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बेमेतरा: स्कूलों के सफाई कर्मी और रसोईया संभालेंगे क्वारेंटाइन सेंटर की कमान

देशभर से मजदूरों का अपने घर लौटने का सिलसिला जा रही है. वहीं बेमेतरा में दूसरे राज्यों से आ रहे मजदूरों को गांव के शासकीय स्कूलों में क्वारेंटाइन किया जा रहा है. मजदूरों के लिए स्कूलों के सफाई कर्मी और रसोईया की ड्यूटी लगाई गई है.

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सफाई कर्मी और रसोईया
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Published : May 20, 2020, 11:25 AM IST

बेमेतारा: कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए दूसरे राज्यों से आ रहे मजदूरों को गांव के शासकीय स्कूलों में क्वारेंटाइन किया जा रहा है. जिनके रहने और खाने की व्यवस्था संबंधित ग्राम पंचायत कर रही है. वहीं जिला शिक्षा अधिकारी ने आदेश जारी करते हुए बेमेतरा जिले के सभी ब्लॉक के शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखा है. पत्र में सफाई कर्मचारी और रसोइया की ड्यूटी क्वारेंटाइन सेंटर में लगाने के निर्देश दिए गए हैं. वहीं मजदूरों के लिए भोजन व्यवस्था करने का जिम्मा भी सौंपा है.

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शिक्षा अधिकारी ने लिखा पत्र

बता दें कि जिले में बड़ी संख्या में मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है. जिन्हें 14 दिनों तक गांव के स्कूलों में ही क्वारेंटाइन किया जा रहा है. वहीं मजदूरों की मदद के लिए स्कूलों की सफाई कर्मी और रसोईया की क्वारेंटाइन सेंटर में ड्यूटी लगाई है. साथ ही क्वारेंटाइन सेंटर में सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक, कोटवार, मितानिन की भी ड्यूटी लगाई गई है.

पढ़ें- कांकेर: 4 मजदूरों को महाराष्ट्र के सोलापुर में ठेकेदार ने बनाया बंधक, मदद की गुहार

क्वारेंटाइन सेंटर के दीवारों पर लिखा जागरूकता संदेश

जिला प्रशासन ने क्वारेंटाइन सेंटर की दीवारों पर जागरूकता संदेश लिखवाया है. जिसमें लागतार साबुन से हाथ धोने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को कहा गया है. साथ ही खांसते या छींक आते समय मुंह पर रुमाल का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं. वहीं सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और संक्रमण के लक्षणों के बारे में बताया गया है.

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कोरोना के खिलाफ जागरूकता संदेश

मजदूर वर्ग हो रहा है परेशान

बता दें कि पूरे देश में कोरोना की मार सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग झेल रहा है. देशभर से मजदूर अपने घरों के लिए पैदल निकल रहे हैं. इसके अलावा मजदूर बस और ट्रकों से जानलेवा सफर करने को मजबूर हैं. छोटे शहरों में काम कर रहे मजदूरों की हालात बेहद खराब है. लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के सामने बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो गई है. केंद्र सरकार ने मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला लिया है, जिसके बाद हजारों की संख्या में मजदूर अपने घरों की ओर रवाना हो रहे हैं. कई मजदूर ऐसे भी हैं, जो अभी भी पैदल ही अपने घर जाने को मजबूर हैं.

बेमेतारा: कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए दूसरे राज्यों से आ रहे मजदूरों को गांव के शासकीय स्कूलों में क्वारेंटाइन किया जा रहा है. जिनके रहने और खाने की व्यवस्था संबंधित ग्राम पंचायत कर रही है. वहीं जिला शिक्षा अधिकारी ने आदेश जारी करते हुए बेमेतरा जिले के सभी ब्लॉक के शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखा है. पत्र में सफाई कर्मचारी और रसोइया की ड्यूटी क्वारेंटाइन सेंटर में लगाने के निर्देश दिए गए हैं. वहीं मजदूरों के लिए भोजन व्यवस्था करने का जिम्मा भी सौंपा है.

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शिक्षा अधिकारी ने लिखा पत्र

बता दें कि जिले में बड़ी संख्या में मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है. जिन्हें 14 दिनों तक गांव के स्कूलों में ही क्वारेंटाइन किया जा रहा है. वहीं मजदूरों की मदद के लिए स्कूलों की सफाई कर्मी और रसोईया की क्वारेंटाइन सेंटर में ड्यूटी लगाई है. साथ ही क्वारेंटाइन सेंटर में सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक, कोटवार, मितानिन की भी ड्यूटी लगाई गई है.

पढ़ें- कांकेर: 4 मजदूरों को महाराष्ट्र के सोलापुर में ठेकेदार ने बनाया बंधक, मदद की गुहार

क्वारेंटाइन सेंटर के दीवारों पर लिखा जागरूकता संदेश

जिला प्रशासन ने क्वारेंटाइन सेंटर की दीवारों पर जागरूकता संदेश लिखवाया है. जिसमें लागतार साबुन से हाथ धोने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को कहा गया है. साथ ही खांसते या छींक आते समय मुंह पर रुमाल का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं. वहीं सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और संक्रमण के लक्षणों के बारे में बताया गया है.

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कोरोना के खिलाफ जागरूकता संदेश

मजदूर वर्ग हो रहा है परेशान

बता दें कि पूरे देश में कोरोना की मार सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग झेल रहा है. देशभर से मजदूर अपने घरों के लिए पैदल निकल रहे हैं. इसके अलावा मजदूर बस और ट्रकों से जानलेवा सफर करने को मजबूर हैं. छोटे शहरों में काम कर रहे मजदूरों की हालात बेहद खराब है. लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के सामने बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो गई है. केंद्र सरकार ने मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला लिया है, जिसके बाद हजारों की संख्या में मजदूर अपने घरों की ओर रवाना हो रहे हैं. कई मजदूर ऐसे भी हैं, जो अभी भी पैदल ही अपने घर जाने को मजबूर हैं.

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