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हाथी दांत बनी 12 लाख की लागत से बनी डेयरी, किसानों ने कहा- चौपट हो गए - वेंटिलेटर

प्लांट को बनाने में प्रशासन ने 70 लाख रुपए खर्च कर डाले और पिछले साल भी प्लांट के लिए करीब 30 लाख रुपए से उपकरण मंगाए गए. बटर, पनीर और खोवा बनाने के लिए मशीन मंगाई तो गईं, लेकिन पिछले एक साल से वो धूल खा रही हैं. इस प्लांट में महज 1000 लीटर के लगभग दूध हैं. 3 हजार लीटर की क्षमता वाला पालन केंद्र वेंटिलेटर पर है.

12 लाख की लागत से बनी डेयरी, किसानों ने कहा- चौपट हो गए
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Published : Aug 20, 2019, 7:01 PM IST

दंतेवाड़ा: जिला प्रशासन ने किसानों को स्वावलंबी बनाने के लिए साल 2013-14 के दौरान दंतेवाड़ा में क्षीर सागर प्लांट की स्थापना की थी. बस्तर में श्वेत क्रांति लाने के मकसद से यहां 300 लीटर की क्षमता वाला एक मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट तैयार कराया था.

हाथी दांत बनी 12 लाख की लागत से बनी डेयरी, किसानों ने कहा- चौपट हो गए

इस प्रोजेक्ट ने दंतेवाडा जिले के किसानों को पशुपालन की ओर मोड़ने में एक अहम भूमिका निभाई. ऐसी उम्मीद लगी थी कि योजना के शुरू होने से किसानों की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी, लेकिन ऐसा हो न सका.

किसानों ने अफसरों पर लगाए आरोप
किसानों का कहना है कि कर्ज और पशु विभाग की अफसरों की वजह से उनका धंधा चौपट हो गया. उनकी गाय बीमारी की वजह से मर गईं क्योंकि पशु विभाग के डॉक्टर कभी जानवरों को देखने तक नहीं आए. यहां तक जो दूध उन्होंने डेयरी प्लांट में दिया, उसका भुगतान अभी तक नहीं हुआ है.

प्रशासन ने दिया तर्क
वहीं प्रशासन का कहना है कि जो दूध पोटाकेबिन में दिया गया है, उसका भुगतान किसानों को नहीं हुआ है. अधिकारियों ने कहा कि जो डेयरी बन गई हैं, उन्हें दोबारा खड़ा किया जाएगा.

खोली गई थीं 56 डेयरी
जिले में क्षीर सागर प्लांट को दूध देने के लिए 56 डेयरी खोली गई थीं. किसानों के समूह तैयार कर अनुदान के साथ 12 लाख रुपए से एक डेयरी तैयार हुई थी. इसके लिए 12 गाय और बोरबेल की व्यवस्था करने के साथ ही किसानों को लोन दिलाकर डेयरी चालू कराई गई. इस व्यवस्था के बाद पशु विभाग ने इन किसानों की ओर मुड़कर नहीं देखा.

बीमा के पैसे नहीं मिले
डेयरी किसान मैन सिंह बताते हैं कि उसके साथ 6 किसान और थे. इस मामले में बीमा का पैसा भी नहीं मिला है. अब बैंक का नोटिस आया है. डेढ़ लाख से ऊपर कर्ज है. मेरे भाई पर भी इतना ही कर्ज है. अब इसको चुका पाना भी मुश्किल हो रहा है. अब ये पैसा जमीन बेचकर चुकाते हैं, तो परिवार का क्या होगा? दिन रात यही चिंता सताती रहती है.

पशु विभाग चाहता, तो ये हालात नहीं बनते
किसान गणेश यादव कहते हैं कि पशु विभाग चाहता, तो डेयरी किसानों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती. कभी डर नहीं आए, तो कभी क्षीर सागर से पैसा नहीं मिला. किसान समस्याओं से फंसता चला गया. जिले में जितनी भी डेयरी थी, सभी बंद हो गई हैं जो बची भी हैं, वे भी बंद होने की कगार पर हैं

मशीनें किसी काम की नहीं
इस प्लांट को बनाने में प्रशासन ने 70 लाख रुपए खर्च कर डाले और पिछले साल भी प्लांट के लिए करीब 30 लाख रुपए से उपकरण मंगाए गए. बटर, पनीर और खोवा बनाने के लिए मशीन मंगाई तो गईं, लेकिन पिछले एक साल से वो धूल खा रही हैं. इस प्लांट में महज 1000 लीटर के लगभग दूध हैं. 3 हजार लीटर की क्षमता वाला पालन केंद्र वेंटिलेटर पर है.

अधिकारियों ने क्या कहा
वहीं पशु विभाग के अधिकारी अजमेर सिंह का कहना है कि डेयरियां बंद हो गई हैं. इनके लिए एक समिति बना दी गई है, वो इस बात की जांच करेगी कि डेयरी क्यों बंद हुई. तीन हजार की क्षमता का प्लांट है. बंद डेयरियों को रि-स्टैंड किया जाएगा. जिन किसानों का पैसा बकाया है, उनका पैसा भी दिया जाएगा. कुछ उपकरण भी क्षीरसागर के लिए मंगाए गए हैं.

