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पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का निधन, कुष्ठरोगियों की सेवा के लिए नहीं की शादी

छत्तीसगढ़ से बड़ी ही दुखद खबर सामने आई है. पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का निधन हो गया है. उन्होंने बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली.

पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का निधन
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Published : Aug 17, 2019, 9:08 AM IST

Updated : Aug 17, 2019, 4:07 PM IST

बिलासपुर: पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का निधन हो गया है. उन्होंने बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली. वे 87 वर्ष के थे. लोगों के अंतिम दर्शन के लिए सुबह 9 से 10 बजे तक सोंठी आश्रम में उनकी पार्थिव शरीर रखी जाएगी. इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया जाएगा.

उन्हें अप्रैल 2018 में पद्मश्री सम्मान मिला था. बापट ने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की सेवा में अहम योगदान दिया है. बता दें कि बिलासपुर के ही साहित्यकार स्वर्गीय श्यामलाल चतुर्वेदी और गणेश बापट को वर्ष 2018 में एक साथ पद्मश्री मिला था. उनके निधन से प्रदेश में शोक की लहर है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिया था सम्मान
बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सन् 2018 में नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ समाजसेवी दामोदर गणेश बापट को पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया था. चांपा शहर से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ की ओर से संचालित आश्रम में कुष्ठ पीड़ितों की सेवा के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था. इस कुष्ठ आश्रम की स्थापना सन 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे द्वारा की गई थी, जहां वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता बापट सन 1972 में पहुंचे और कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए सेवा के अनेक प्रकल्पों की शुरुआत की. कुष्ठ रोग के प्रति लोगों को जागृत करने के अलावा कुष्ठ रोगियों की सेवा व आर्थिक व्यवस्था करने का कार्य किया.

मिला था वनवासियों को पढ़ाने का जिम्मा
बापट मूलतः ग्राम पथरोट, जिला अमरावती (महाराष्ट्र) के रहने वाले थे. नागपुर से बीए और बीकॉम की पढ़ाई की थी. बचपन से ही उनके मन में सेवा की भावना कूट-कूटकर भरी थी. यही वजह है कि वे करीब 9 वर्ष की आयु से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता बन गए. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे जीवकोपार्जन के लिए पहले कई स्थानों में नौकरी की, लेकिन उनका मन तो बार-बार समाजसेवा की ओर ही जाता था. इसी मकसद से वे छत्तीसगढ़ के वनवासी कल्याण आश्रम जशपुरनगर पहुंचे.उन्हें वनवासी ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा गया था और उन पर वनवासियों को पढ़ाने का जिम्मा सौंपा गया था. यहां रहते हुए ही बापट को ग्राम सोठीं स्थित कुष्ठ निवारक संघ की जानकारी हुई. वे कुष्ठ पीड़ितों की सेवा के लिए शुरू किए गए कार्य को देखने आए और काफी प्रभावित हो गए.

कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए नहीं की शादी
उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. सेवा कार्य में व्यवधान न हो इसलिए उन्होंने शादी तक नहीं की. दिलचस्प बात यह है कि बापट कुष्ठ रोगी नहीं थे. दामोदर गणेश बापट के समर्पण का ही नतीजा था कि संस्था परिसर एक स्वतंत्र ग्राम बन गया है. छात्रावास, स्कूल, झूलाघर, कम्प्यूटर प्रशिक्षण, सिलाई प्रशिक्षण, ड्राइविंग प्रशिक्षण, अन्य एक दिवसीय प्रशिक्षण, चिकित्सालय, कुष्ठ सेवा, एंबुलेंस, चलित औषधालय एंबुलेंस व कुपोषण निवारण, कृषि, बागवानी, गौशाला, चाक निर्माण, दरी टाटपट्टी निर्माण, वेल्डिंग, सिलाई केंद्र, जैविक खाद, गोबर गैस, कामधेनु अनुसंधान केंद्र, रस्सी निर्माण सहित अन्य गतिविधि यहां संचालित हैं. उनके प्रयास से इस संघ को अनेक पुरस्कार व सम्मान पहले ही मिल चुके हैं.

