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बिलासपुर: जान-जोखिम में डालकर तेंदूपता तोड़ते हैं आदिवासी, सुरक्षा की नहीं है व्यवस्था

आदिवासी जंगलों में जाकर तेंदूपत्ता इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें समितियों में बेच रहे हैं.

तेंदूपत्ता इकट्ठा करते आदिवासी
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Published : May 17, 2019, 7:09 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ सरकार तेंदूपत्ता खरीदी योजना शुरू कर चुकी है, जिसमें स्थानीय आदिवासी जंगलों में जाकर तेंदूपत्ता इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें समितियों में बेच रहे हैं. भोले-भाले आदिवासियों से 100 गड्डी के साथ 4 से 5 गड्डी ज्यादा पुरौना के रूप में अवैध तरीके से लिया जा रहा है.

तेंदूपत्ता इकट्ठा करते आदिवासी

भालू प्रभावित क्षेत्र होने के बावजूद भी गरीब आदिवासी जान जोखिम में डालकर जंगल में जाते हैं और तेन्दूपत्ता तोड़ते हैं. विभाग के पास संग्राहकों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है. हालांकि मामला सामने-सामने आने के बाद विभाग टास्क फोर्स और उड़नदस्ता के माध्यम से कार्रवाई की बात कह रहा है.

इस काम में शामिल रहता है पूरा परिवार
मरवाही वन मंडल के चार वन परिक्षेत्र में 16 समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता खरीदी का काम शुरू हो चुका है, जिसमें इलाके के आदिवासी जंगलों से तेंदूपत्ता संग्रहण कर इन समितियों में बेचने आ रहे हैं. तेंदूपत्ता संग्रहण में लगभग पूरा का पूरा परिवार ही लगा रहता है, जिसमें तेंदूपत्ता तोड़ने से लेकर गड्डी बनाने और संग्रहण केंद्रों में बेचने तक का काम है. समितियों में ग्राहकों को प्रति गड्डी लगभग 50 पत्ते देना रहता है, जिसकी दर 1000 गड्डियों पर 4000 रुपए निर्धारित है. हालांकि इसके बाद शासन उन्हें बोनस के रूप में भी रुपए या सामग्री देता रहा है.

हितग्रामी अधिक पत्ते देने की बात कर रहे स्वीकार
इस बार भी संग्राहक से फड़ मुंशी प्रति 100 गड्डी पर चार गड्डी ज्यादा पुरौना के रूप में ले रहे हैं, लेकिन कैमरे के सामने मुंशी हितग्राहियों से अधिक पत्ते लेने की बात से इंकार कर रहा है. वहीं हितग्राही दबी जुबान से अधिक पत्ते देने की बात स्वीकार कर रहे हैं. संग्राहक चली आ रही परंपरा के अनुसार चार गड्डी ज्यादा देने को मजबूर हैं.

ग्रामीण रोज उठाते हैं भालू का खतरा
इसके साथ ही मरवाही वन मंडल के जंगलों में भालुओं की भारी तादाद है, जो गर्मी के मौसम में जंगली फल तेंदू, चारा खाने से लेकर पानी और छाव के लिए जंगलों में विचरण करते रहते हैं, जिससे आए दिन इनका आमना-सामना हो जाता है, लेकिन पैसे और पेट के लिए ग्रामीण रोज यह खतरा उठाने को मजबूर हैं.

मरवाही वन मंडल आ रहा है सख्त नजर
31 हजार 900 मानक बोरा का लक्ष्य लेकर खरीदी करता मरवाही वन मंडल पुरौने को लेकर काफी सख्त नजर आ रहा है. वन मंडल अधिकारी मीडिया से यह बात सामने आने की बात कहते हुए तुरंत ही उड़नदस्ते और ट्रांसफर के बॉस के माध्यम से इस पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही पत्र लिखकर फड़ मुंशियों को भी निर्देश दिया गया है कि किसी भी रूप में संग्राहकों से अब पुरौना न लिया जाए.

जंगल के अंदर न जाने के विभाग ने दिए निर्देश
वहीं भालू प्रभावित क्षेत्रों में मुठभेड़ रोकने के लिए विभाग के पास कोई योजना तो नहीं है, लेकिन संभावित खतरे को देखकर राहत और बचाव के लिए विभाग ने समितियों के माध्यम से संग्राहकों को जंगल के अंदर न जाने और एहतियात बरतने के ही निर्देश दिए हैं.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ सरकार तेंदूपत्ता खरीदी योजना शुरू कर चुकी है, जिसमें स्थानीय आदिवासी जंगलों में जाकर तेंदूपत्ता इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें समितियों में बेच रहे हैं. भोले-भाले आदिवासियों से 100 गड्डी के साथ 4 से 5 गड्डी ज्यादा पुरौना के रूप में अवैध तरीके से लिया जा रहा है.

