बिलासपुर: हाईकोर्ट में सूचना का अधिकार अधिनियम में हुए संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई है. जिस पर डिवीजन बेंच में मुख्य न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा और न्यायाधीश पीपी साहू ने आदेश दिया कि इसी प्रकार की एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. मामले की अगली सुनवाई में कोर्ट ने पूरा स्टेटस प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं.
क्यों दी गई है चुनौती ?
बता दें की केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में संशोधन किया है. याचिकाकर्ता विवेक बाजपेयी ने अपने अधिवक्ता संदीप दुबे, सुशोभित सिंह के जरिए याचिका दायर कर कोर्ट को बताया है कि केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन करते हुए धारा 13, धारा 16 और धारा 27 को संशोधित कर सूचना आयुक्त की शक्तियों को छीन कर अपने अधीन कर लिया है.
याचिकाकर्ता विवेक बाजपेयी ने बताया है कि संशोधन के माध्यम से सूचना आयुक्त की नियुक्ति, सेवा अवधी, वेतन सहित अन्य शक्तियों को पूरे तरीके से केंद्र सरकार के अधीन आ जाएगी .संशोधान से पहले सूचना आयुक्त का वेतन भत्ता और अन्य शक्तियां मुख्य सूचना आयुक्त के बराबर थी. जिसे संशोधान के बाद खत्म कर दिया गया है.
3 हफ्ते बाद होगी अगली सुनवाई
संशोधान से सूचना आयुक्त, जो की एक अर्ध न्यायिक संस्था है उसकी स्वतांत्रता और स्वायत्ता पर आघात पहुंचाया गया है. संशोधान से सूचना आयुक्त की शक्तियां केंद्र सरकार के अधीन हो जायेगा. जिससे नागरिकों को सूचना प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होगी और पार्दर्शिता में भी कमी आएगी. अब इस मामले में 3 सप्ताह के बाद अगली सुनवाई होगी.
सबसे पहले जानते हैं, क्या है सूचना का अधिकार कानून यानि आरटीआई
- साल 2005 में संसद से बिल पारित होने के बाद 12 अक्टूबर, 2005 को कानून बना.
- आरटीआई कानून से नागरिकों को सरकारी विभागों से सूचनाएं मांगने का अधिकार मिलता है.
- संविधान के आर्टिकल 19 और 21 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में आरटीआई को मौलिक अधिकार बताया है.
अब जानते हैं कि आरटीआई कानून से क्या होता है?
- आरटीआई कानून के तहत सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही तय होती है. उन्हें समयबद्ध तरीके से सूचनाएं मुहैया करानी होती हैं, ऐसा न करने पर जुर्माने का प्रावधान है.
- आरटीआई कानून सरकारों को स्वत: पारदर्शिता के दिशानिर्देश देता है.
- दरअसल, आरटीआई के तहत सरकारों से वे सभी सूचनाएं मांगी जा सकती हैं, जिसे सरकार संसद या राज्य की विधानसभा के पटल पर रखती हैं.
- दरअसल, 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई. इसके बाद आरटीआई कानून में कुछ संशोधन किए गए.
जुलाई, 2019 में हुए संशोधन के बाद आरटीआई में कई बदलाव हुए.
- दरअसल, 25 जुलाई, 2019 को संसद से पारित किए गए बिल के बाद, केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों की सैलरी और उनका सेवाकाल तय करने का अधिकार मिल गया है.
- आरटीआई कानून में हुए इस संशोधन की आलोचना भी हो रही है. पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्तों ने इस कदम को मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों को धमकाने या लुभाने का एक कदम करार दिया है.
- आलोचकों का आरोप है कि संशोधन के बाद सूचना आयुक्त सरकारों के दबाव में रहेंगे.
- हालिया संशोधनों के बाद आलोचकों का मानना है कि कानून में संशोधन के बाद सूचना अधिकारियों को मनमाने तरीके से हटाना या सेवा विस्तार दिया जा सकेगा.
- सूचना आयुक्तों की सैलरी बढ़ाना या घटाना, अधिकारियों के सत्तारूढ़ दलों के साथ संबंधों पर निर्भर करेगा.
कौन सी सूचनाएं आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आती हैं?
- आंतरिक सुरक्षा, अन्य देशों से संबंध, बौद्धिक संपदा अधिकार, संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन और जांच में बाधा डालने वाली सूचनाओं को जनता के साथ साझा नहीं किया जा सकता है.
- कैबिनेट के फैसलों को लागू होने से पहले सार्वजनिक किए जाने से छूट मिली है.