ETV Bharat / state

बस्तर दशहरा: तेज बारिश के बीच काछन गादी रस्म संपन्न, पर्व शुरू करने की देवी से मिली अनुमति

12 साल की कन्या अनुराधा ने काछन देवी के रूप में कांटो के झूले पर लेटकर बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति दे दी है. इस रस्म को काछन गादी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछन देवी की अनुमति आवश्यक है. इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटो से बने झूले पर लेटाया जाता है.

Kachchan Gadi ceremony concluded
काछन गादी रस्म संपन्न
author img

By

Published : Oct 16, 2020, 10:15 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: अनोखी और आकर्षक परंपराओ के लिए विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आरंभ शुक्रवार की रात देवी की अनुमति के बाद हो गया है. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनुठी है. इस रस्म को काछन गादी के नाम से जाना जाता है. इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या कांटो के झूले पर लेटकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. 12 साल की कन्या अनुराधा ने काछन देवी के रूप में कांटो के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए अनुमति दी.

काछन गादी रस्म संपन्न

बस्तर में शाम से हो रही तेज बारिश के बीच इस रस्म की अदायगी धूमधाम से की गई. अनुराधा नाम की कन्या ने कांटो के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति दी है. कोरोना की वजह से इस रस्म में केवल बस्तर राजपरिवार के सभी सदस्य, बस्तर सांसद दीपक बैज, समिति के सदस्य, जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी और मांझी चालकी मौजूद रहे.

Kachchan Gadi ceremony concluded
बस्तर दशहरा पर्व

पढ़ें: मरवाही से कांग्रेस उम्मीदवार केके ध्रुव ने भरा पर्चा, सीएम बोले- स्क्रूटनी के बाद तय होगा कितने कोणीय है मुकाबला ?

610 सालों का इतिहास

करीब 610 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता के अनुसार बेल के कांटो के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछन देवी और रैला देवी की पूजा होती है. शुक्रवार रात काछन देवी के रूप में मिर्घान जाति की कुंआरी कन्या अनुराधा ने बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति दी है.

Kamalchand Bhanjadev of Bastar royal family
बस्तर राजपरिवार के कमलचंद भंजदेव

पढ़ें: दुर्ग: फिर एक किसान ने की आत्महत्या, पारिवारिक कारणों से तंग आकर उठाया ये कदम

अनुमति है आवश्यक

यह भी मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछन देवी की अनुमति आवश्यक है. इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटो से बने झूले पर लेटाया जाता है. इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. हर वर्ष पितृमोक्ष की अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर बस्तर राजपरिवार यह अनुमति प्राप्त करता है. इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में इस अनुठी परंपरा को देखने काछन गुडी पहुंचते हैं.

जगदलपुर: अनोखी और आकर्षक परंपराओ के लिए विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आरंभ शुक्रवार की रात देवी की अनुमति के बाद हो गया है. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनुठी है. इस रस्म को काछन गादी के नाम से जाना जाता है. इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या कांटो के झूले पर लेटकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. 12 साल की कन्या अनुराधा ने काछन देवी के रूप में कांटो के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए अनुमति दी.

काछन गादी रस्म संपन्न

बस्तर में शाम से हो रही तेज बारिश के बीच इस रस्म की अदायगी धूमधाम से की गई. अनुराधा नाम की कन्या ने कांटो के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति दी है. कोरोना की वजह से इस रस्म में केवल बस्तर राजपरिवार के सभी सदस्य, बस्तर सांसद दीपक बैज, समिति के सदस्य, जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी और मांझी चालकी मौजूद रहे.

Kachchan Gadi ceremony concluded
बस्तर दशहरा पर्व

पढ़ें: मरवाही से कांग्रेस उम्मीदवार केके ध्रुव ने भरा पर्चा, सीएम बोले- स्क्रूटनी के बाद तय होगा कितने कोणीय है मुकाबला ?

610 सालों का इतिहास

करीब 610 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता के अनुसार बेल के कांटो के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछन देवी और रैला देवी की पूजा होती है. शुक्रवार रात काछन देवी के रूप में मिर्घान जाति की कुंआरी कन्या अनुराधा ने बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति दी है.

Kamalchand Bhanjadev of Bastar royal family
बस्तर राजपरिवार के कमलचंद भंजदेव

पढ़ें: दुर्ग: फिर एक किसान ने की आत्महत्या, पारिवारिक कारणों से तंग आकर उठाया ये कदम

अनुमति है आवश्यक

यह भी मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछन देवी की अनुमति आवश्यक है. इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटो से बने झूले पर लेटाया जाता है. इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. हर वर्ष पितृमोक्ष की अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर बस्तर राजपरिवार यह अनुमति प्राप्त करता है. इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में इस अनुठी परंपरा को देखने काछन गुडी पहुंचते हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.