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लॉकडाउन: प्रवासी मजदूरों का अंतहीन दर्द, भूखे-प्यासे सफर करने को मजबूर

लॉकडाउन ने जहां एक तरफ कोरोना संक्रमण को रोकने में मदद की है, लेकिन इससे प्रवासी मजदूरों की रोजी रोटी खत्म हो गई है. मजदूर अब भूखे प्यासे परदेस से अपने-अपने राज्यों में लौट रहे हैं.

Migrant laborers returning home
400 किलोमीटर का पैदल सफर
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Published : Apr 26, 2020, 3:07 PM IST

बिलासपुर: प्रवासी मजदूरों का अपने राज्य लौटने का सिलसिला नहीं रुक रहा है. लॉकडाउन 2.0 के बाद से प्रवासियों के घर लौटने के मामले तेज हो गए हैं. लोग साधन न होने पर पैदल और साइकिल के सहारे ही सफर शुरू कर रहे हैं. सरकार प्रवासियों के रहने-खाने की व्यवस्था करने का दावा कर रही है लेकिन ये दावें मजदूरों के दर्द के आगे नहीं टिकते. सरकार मजदूर तबके के लोगों को विशेष पैकेज देकर राहत देने की कोशिश की है. लेकिन सारी कोशिश नाकाफी साबित हो रही है.

इस दर्द की दवा नहीं !

पेंड्रा में रायपुर से पैदल चलकर आया एक परिवार डिंडौरी तक का सफर कर रहा है. इस परिवार में 4 महीने का दुधमुंहा बच्चा और 4 साल की बच्ची भी शामिल है. उन्हें रायपुर से 100 किलोमीटर और चलना है. मजदूरों के दर्द की कहानी यहीं खत्म नहीं होती इसमें उत्तर प्रदेश के 12 प्रवासी मजदूरों का एक समूह भी है जो बढ़ते लॉकडाउन को लेकर साइकिल से निकल पड़ा है ताकि वह 1200 किलोमीटर का सफर तय कर सके और अपने घर पहुंच जाए.

क्यों जा रहे हैं प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूर प्रदेश में कमाने के इरादे से आते हैं. लॉकडाउन में वो कमाई पूरी तरह रुक गई है. आय का जरिया न होने से प्रवासी मजदूरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में लोग शहर छोड़कर निकल रहे हैं.

मकान मालिकों की संवेदनहीनता

पेंड्रा पहुंचे प्रवासी मजदूर परिवार ने बताया कि लॉकडाउन के पहले चरण में जैसे-तैसे बचे पैसों से गुजारा कर लिया गया. लेकिन जैसे ही दूसरे चरण की शुरुआत हुई, पैसे लगभग खत्म हो चुके थे. मकान मालिक लगातार कियाए की मांग कर रहा था. किराए के पैसे नहीं होने के कारण उन्हें घर छोड़ना पड़ा. प्रवासी मजदूर शहर में घर किराए पर लेकर रहते हैं. ऐसे में मकानमालिकों से शासन-प्रशासन ने इस दौरान किराएदारों को परेशान न करने की अपील की थी. लेकिन ज्यादातर मामलों में मकान मालिक संवेदनहीनता दिखा रहे हैं.

रोजगार देने वालों ने खड़े किए हाथ

लॉकडाउन के दौरान निजी संस्थानों में काम करने वाले छोटे मजदूरों को मालिकों ने निकाल दिया है. आगे रोजगार का जुगाड़ कब होगा इसकी कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे में मजदूर जल्द से जल्द बचे पैसों से अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं, ताकि 2 वक्त की रोटी मिल सके. साइकिल से निकले मजदूरों का यही कहना था कि आय के स्रोत के बिना कितने दिन शहर में काट सकते इसलिए बचे पैसों से साइकिल खरीदकर निकल पड़े हैं.

ऐसा रहा तो लॉकडाउन फेल

सरकार और प्रशासन ने संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन किया था, ताकि कोरोना का संक्रमण एक जगह से दूसरी जगह न फैले लोग घरों में रहें जिससे इस पर जल्दी काबू पाया जा सके. प्रवासी मजदूर वर्ग ग्रामीण इलाकों से आते हैं. प्रशासन नहीं चाहता था कि ग्रामीण इलाकों में संक्रमण हो. इसलिए पलायन, वाहन, ट्रेन सभी पर रोक है. बावजूद इसके दुरुस्त व्यवस्था न होने के कारण मजदूरों का पलायन नहीं रुक रहा. लगातार पैदल, खेतों के रास्ते या जंगल के रास्ते लोग अपने घर पहुंच रहे हैं.