बिलासपुर: पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का निधन हो गया है. उन्होंने बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली. वे 87 वर्ष के थे. लोगों के अंतिम दर्शन के लिए सुबह 9 से 10 बजे तक सोंठी आश्रम में उनकी पार्थिव शरीर रखी जाएगी. इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया जाएगा.

उन्हें अप्रैल 2018 में पद्मश्री सम्मान मिला था. बापट ने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की सेवा में अहम योगदान दिया है. बता दें कि बिलासपुर के ही साहित्यकार स्वर्गीय श्यामलाल चतुर्वेदी और गणेश बापट को वर्ष 2018 में एक साथ पद्मश्री मिला था. उनके निधन से प्रदेश में शोक की लहर है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिया था सम्मान
बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सन् 2018 में नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ समाजसेवी दामोदर गणेश बापट को पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया था. चांपा शहर से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ की ओर से संचालित आश्रम में कुष्ठ पीड़ितों की सेवा के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था. इस कुष्ठ आश्रम की स्थापना सन 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे द्वारा की गई थी, जहां वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता बापट सन 1972 में पहुंचे और कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए सेवा के अनेक प्रकल्पों की शुरुआत की. कुष्ठ रोग के प्रति लोगों को जागृत करने के अलावा कुष्ठ रोगियों की सेवा व आर्थिक व्यवस्था करने का कार्य किया.

मिला था वनवासियों को पढ़ाने का जिम्मा
बापट मूलतः ग्राम पथरोट, जिला अमरावती (महाराष्ट्र) के रहने वाले थे. नागपुर से बीए और बीकॉम की पढ़ाई की थी. बचपन से ही उनके मन में सेवा की भावना कूट-कूटकर भरी थी. यही वजह है कि वे करीब 9 वर्ष की आयु से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता बन गए. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे जीवकोपार्जन के लिए पहले कई स्थानों में नौकरी की, लेकिन उनका मन तो बार-बार समाजसेवा की ओर ही जाता था. इसी मकसद से वे छत्तीसगढ़ के वनवासी कल्याण आश्रम जशपुरनगर पहुंचे.उन्हें वनवासी ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा गया था और उन पर वनवासियों को पढ़ाने का जिम्मा सौंपा गया था. यहां रहते हुए ही बापट को ग्राम सोठीं स्थित कुष्ठ निवारक संघ की जानकारी हुई. वे कुष्ठ पीड़ितों की सेवा के लिए शुरू किए गए कार्य को देखने आए और काफी प्रभावित हो गए.

कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए नहीं की शादी
उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. सेवा कार्य में व्यवधान न हो इसलिए उन्होंने शादी तक नहीं की. दिलचस्प बात यह है कि बापट कुष्ठ रोगी नहीं थे. दामोदर गणेश बापट के समर्पण का ही नतीजा था कि संस्था परिसर एक स्वतंत्र ग्राम बन गया है. छात्रावास, स्कूल, झूलाघर, कम्प्यूटर प्रशिक्षण, सिलाई प्रशिक्षण, ड्राइविंग प्रशिक्षण, अन्य एक दिवसीय प्रशिक्षण, चिकित्सालय, कुष्ठ सेवा, एंबुलेंस, चलित औषधालय एंबुलेंस व कुपोषण निवारण, कृषि, बागवानी, गौशाला, चाक निर्माण, दरी टाटपट्टी निर्माण, वेल्डिंग, सिलाई केंद्र, जैविक खाद, गोबर गैस, कामधेनु अनुसंधान केंद्र, रस्सी निर्माण सहित अन्य गतिविधि यहां संचालित हैं. उनके प्रयास से इस संघ को अनेक पुरस्कार व सम्मान पहले ही मिल चुके हैं.

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Padmashri Damodar Ganesh Bapat died


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Last Updated : Aug 17, 2019, 4:07 PM IST
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