तेंदूपत्ता इकट्ठा करते आदिवासी

भालू प्रभावित क्षेत्र होने के बावजूद भी गरीब आदिवासी जान जोखिम में डालकर जंगल में जाते हैं और तेन्दूपत्ता तोड़ते हैं. विभाग के पास संग्राहकों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है. हालांकि मामला सामने-सामने आने के बाद विभाग टास्क फोर्स और उड़नदस्ता के माध्यम से कार्रवाई की बात कह रहा है.

इस काम में शामिल रहता है पूरा परिवार
मरवाही वन मंडल के चार वन परिक्षेत्र में 16 समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता खरीदी का काम शुरू हो चुका है, जिसमें इलाके के आदिवासी जंगलों से तेंदूपत्ता संग्रहण कर इन समितियों में बेचने आ रहे हैं. तेंदूपत्ता संग्रहण में लगभग पूरा का पूरा परिवार ही लगा रहता है, जिसमें तेंदूपत्ता तोड़ने से लेकर गड्डी बनाने और संग्रहण केंद्रों में बेचने तक का काम है. समितियों में ग्राहकों को प्रति गड्डी लगभग 50 पत्ते देना रहता है, जिसकी दर 1000 गड्डियों पर 4000 रुपए निर्धारित है. हालांकि इसके बाद शासन उन्हें बोनस के रूप में भी रुपए या सामग्री देता रहा है.

हितग्रामी अधिक पत्ते देने की बात कर रहे स्वीकार
इस बार भी संग्राहक से फड़ मुंशी प्रति 100 गड्डी पर चार गड्डी ज्यादा पुरौना के रूप में ले रहे हैं, लेकिन कैमरे के सामने मुंशी हितग्राहियों से अधिक पत्ते लेने की बात से इंकार कर रहा है. वहीं हितग्राही दबी जुबान से अधिक पत्ते देने की बात स्वीकार कर रहे हैं. संग्राहक चली आ रही परंपरा के अनुसार चार गड्डी ज्यादा देने को मजबूर हैं.

ग्रामीण रोज उठाते हैं भालू का खतरा
इसके साथ ही मरवाही वन मंडल के जंगलों में भालुओं की भारी तादाद है, जो गर्मी के मौसम में जंगली फल तेंदू, चारा खाने से लेकर पानी और छाव के लिए जंगलों में विचरण करते रहते हैं, जिससे आए दिन इनका आमना-सामना हो जाता है, लेकिन पैसे और पेट के लिए ग्रामीण रोज यह खतरा उठाने को मजबूर हैं.

मरवाही वन मंडल आ रहा है सख्त नजर
31 हजार 900 मानक बोरा का लक्ष्य लेकर खरीदी करता मरवाही वन मंडल पुरौने को लेकर काफी सख्त नजर आ रहा है. वन मंडल अधिकारी मीडिया से यह बात सामने आने की बात कहते हुए तुरंत ही उड़नदस्ते और ट्रांसफर के बॉस के माध्यम से इस पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही पत्र लिखकर फड़ मुंशियों को भी निर्देश दिया गया है कि किसी भी रूप में संग्राहकों से अब पुरौना न लिया जाए.

जंगल के अंदर न जाने के विभाग ने दिए निर्देश
वहीं भालू प्रभावित क्षेत्रों में मुठभेड़ रोकने के लिए विभाग के पास कोई योजना तो नहीं है, लेकिन संभावित खतरे को देखकर राहत और बचाव के लिए विभाग ने समितियों के माध्यम से संग्राहकों को जंगल के अंदर न जाने और एहतियात बरतने के ही निर्देश दिए हैं.

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एंकर - छत्तीसगढ़ सरकार तेंदूपत्ता खरीदी योजना शुरू कर चुकी है जिसमें स्थानीय आदिवासी जंगलों में जाकर तेंदूपत्ता इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें समितियों में बेचा जा रहा है पर इसके साथ इन्हीं केंद्रों में भोले भाले आदिवासियों से 100 गड्डी के पीछे 4 से 5 गड्डी ज्यादा पुरौना के रूप में अवैध रूप से ले लिया जा रहा है.. तेंदूपत्ता संग्राहक भी चली आ रही परंपरा के तहत 4 से 5 गड्डी ज्यादा देने को मजबूर हैं, वहीं अत्यंत भालू प्रभावित क्षेत्र होने के बावजूद भी ये गरीब भोलेभाले आदिवासी जान जोखिम में डालकर जंगल जाकर तेन्दूपत्ता तोड़ने को मजबूर है।विभाग के पास संग्रहको की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम भी नहीं है.. हालांकि मामला सामने सामने आने के बाद विभाग टास्क फोर्स और उड़न दस्ता के माध्यम से कार्यवाही कराने की बात कह रहा है...

वीओ 1 - मरवाही वन मंडल के चार वन परिक्षेत्र में 16 समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता खरीदी का काम शुरू हो चुका है जिसमें इलाके के आदिवासी जंगलों से तेंदूपत्ता संग्रहण कर इन समितियों में बेचने आ रहे हैं तेंदूपत्ता संग्रहण में लगभग पूरा का पूरा परिवार ही लगा रहता है जिसमें तेंदूपत्ता तोड़ने से लेकर गड्डी बनाने और संग्रहण केंद्रों में बेचने तक का काम है समितियों में सन ग्राहकों को प्रति गड्डी लगभग 50 पत्ते देना रहता है जिसकी दर 1000 गाड़ियों पर ₹4000 निर्धारित की गई है हालांकि इसके बाद शासन उन्हें बोनस के रूप में भी रुपए या सामाग्री देता रहा है,, इस बार भी संग्राहक से फड़ मुंशी प्रति 100 गड्डी पर चार गड्डी ज्यादा पुरौना के रूप में ले रहे हैं पर कैमरे के सामने मुशी तो हितग्राहियों से अधिक पत्ते लेने की बात से इंकार कर रहा है तो हितग्रामी दबी जूबा से अधिक पत्ते देने की बात स्वीकार कर रहा है. संग्राहक भी चली आ रही परंपरा के अनुसार चार गड्डी ज्यादा देने को मजबूर हैं..इसके साथ ही मरवाही वन मंडल के जंगलों में भालूओं की भारी तादाद है जो गर्मी के मौसम में जंगली फल तेंदू, चार खाने से लेकर पानी और छाव के लिए जंगलों में खुले रूप से विचरण करते रहते हैं जिससे आए दिन इनका आमना-सामना हो ही जाता है पर पैसे और पेट के लिए यह ग्रामीण रोज यह खतरा उठाने को मजबूर है....

बाईट 1– सहेलिया बाई - तेंदूपत्ता संग्राहक
बाईट 2– जय सिंह - तेंदूपत्ता संग्राहक
बाईट 3 फूल सिंह संग्राहक
बाईट 4 सोन सॉय संग्राहक
वीओ - ज्यादातर तेंदूपत्ता संग्राहक सुबह की पहली किरण के साथ अपने परिवार साथ में लेकर तेंदूपत्ता संग्रह करने जंगलों में निकल जाते हैं और धूप तेज होते ही लगभग 11से 12 बजे घर वापस लौट आते हैं इसके बाद शुरू होता है लाए गए पत्तों की गड्डियां बनाने का काम, जिसमें घर के बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक हाथ बटाटे हैं, उसके बाद घर का कोई भी सदस्य इन तैयार गड्डियों की पोटली लेकर संग्रहण केंद्र आता है , जहां मुंशी पत्तों की क्वालिटी और संख्या देखकर उसे खरीदना है या रिजेक्ट करना है तय करता है, इतना सब होने के बाद संग्राहको को चार से पांच गड्डी प्रति सैकड़ा ज्यादा देने की मजबूरी है, क्योंकि परंपरा वर्षों से चल रही है.. पुरौना के पीछे फड़ मुंशी का तर्क है कि गड्डियां हवा में उड़ जाती है इसकी वजह से संग्राहक स्वेच्छा से चार से पांच गड्डियां ज्यादा देते हैं हमारा कोई दबाव नहीं है... वहीं 31900 मानक बोरा का लक्ष्य लेकर खरीदी सुकरता मरवाही वन मंडल पुराने को लेकर काफी सख्त नजर आ रहा है वन मंडल अधिकारी जी मीडिया से यह बात सामने आने की बात कहते हुए तुरंत ही उड़न दस्ते और ट्रांसफर के बॉस के माध्यम से इस पर रोक लगाने के निर्देश दे दिए हैं साथ ही पत्र लिखकर फड़ मुंशीओं और को भी निर्देश दिया गया है कि किसी भी रूप में संग्राहकों से अब पुरौना ना लिया जाए... वहीं भालू प्रभावित क्षेत्रों में मुठभेड़ रोकने के लिए विभाग के पास कोई योजना तो नहीं है पर संभावित खतरे को देखकर राहत एवं बचाव के लिए विभाग ने समितियों के माध्यम से सन ग्राहकों को जंगल के अंदर ना जाने और एहतियात बरतने के ही निर्देश और समझाइस दिए हैं...

बाईट – रमेश यादव फड़ मुंशी
बाईट वी मथेश्वरण - DFO मरवाही वन मंडल

दरअसल तेंदूपत्ता संग्राहक भोले भाले आदिवासियों से पुरौना के रूप में 4 से 5 गड्डियां ज्यादा लेने का चलन ठेकेदारी प्रथा से चलन में है जो पहले 8 से 10 गड्डी था , सरकारीकरण होने के बाद इसकी संख्या 4 से 5 हो गयी,
अगर 31900 मानक बोरे की खरीदी लक्ष्य को पुरौना से हिसाब लगाएं तो 63 लाख 80 हजार गड्डियां पुरौना के रूप में अवैध वसूली का बनता है, जिसकी कीमत 2करोड़ 55 लाख 20 हजार होती, अब यह रकम किसकी जेब में जाती है इसका तो अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता पर , मामला सामने आने के बाद वनविभाग के अधिकारी इस पर तत्काल रोक लगाने की बात कह रहे हैं...

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