बिलासपुर: प्रवासी मजदूरों का अपने राज्य लौटने का सिलसिला नहीं रुक रहा है. लॉकडाउन 2.0 के बाद से प्रवासियों के घर लौटने के मामले तेज हो गए हैं. लोग साधन न होने पर पैदल और साइकिल के सहारे ही सफर शुरू कर रहे हैं. सरकार प्रवासियों के रहने-खाने की व्यवस्था करने का दावा कर रही है लेकिन ये दावें मजदूरों के दर्द के आगे नहीं टिकते. सरकार मजदूर तबके के लोगों को विशेष पैकेज देकर राहत देने की कोशिश की है. लेकिन सारी कोशिश नाकाफी साबित हो रही है.

इस दर्द की दवा नहीं !

पेंड्रा में रायपुर से पैदल चलकर आया एक परिवार डिंडौरी तक का सफर कर रहा है. इस परिवार में 4 महीने का दुधमुंहा बच्चा और 4 साल की बच्ची भी शामिल है. उन्हें रायपुर से 100 किलोमीटर और चलना है. मजदूरों के दर्द की कहानी यहीं खत्म नहीं होती इसमें उत्तर प्रदेश के 12 प्रवासी मजदूरों का एक समूह भी है जो बढ़ते लॉकडाउन को लेकर साइकिल से निकल पड़ा है ताकि वह 1200 किलोमीटर का सफर तय कर सके और अपने घर पहुंच जाए.

क्यों जा रहे हैं प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूर प्रदेश में कमाने के इरादे से आते हैं. लॉकडाउन में वो कमाई पूरी तरह रुक गई है. आय का जरिया न होने से प्रवासी मजदूरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में लोग शहर छोड़कर निकल रहे हैं.

मकान मालिकों की संवेदनहीनता

पेंड्रा पहुंचे प्रवासी मजदूर परिवार ने बताया कि लॉकडाउन के पहले चरण में जैसे-तैसे बचे पैसों से गुजारा कर लिया गया. लेकिन जैसे ही दूसरे चरण की शुरुआत हुई, पैसे लगभग खत्म हो चुके थे. मकान मालिक लगातार कियाए की मांग कर रहा था. किराए के पैसे नहीं होने के कारण उन्हें घर छोड़ना पड़ा. प्रवासी मजदूर शहर में घर किराए पर लेकर रहते हैं. ऐसे में मकानमालिकों से शासन-प्रशासन ने इस दौरान किराएदारों को परेशान न करने की अपील की थी. लेकिन ज्यादातर मामलों में मकान मालिक संवेदनहीनता दिखा रहे हैं.

रोजगार देने वालों ने खड़े किए हाथ

लॉकडाउन के दौरान निजी संस्थानों में काम करने वाले छोटे मजदूरों को मालिकों ने निकाल दिया है. आगे रोजगार का जुगाड़ कब होगा इसकी कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे में मजदूर जल्द से जल्द बचे पैसों से अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं, ताकि 2 वक्त की रोटी मिल सके. साइकिल से निकले मजदूरों का यही कहना था कि आय के स्रोत के बिना कितने दिन शहर में काट सकते इसलिए बचे पैसों से साइकिल खरीदकर निकल पड़े हैं.

ऐसा रहा तो लॉकडाउन फेल

सरकार और प्रशासन ने संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन किया था, ताकि कोरोना का संक्रमण एक जगह से दूसरी जगह न फैले लोग घरों में रहें जिससे इस पर जल्दी काबू पाया जा सके. प्रवासी मजदूर वर्ग ग्रामीण इलाकों से आते हैं. प्रशासन नहीं चाहता था कि ग्रामीण इलाकों में संक्रमण हो. इसलिए पलायन, वाहन, ट्रेन सभी पर रोक है. बावजूद इसके दुरुस्त व्यवस्था न होने के कारण मजदूरों का पलायन नहीं रुक रहा. लगातार पैदल, खेतों के रास्ते या जंगल के रास्ते लोग अपने घर पहुंच रहे हैं.

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