बिलासपुर: केंद्र सरकार की ओर से कुष्ठ रोगियों के लिए विशेष सुविधा और योजनाएं चलाई जाती हैं. हालांकि इसका लाभ कुछ ही कुष्ठ रोगियों को मिल पाता है. बाकी लोग भीख मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं. दरअसल, बिलासपुर के नयापारा फदहाखार इलाके में अपनी बस्ती बनाकर रह रहे लगभग 40 कुष्ठ रोगी अपनी जीवन की व्यथा बताते हुए रोने लगते हैं. कुछ को तो परिवार ने कुष्ठ रोग होने पर ठुकरा दिया था. कुछ को उनके घर से निकाल दिया है. वहीं, अब सरकार भी उन्हें उनके हाल पर छोड़ दी है.
कुष्ठ रोगियों को नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ: कुष्ठ रोगियों के लिए योजनाओं का लाभ तो दूर साल में एकाध बार सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से स्वास्थ्य शिविर लग जाता है. लेकिन सरकारी स्वास्थ्य विभाग इनका इलाज करने में रुचि नहीं लेते. ये कुष्ठ रोगी अपनी व्यथा बताते हुए रोने लगते हैं. उनकी हालत देखने वालों की आंखें नम कर रही है. स्थिति इतनी खराब हो चली है कि अब इनको अपना पेट भरने के लिए भीख मांगना पड़ रह रहा है. अब इन्हें उम्मीद है कि प्रदेश की नई सरकार इनकी मदद करेगी.
छत्तीसगढ़ के सीएम ने दी ये हिदायत: छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय ने स्वास्थ्य मंत्रालय की बैठक ली. इस बैठक में प्रदेश में चल रही स्वास्थ्य योजनाओं की जानकारी के साथ ही केंद्रीय योजनाओं की समीक्षा की. इस दौरान मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कुष्ठ रोग को लेकर विशेष ध्यान देने की हिदायत दी है. साथ ही कुष्ठ रोगियों की पहचान कर उन्हें योजनाओं के माध्यम से लाभ पहुंचाने के निर्देश दिए हैं.
कुष्ठ रोगियों की हालत बद से बदतर: पूरे छत्तीसगढ़ में कुष्ठ रोगियों की संख्या में कमी तो है. लेकिन जिन्हें पहले से कुष्ठ रोग है, उनकी स्थिति बद से बदतर है. बिलासपुर के कुष्ठ रोगी आश्रम की अगर बात करें तो यहां लगभग 40 कुष्ठ रोगी रहते हैं. ये वो लोग हैं जो कभी ना कभी अपने परिवार से बहिष्कृत होकर जगह की तलाश में आकर यहां बसे हैं. इनमें से कई ऐसे हैं, जो 40–50 साल से यहां रह रहे हैं. यहां रह रहे एक रोगी ने कहा कि, मुझे कुष्ठ रोग हो गया था और परिवार के सदस्य घर से निकाल दिए. अब डर था कि इनकी वजह से घर के दूसरे सदस्यों को कुष्ठ रोग हो सकता है. यही वजह है कि यहां आकर बस गए हैं. यहां ये रोगी भिक्षावृत्ति कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
क्या कहते हैं कुष्ठ रोगी: बिलासपुर के कुष्ठ रोग बस्ती में रहने वाले बुधराम नेताम अपने परिवार को याद कर रोने लगते हैं. बुधराम नेताम ने बताया कि, "जब मैं छोटा था तब मुझे कुष्ठ रोग हो गया था. परिवार वालों ने घर से निकाल दिया. पेट भरने की आस में शहर की ओर आ गए. लेकिन यहां भी उन्हें सर छुपाने के लिए जगह नहीं मिला. तब जंगल की ओर खाली जगह देखकर रहने की व्यवस्था के लिए आए तो किसी ने बताया कि कुछ और कुष्ठ रोगी वहां रहते हैं. तब अन्य कुष्ट रोगियों के साथ रहने लगा.
पेट भरने के लिए मांगनी पड़ती है भीख: इन कुष्ठ रोगियों के परिवार वाले अगर इनका साथ देते तो इन्हें भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ती. ये रोगी लोगों से अपनी व्यथा कहते-कहते रो पड़ते हैं. इनकी मानें तो पहले बीमार पड़ने पर एक समाजसेवी व्यक्ति उन्हें आकर अस्पतालों में भर्ती कर दिया करते थे. इसके अलावा बिलासपुर के करीब बैतलपुर और दूसरे अस्पताल चांपा कमिशनरी अस्पताल में इन्हें मुफ्त इलाज मिल जाता था. लेकिन अब वहां भी इनको पैसे देने पड़ते हैं. यही कारण है कि ये अपना इलाज भी नहीं करवा पा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग यदि इनकी ओर ध्यान देता तो शायद इनका इलाज बेहतर हो सकता था. लेकिन इलाज के अभाव में इनकी बीमारी दिन ब दिन बढ़ती चली जा रही है. वहीं, पेट भरने के लिए इनको भीख मांगना पड़ रहा है.
लेकिन प्रदेश के नए सीएम की हिदायत के बाद इनके मन में आस जगी है कि शायद अब इनका भला हो जाए और इनको सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके.