बिलासपुर: गुजरे जमाने की कई ऐसी चीजें हैं, जो आज महज यादों में बसी हुई हैं. पुरानी फिल्में और टॉकीज जिसे लोग आज भी भूल नहीं पाए हैं. अविभाजित मध्य प्रदेश में बिलासपुर ऐसे शहरों में शामिल था, जहां सबसे ज्यादा टॉकीज हुआ करता था. बिलासपुर में 11 टॉकीज था, लेकिन समय के साथ-साथ ये टॉकीज अब लुप्त हो चुका है. मनोरंजन के नए साधन और लोगों के शौक बदलने का एक कारण यह भी है कि शहर के कई टॉकीज बंद हो गये हैं. जहां कल तक भीड़ और शोरगुल से पूरा परिसर गुलजार रहता था, वहां अब वीरानगी छा गई है. जिन कुर्सियों के लिए वाद-विवाद होता था, अब वो कुर्सी दर्शकों की राह तकता रहता है.
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टॉकीज में फिल्म देखने का हुआ करता था मजा
एक समय था जब लोग टॉकीज में फिल्में देखने के लिए पहले से प्रोग्राम तय करते थे और अपने परिवार, दोस्तों के साथ फिल्म देखने टॉकीज पहुंचा करते थे. टॉकीज के दर्शकों का कहना है कि वह गुजरा जमाना तो वापस नहीं आएगा, लेकिन उन्हें आज भी वो समय याद है जब टॉकिज में जाकर फिल्म देखने के लिए वो सुबह से ही उत्साहित हुआ करते थे. अब वो मजा मल्टीप्लेक्स या छोटे स्क्रीन में देखने में नहीं मिलता. पुराने लोगों को पुरानी फिल्में और टॉकीज का दौर आज भी याद है, जो कि अब महज लोगों की यादों में बसा हुआ है.
टॉकीज बिल्डिंग का दूसरे कामों में हो रहा उपयोग
पिछले एक दशक में जहां फिल्मों का क्रेज लोगों में कम हुआ है. तो वहीं, लोगों को मनोरंजन के नए साधन भी मिल गए हैं. मोबाइल, टीवी और कई साधन हैं, जिससे लोग अपना मनोरंजन कर लेते हैं. इसके अलावा पिछले एक दशक में कई ऐसी परिस्थितियां आईं, जिससे टॉकीज में दर्शकों की भीड़ कम होती गई.आज की स्थिति में बिलासपुर में 11 में सभी टॉकीज बंद हो गए हैं. अब किसी टॉकीज में बैंक संचालित की जा रही है, तो किसी में हॉस्पिटल, तो कहीं शादी-ब्याह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. इसके साथ ही कई टॉकीज आज भी बंद और जर्जर अवस्था में पड़े हुए हैं. ऊपर से कोरोना इन टॉकीजों के लिए मुसीबत बन कर आया. शहर के सबसे प्रतिष्ठित और सर्व-सुविधायुक्त टॉकीज पिछले कुछ माह पहले जमींदोज कर दी गई.
टॉकिज हो गई लुप्त, इसलिए कई लोग नहीं देखते फिल्म
फिल्मों के शौकीन लोग आज फिल्में इसलिए नहीं देखते क्योंकि आज के दौर की बनीं फिल्म उन्हें पसंद नहीं आती. पहले जो फिल्में आती थीं, वह समाज में एक संदेश देती थीं और लोगों को परिवार में बैठकर फिल्में देखने का आनंद देती थीं. हालांकि आज के दौर में बनीं फिल्मों का लुत्फ लोग परिवार के साथ नहीं उठा पाते. यही वजह है कि कईयों का टॉकिज बंद होने के बाद फिल्मों से मोहभंग हो चुका है. हालांकि कुछ टॉकीज बचे हैं, जिनमें कभी-कभार छत्तीसगढ़िया फिल्में लग जाती हैं. उसमें भी शो के पैसों से खर्च तक नहीं निकल पाता.