दंतेवाड़ा: जिला प्रशासन ने किसानों को स्वावलंबी बनाने के लिए साल 2013-14 के दौरान दंतेवाड़ा में क्षीर सागर प्लांट की स्थापना की थी. बस्तर में श्वेत क्रांति लाने के मकसद से यहां 300 लीटर की क्षमता वाला एक मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट तैयार कराया था.
इस प्रोजेक्ट ने दंतेवाडा जिले के किसानों को पशुपालन की ओर मोड़ने में एक अहम भूमिका निभाई. ऐसी उम्मीद लगी थी कि योजना के शुरू होने से किसानों की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी, लेकिन ऐसा हो न सका.
किसानों ने अफसरों पर लगाए आरोप
किसानों का कहना है कि कर्ज और पशु विभाग की अफसरों की वजह से उनका धंधा चौपट हो गया. उनकी गाय बीमारी की वजह से मर गईं क्योंकि पशु विभाग के डॉक्टर कभी जानवरों को देखने तक नहीं आए. यहां तक जो दूध उन्होंने डेयरी प्लांट में दिया, उसका भुगतान अभी तक नहीं हुआ है.
प्रशासन ने दिया तर्क
वहीं प्रशासन का कहना है कि जो दूध पोटाकेबिन में दिया गया है, उसका भुगतान किसानों को नहीं हुआ है. अधिकारियों ने कहा कि जो डेयरी बन गई हैं, उन्हें दोबारा खड़ा किया जाएगा.
खोली गई थीं 56 डेयरी
जिले में क्षीर सागर प्लांट को दूध देने के लिए 56 डेयरी खोली गई थीं. किसानों के समूह तैयार कर अनुदान के साथ 12 लाख रुपए से एक डेयरी तैयार हुई थी. इसके लिए 12 गाय और बोरबेल की व्यवस्था करने के साथ ही किसानों को लोन दिलाकर डेयरी चालू कराई गई. इस व्यवस्था के बाद पशु विभाग ने इन किसानों की ओर मुड़कर नहीं देखा.
बीमा के पैसे नहीं मिले
डेयरी किसान मैन सिंह बताते हैं कि उसके साथ 6 किसान और थे. इस मामले में बीमा का पैसा भी नहीं मिला है. अब बैंक का नोटिस आया है. डेढ़ लाख से ऊपर कर्ज है. मेरे भाई पर भी इतना ही कर्ज है. अब इसको चुका पाना भी मुश्किल हो रहा है. अब ये पैसा जमीन बेचकर चुकाते हैं, तो परिवार का क्या होगा? दिन रात यही चिंता सताती रहती है.
पशु विभाग चाहता, तो ये हालात नहीं बनते
किसान गणेश यादव कहते हैं कि पशु विभाग चाहता, तो डेयरी किसानों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती. कभी डर नहीं आए, तो कभी क्षीर सागर से पैसा नहीं मिला. किसान समस्याओं से फंसता चला गया. जिले में जितनी भी डेयरी थी, सभी बंद हो गई हैं जो बची भी हैं, वे भी बंद होने की कगार पर हैं
मशीनें किसी काम की नहीं
इस प्लांट को बनाने में प्रशासन ने 70 लाख रुपए खर्च कर डाले और पिछले साल भी प्लांट के लिए करीब 30 लाख रुपए से उपकरण मंगाए गए. बटर, पनीर और खोवा बनाने के लिए मशीन मंगाई तो गईं, लेकिन पिछले एक साल से वो धूल खा रही हैं. इस प्लांट में महज 1000 लीटर के लगभग दूध हैं. 3 हजार लीटर की क्षमता वाला पालन केंद्र वेंटिलेटर पर है.
अधिकारियों ने क्या कहा
वहीं पशु विभाग के अधिकारी अजमेर सिंह का कहना है कि डेयरियां बंद हो गई हैं. इनके लिए एक समिति बना दी गई है, वो इस बात की जांच करेगी कि डेयरी क्यों बंद हुई. तीन हजार की क्षमता का प्लांट है. बंद डेयरियों को रि-स्टैंड किया जाएगा. जिन किसानों का पैसा बकाया है, उनका पैसा भी दिया जाएगा. कुछ उपकरण भी क्षीरसागर के लिए मंगाए गए हैं.
जिस प्लांट को किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लगाया गया था. फिलहाल वो अन्नदाता की मुसीबत का सबब बना हुआ है. यह देखने वाली बात होगी कि सरकार की नींद कब टूटेगी और कब किसानों को उसका हक मिलेगा.