन को रोकना वेक्टर नियंत्रण (मच्छर मक्खी किलनी) को रोकने हेतु कीटनाशक दवा का छिड़काव करना. संक्रमित ग्रामों में 5 किलोमीटर की परिधि में गोटपॉक्स वैक्सीन से रिंग वैक्सीनेशन किया जाता है. बस्तर जिला ओडिसा राज्य की सीमा से जुड़ा हुआ है. इसीलिए जिले के सीमावर्ती ग्रामों में अन्य राज्यों के पशुओं के आवागमन पर नियंत्रण के लिए चेक पोस्ट स्थापित किया गया है. जिसमें नियमित रूप से चेकिंग का कार्य जारी है. बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा कि ''बस्तर जिले के अंतर्गत लगने वाले सभी पशु बाजार पशुओं के आवागमन और पशु मेला आयोजन पर आगामी आदेश तक पूर्ण तरह प्रतिबंध लगाया गया है.''
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कैसे रोके लंपी संक्रमण का खतरा : पशुओं में लम्पी स्कीन रोग के लक्षण को देखते हुए पशु चिकित्सा विभाग द्वारा सभी पालकों को लम्पी स्कीन रोग के बचाव हेतु सुझाव दिए गए हैं. इसके तहत रोग ग्रस्त पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखने, भैंसवंशीय पशुओं को गौवंशीय पशुओं से अलग रखने, पशुगृहों की साफ-सफाई और निर्जन्तुकरण, स्वस्थ पशुओं एवं पशुगृह में नियमित जूँ किलनी नाशक दवा का छिड़काव. रोग ग्रस्त पशुओं के संपर्क में आने वालो व्यक्ति को हमेशा ग्लोब्स (दस्ताने) एवं मास्क पहनकर पशुओं के समीप जाना, असामान्य बीमारी के लक्षण पाये जाने पर निकटस्थ पशु चिकित्सालय या पशु औषधालय में सूचना, रोग ग्रस्त पशु की मृत्यु होने पर उसे स्वच्छता के कदम उठाते हुये गहरे गड्ढे में चूना डालकर दफनाना चाहिए. यह रोग वेक्टर के माध्यम से फैलने के कारण पशुओं पर एवं पशुगृह में वेक्टर नियंत्रण जूँ किलनी नाशक दवा का छिड़काव अवश्य किया जाना चाहिए.
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