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600 साल पुरानी बस्तरिया परंपरा पर संकट, ग्रामीणों ने रथ के लिए लकड़ी देने से किया इंकार

बस्तर में 75 दिनों का दशहरा मनाया जाता है. जो पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है. सबसे ज्यादा आकर्षित करता है इस दशहरे में परिक्रमा करने वाला विशालकाय लकड़ी का रथ. जिसपर अब ग्रहण लगते दिख रहा है. बताया जा रहा है, ग्रामीणों ने ग्राम सभा कर यह फैसला लिया है कि इस बार रथ निर्माण के लिए उनके गांव के आसपास के जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने दिया जाएगा.

Villagers decide not to cut trees for rath construction
ग्रामीणों ने रथ के लिए लकड़ी देने से किया इंकार
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Published : Sep 10, 2020, 10:03 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में आकर्षण का केंद्र रहने वाले विशालकाय रथ के निर्माण पर संकट के बादल छा गए हैं. अबतक जिस गांव से इस रथ निर्माण के लिए लकड़ियां लाई जाती थी, वहां के ग्रामीणों ने लकड़ी देने से इंकार कर दिया है. ग्रामीणों ने घटते जंगल के इलाकों पर अपनी चिंता जाहिर की है. ग्रामीणों ने ग्राम सभा में निर्णय लिया है कि जंगलों को बचाने के लिए अपने जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने देंगे.

रथ के लिए लकड़ी देने से किया इंकार

बस्तर दशहरे पर पहली समस्या कोरोना महामारी की है. जिसकी वजह से दशहरे में जुटने वाली भीड़ में निश्चित तौर पर कमी देखी जाएगी. जो कि फिलहाल सबसे बड़ी समस्या है. रथ निर्माण के लिए दरभा के ककालगुर के जंगलों से लकड़ियां लाई जाती है. वहां के ग्रामीणों ने ग्राम सभा कर यह फैसला लिया है कि इस बार रथ निर्माण के लिए उनके गांव के आसपास के जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने दिया जाएगा.

रथ का इतिहास

जितना पुराना बस्तर का दशहरा है. ठीक उतना ही पुराना दशहरे के रथ का इतिहास है. बता दें बस्तर में 75 दिनों का दशहरा मनाया जाता है. जो पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है. दशहरे में कई महत्वपूर्ण रस्म निभाई जाती है. जो कि आकर्षण का केंद्र होती है. सबसे ज्यादा आकर्षित करता है इस दशहरे में परिक्रमा करने वाला विशालकाय लकड़ी का रथ, जिसमें बस्तर आराध्य देवी मां दंतेश्वरी छत्र के साथ शहर की परिक्रमा करती हैं. ये परंपरा लगभग 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही है.

रथ के निर्माण के लिए कारीगर बेडा उमरगांव और दुबे उमरगांव से आते हैं. वहीं रथ निर्माण के लिए लकड़ियों कि व्यवस्था दरभा क्षेत्र के जंगलों से की जाती है. बस्तर में यह परंपरा लगभग 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही है. लेकिन इस बार बस्तर के दशहरा के सामने कई समस्या खड़ी हो गई है.

ग्रामीणों को जंगल की चिंता

गांव के फैसले को लेकर सरपंच ने बताया कि रथ निर्माण के नाम पर प्रत्येक वर्ष कई पुराने पेड़ों को काट दिया जा रहा है. जिससे जंगल समाप्त हो रहे हैं और यह सही नहीं है. यहीं वजह है कि पूरे गांव वालों ने ग्राम सभा कर इस फैसले को प्रस्तावित किया है कि, अब वे अपने जंगलों से रथ निर्माण के नाम पर पेड़ नहीं कटने देंगे.