जिस प्लांट को किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लगाया गया था. फिलहाल वो अन्नदाता की मुसीबत का सबब बना हुआ है. यह देखने वाली बात होगी कि सरकार की नींद कब टूटेगी और कब किसानों को उसका हक मिलेगा.

दंतेवाड़ा: जिला प्रशासन ने किसानों को स्वावलंबी बनाने के लिए साल 2013-14 के दौरान दंतेवाड़ा में क्षीर सागर प्लांट की स्थापना की थी. बस्तर में श्वेत क्रांति लाने के मकसद से यहां 300 लीटर की क्षमता वाला एक मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट तैयार कराया था.

हाथी दांत बनी 12 लाख की लागत से बनी डेयरी, किसानों ने कहा- चौपट हो गए

इस प्रोजेक्ट ने दंतेवाडा जिले के किसानों को पशुपालन की ओर मोड़ने में एक अहम भूमिका निभाई. ऐसी उम्मीद लगी थी कि योजना के शुरू होने से किसानों की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी, लेकिन ऐसा हो न सका.

किसानों ने अफसरों पर लगाए आरोप
किसानों का कहना है कि कर्ज और पशु विभाग की अफसरों की वजह से उनका धंधा चौपट हो गया. उनकी गाय बीमारी की वजह से मर गईं क्योंकि पशु विभाग के डॉक्टर कभी जानवरों को देखने तक नहीं आए. यहां तक जो दूध उन्होंने डेयरी प्लांट में दिया, उसका भुगतान अभी तक नहीं हुआ है.

प्रशासन ने दिया तर्क
वहीं प्रशासन का कहना है कि जो दूध पोटाकेबिन में दिया गया है, उसका भुगतान किसानों को नहीं हुआ है. अधिकारियों ने कहा कि जो डेयरी बन गई हैं, उन्हें दोबारा खड़ा किया जाएगा.

खोली गई थीं 56 डेयरी
जिले में क्षीर सागर प्लांट को दूध देने के लिए 56 डेयरी खोली गई थीं. किसानों के समूह तैयार कर अनुदान के साथ 12 लाख रुपए से एक डेयरी तैयार हुई थी. इसके लिए 12 गाय और बोरबेल की व्यवस्था करने के साथ ही किसानों को लोन दिलाकर डेयरी चालू कराई गई. इस व्यवस्था के बाद पशु विभाग ने इन किसानों की ओर मुड़कर नहीं देखा.

बीमा के पैसे नहीं मिले
डेयरी किसान मैन सिंह बताते हैं कि उसके साथ 6 किसान और थे. इस मामले में बीमा का पैसा भी नहीं मिला है. अब बैंक का नोटिस आया है. डेढ़ लाख से ऊपर कर्ज है. मेरे भाई पर भी इतना ही कर्ज है. अब इसको चुका पाना भी मुश्किल हो रहा है. अब ये पैसा जमीन बेचकर चुकाते हैं, तो परिवार का क्या होगा? दिन रात यही चिंता सताती रहती है.

पशु विभाग चाहता, तो ये हालात नहीं बनते
किसान गणेश यादव कहते हैं कि पशु विभाग चाहता, तो डेयरी किसानों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती. कभी डर नहीं आए, तो कभी क्षीर सागर से पैसा नहीं मिला. किसान समस्याओं से फंसता चला गया. जिले में जितनी भी डेयरी थी, सभी बंद हो गई हैं जो बची भी हैं, वे भी बंद होने की कगार पर हैं

मशीनें किसी काम की नहीं
इस प्लांट को बनाने में प्रशासन ने 70 लाख रुपए खर्च कर डाले और पिछले साल भी प्लांट के लिए करीब 30 लाख रुपए से उपकरण मंगाए गए. बटर, पनीर और खोवा बनाने के लिए मशीन मंगाई तो गईं, लेकिन पिछले एक साल से वो धूल खा रही हैं. इस प्लांट में महज 1000 लीटर के लगभग दूध हैं. 3 हजार लीटर की क्षमता वाला पालन केंद्र वेंटिलेटर पर है.

अधिकारियों ने क्या कहा
वहीं पशु विभाग के अधिकारी अजमेर सिंह का कहना है कि डेयरियां बंद हो गई हैं. इनके लिए एक समिति बना दी गई है, वो इस बात की जांच करेगी कि डेयरी क्यों बंद हुई. तीन हजार की क्षमता का प्लांट है. बंद डेयरियों को रि-स्टैंड किया जाएगा. जिन किसानों का पैसा बकाया है, उनका पैसा भी दिया जाएगा. कुछ उपकरण भी क्षीरसागर के लिए मंगाए गए हैं.