ग्रामीणों ने लगाए पेड़

ग्रामीण रामू राम ने बताया कि उन सभी ने केवल पेड़ों को कटने से नहीं बचाया, बल्कि जिन जंगलों से रथ निर्माण के नाम पर लगातार कटाई की गई है वहां लगभग पांच हजार पौधे लगाए हैं. जिससे उजड़ते जंगलों को फिर से हरा भरा किया जा सके. जिला प्रशासन के सामने यह चिंता का विषय है कि अब वे लकड़ियां कहां से लाएंगे. ग्रामीणों की प्रकृति और अपने जंगलों के प्रति प्रेम काफी सराहनीय है.

जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में आकर्षण का केंद्र रहने वाले विशालकाय रथ के निर्माण पर संकट के बादल छा गए हैं. अबतक जिस गांव से इस रथ निर्माण के लिए लकड़ियां लाई जाती थी, वहां के ग्रामीणों ने लकड़ी देने से इंकार कर दिया है. ग्रामीणों ने घटते जंगल के इलाकों पर अपनी चिंता जाहिर की है. ग्रामीणों ने ग्राम सभा में निर्णय लिया है कि जंगलों को बचाने के लिए अपने जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने देंगे.

रथ के लिए लकड़ी देने से किया इंकार

बस्तर दशहरे पर पहली समस्या कोरोना महामारी की है. जिसकी वजह से दशहरे में जुटने वाली भीड़ में निश्चित तौर पर कमी देखी जाएगी. जो कि फिलहाल सबसे बड़ी समस्या है. रथ निर्माण के लिए दरभा के ककालगुर के जंगलों से लकड़ियां लाई जाती है. वहां के ग्रामीणों ने ग्राम सभा कर यह फैसला लिया है कि इस बार रथ निर्माण के लिए उनके गांव के आसपास के जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने दिया जाएगा.

रथ का इतिहास

जितना पुराना बस्तर का दशहरा है. ठीक उतना ही पुराना दशहरे के रथ का इतिहास है. बता दें बस्तर में 75 दिनों का दशहरा मनाया जाता है. जो पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है. दशहरे में कई महत्वपूर्ण रस्म निभाई जाती है. जो कि आकर्षण का केंद्र होती है. सबसे ज्यादा आकर्षित करता है इस दशहरे में परिक्रमा करने वाला विशालकाय लकड़ी का रथ, जिसमें बस्तर आराध्य देवी मां दंतेश्वरी छत्र के साथ शहर की परिक्रमा करती हैं. ये परंपरा लगभग 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही है.

रथ के निर्माण के लिए कारीगर बेडा उमरगांव और दुबे उमरगांव से आते हैं. वहीं रथ निर्माण के लिए लकड़ियों कि व्यवस्था दरभा क्षेत्र के जंगलों से की जाती है. बस्तर में यह परंपरा लगभग 600 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही है. लेकिन इस बार बस्तर के दशहरा के सामने कई समस्या खड़ी हो गई है.

ग्रामीणों को जंगल की चिंता

गांव के फैसले को लेकर सरपंच ने बताया कि रथ निर्माण के नाम पर प्रत्येक वर्ष कई पुराने पेड़ों को काट दिया जा रहा है. जिससे जंगल समाप्त हो रहे हैं और यह सही नहीं है. यहीं वजह है कि पूरे गांव वालों ने ग्राम सभा कर इस फैसले को प्रस्तावित किया है कि, अब वे अपने जंगलों से रथ निर्माण के नाम पर पेड़ नहीं कटने देंगे.

ग्रामीणों ने लगाए पेड़

ग्रामीण रामू राम ने बताया कि उन सभी ने केवल पेड़ों को कटने से नहीं बचाया, बल्कि जिन जंगलों से रथ निर्माण के नाम पर लगातार कटाई की गई है वहां लगभग पांच हजार पौधे लगाए हैं. जिससे उजड़ते जंगलों को फिर से हरा भरा किया जा सके. जिला प्रशासन के सामने यह चिंता का विषय है कि अब वे लकड़ियां कहां से लाएंगे. ग्रामीणों की प्रकृति और अपने जंगलों के प्रति प्रेम काफी सराहनीय है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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