जिस प्लांट को किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लगाया गया था. फिलहाल वो अन्नदाता की मुसीबत का सबब बना हुआ है. यह देखने वाली बात होगी कि सरकार की नींद कब टूटेगी और कब किसानों को उसका हक मिलेगा.

Intro:दंतेवाड़ा। जिला प्रशासन ने किसानों के लिए 2013-14 में एक बड़ी सोच के साथ क्षीर सागर प्लांट की स्थापना की। बस्तर में श्वेत क्रांति लाने के लिए 300 लीटर की क्षमता वाला प्लांट तैयार करवाया। साथ ही दंतेवाडा जिले के किसानों को पशुपालन की ओर मोड़ा। यह योजना बस्तर के आदिवासी किसानों की दिशा और दशा दोनो को बदल देने के लिए काफी थी। लेकिन ऐसा नही हुआ। किसानों का कहना है कर्ज ठाले किसान पशु विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के चलते दब गए। डेरिया बन हो गई। गाय बीमारी के चलते गई। पशु विभाग के डॉ कभी देखने नही आए। बैंक का कर्ज इतना बढ़ गया कि अब चुका पाना मुश्किल हो रहा है। बीमा का पैसा मिला नही। हालात कभी सुधरे नही। किसानों ने क्षीर सागर में दूध दिया तो पैसा समय पर मिला नही। अभी भी किसानों का पैसा फंसा हुआ है। अधिकारी कहते है कि पोटाकेबिन में दूध दिया गया वहां से पैसा नही मिला। जल्द ही किसानों की इस हालात को सुधारा जाएगा। जो डेयरी बन हो गई है उनको दोबारा खड़ा किया जाएगा।



Body:56 डेयरी में 28 बंद, कर्ज में डूबे किसान
जिले में क्षीर सागर प्लांट को दूध देने के लिए 56 डेयरी खोली गई। किसानों के समूह तैयार कर अनुदान के साथ 12 लाख रुपए से एक डेयरी तैयार हुई। 12 गाय और बोरबेल के साथ व्यवस्था की गई। किसानों को लोन दिलवा कर डेयरी चालू करवआई गई। इस व्यवस्था के बाद पशुविभाग ने इन किसानों की ओर मुड़ का नही देखा। चिता लंका निवासी डेयरी किसान मैन सिंह बताता है कि उसके साथ 6 किसान और थे। डेयरी की शुरुआत करवाई गई। कुछ दिन बाद ही गे बीमार पड़ी, विभाग से कोई नही आया और एक एक कार गे मरती गई। बीमा का भी पैसा नही मिला। अब बैंक का नोटिस आता है। डेढ़ लाख से ऊपर कर्ज है। मेरे भाई पर भी इतना ही कर्ज है। अब इसको चुका पाना मुश्किल हो रहा है। अब ये पैसा जमीन बेच कर चुकाते है तो परिवार का क्या होगा? दिन रात यही चिंता सताती है।
पशु विभाग चाहता तो ये हालात नही बनते
दंतेवाड़ा का किसान गणेश यादव कहता है कि पशु विभाग चाहता तो डेयरी किसानों की ऐसी दुर्दशा नही होती। कभी डर नही आए तो कभी क्षीर सागर से पैसा नही मिला। किसान विकट समस्यओं में फंसता चला गया। जिले में जितनी डेयरी थी सभी बैंड हो गई जो बची भी है, वे बंद होने की कगार पर है। अभी भी किसानों को पैसा लेना है , लेकिन क्षीर सागर से मिला नहीं। जानवर को जब खिलाने के लिए नही होगा तो कैसे चलेगी डेयरी?
प्रशासन क्षीरसागर मशीनरी जुटाने में पैसा करता रहा खर्च
70 लाख रुपए से स्थापित इस प्लांट में पैसा खर्च करने में कोई कमी प्रशासन ने नही छोड़ी। पिछले साल एक बार फिर करीब 30 लाख रुपए से उपकरण मंगाए। बटर बनने के लिए, पनीर बनाने के लिए, खोवा मशीन । ये सभी मशीन एक साल से ढकी रखी है। इनका इंस्टाल तक नही किया गया। इस प्लांट में महज 1000 लीटर के लगभग दूध है। 300 हजार की क्षमता वाला पालन बेंटिलेटर पर है।


Conclusion:पशु विभाग के अधिकारी डॉ अजमेर सिंह का कहना है की के डेयरी बन हो गई है। इनके लिए एक समिति बना दी गई है। वो जांच करेगी कि डेयरी बंद क्यो हुई है। अभी दूध कम है प्लांट में। तीन हजार की क्षमता का प्लांट है। बंद डेयरियों को रे स्टैंड किया जाएगा। जिन किसानों का पैसा बकाया है, उनका पैसा भी मिलेगा। जिला शिक्षा अधिककरी को पत्र लिखा गया है। पोटाकेँ में दूध गया है। वहां से करीब 22 लाख रुपए लेना है। कुछ उपकरण क्षीरसागर के लिए मंगाए गए है। उनको इसी सप्ताह स्थापित करवाया जाएगा।
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