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बस्तर: लकड़ियों की ठूंठ पर उकेर रहे जिंदगी की कहानी, पर्यावरण संरक्षण का दे रहे संदेश

बस्तर के ग्राम कुसमा के शिल्पकार राजकुमार कोर्राम ने काष्ठ कला के माध्यम से अपनी अलग पहचान बनाई है. वे इस कला के माध्यम से पेड़ों के बेजान तनों में जीवंत कलाकृति उकेरते हैं और लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं.

Craftsman rajkumar Korram
कलाकृति उकेरते हुए शिल्पकार राजकुमार कोर्राम
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Published : Sep 10, 2020, 6:14 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

बस्तर: अपनी कलाकृतियों के लिए बस्तर विश्व विख्यात है, जिसकी मिट्टी में हर कला के फनकार हुए हैं. टेराकोटा हो या बेलमेटल, बांस शिल्प हो या आयरन आर्ट हर कलाकृति में कोंडागांव के कलाकार अपना लोहा मनवा चुके हैं. ऐसे ही कोपाबेड़ा वार्ड स्थित 'डायलॉग एसोसिएट सेंटर' में पेड़ों के बेजान तनों में जीवंत कलाकृति उकेरते शिल्पकार नजर आते हैं.

इस वैश्विक मंदी पर कोरोना ने इनका बाजार जरूर समेट दिया है, लेकिन कलाकृतियां बनाने के जुनून में कोई कमी नहीं आई है. तनों में जीवंत कलाकृति उकेरने वाले काष्ठ कला के शिल्पकार राजकुमार कोर्राम ग्राम कुसमा से आते हैं. उन्होंने बताया कि साल 1997 में मुंबई की नवजोत अल्ताफ और भानुमति नारायण के उचित मार्गदर्शन में बेंगलुरू के आईपी प्रोजेक्ट के फंड से निर्मित 4 कलाकृतियों को साक्षी गैलरी मुंबई 1998 में एशियन आर्ट म्यूजियम जापान की प्रदर्शनी में वे शामिल कर चुके हैं.

Craftsman rajkumar Korram
कलाकृति उकेरते हुए शिल्पकार राजकुमार कोर्राम

दूसरे शिल्पकारों को देखकर ठान लिया

राजकुमार उम्र के 50 साल के पड़ाव को पार कर चुके हैं. राजकुमार ने बताया कि युवा अवस्था में वह मजदूरी करने जाते थे. एक दिन जब वह मजदूरी कर घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्होंने कुछ शिल्पकारों को लकड़ी पर तरह-तरह की कलाकृति बनाते हुए देखा, तब से उन्होंने ठान लिया कि वह भी एक दिन इस कला के माध्यम से ऊंचाइयों को छूएंगे.

Artwork with wood in Bastar
कलाकृति से बनाई देश भर में पहचान

पहले देवी-देवताओं की बनाते थे मूर्तियां

उनकी लगन और निष्ठा ने उन्हें काष्ठ कला में पारंगत कर दिया. राजकुमार बताते हैं कि साल 1992 में शिल्पी ग्राम कोण्डागांव में अंतर्राष्ट्रीय बेल मेटल शिल्पकार जयदेव बघेल ने एक प्रशिक्षण शिविर चलाया, जहां अशिक्षित राजकुमार ने भी काष्ठ कला का प्रशिक्षण लिया था. शुरुआती दौर में वह देवी-देवताओं और स्थानीय आदिवासियों की मूर्तियां बनाया करते थे.

Dialogue Associate Center Jagdalpur
पर्यावरण संरक्षण का दे रहे संदेश

पर्यावरण को बचाने का आया विचार

फिर एक दिन उनके मन में विचार आया कि क्यों ना एक ऐसी कला का इजाद किया जाए, जिससे पर्यावरण को बचाया जा सके और वो जीवंत कहानियों पर भी आधारित हो. फिर उन्होंने जंगल, नदी-नाले, पहाड़, खेत-खलिहान को अपनी कला में समावेश करना शुरू किया. उन्होंने लकड़ी खरीदकर मोटे-मोटे लट्ठे से किसी एक विषय को लेकर कलाकृति उकेरना शुरू किया. लोगों ने इस कला को बहुत ही ज्यादा पसंद किया.

देश के कोने-कोने में लगाई अपनी कला की प्रदर्शनी

शिल्पकार राजकुमार कोर्राम ने इस कला के माध्यम से देश के हर कोने में अपनी कला की प्रदर्शनी लगाई. जहांगीर आर्ट गैलरी दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, बेंगलुरू तमाम बड़े शहरों में अपने कला के माध्यम से पहचान बनाई. आज वह इस कला के माध्यम से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं, लेकिन कोरोना के चलते अब बाजार के मंदा रहने से चिंतित नजर आते हैं. वहीं राजकुमार शासन-प्रसासन से आग्रह करते है कि कलाकारों को बाजार उपलब्ध करवाने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करें, ताकि आने वाले समय में भी कलाकृतियों को जीवित रखा जा सके.

बस्तर: अपनी कलाकृतियों के लिए बस्तर विश्व विख्यात है, जिसकी मिट्टी में हर कला के फनकार हुए हैं. टेराकोटा हो या बेलमेटल, बांस शिल्प हो या आयरन आर्ट हर कलाकृति में कोंडागांव के कलाकार अपना लोहा मनवा चुके हैं. ऐसे ही कोपाबेड़ा वार्ड स्थित 'डायलॉग एसोसिएट सेंटर' में पेड़ों के बेजान तनों में जीवंत कलाकृति उकेरते शिल्पकार नजर आते हैं.

इस वैश्विक मंदी पर कोरोना ने इनका बाजार जरूर समेट दिया है, लेकिन कलाकृतियां बनाने के जुनून में कोई कमी नहीं आई है. तनों में जीवंत कलाकृति उकेरने वाले काष्ठ कला के शिल्पकार राजकुमार कोर्राम ग्राम कुसमा से आते हैं. उन्होंने बताया कि साल 1997 में मुंबई की नवजोत अल्ताफ और भानुमति नारायण के उचित मार्गदर्शन में बेंगलुरू के आईपी प्रोजेक्ट के फंड से निर्मित 4 कलाकृतियों को साक्षी गैलरी मुंबई 1998 में एशियन आर्ट म्यूजियम जापान की प्रदर्शनी में वे शामिल कर चुके हैं.

Craftsman rajkumar Korram
कलाकृति उकेरते हुए शिल्पकार राजकुमार कोर्राम

दूसरे शिल्पकारों को देखकर ठान लिया

राजकुमार उम्र के 50 साल के पड़ाव को पार कर चुके हैं. राजकुमार ने बताया कि युवा अवस्था में वह मजदूरी करने जाते थे. एक दिन जब वह मजदूरी कर घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्होंने कुछ शिल्पकारों को लकड़ी पर तरह-तरह की कलाकृति बनाते हुए देखा, तब से उन्होंने ठान लिया कि वह भी एक दिन इस कला के माध्यम से ऊंचाइयों को छूएंगे.

Artwork with wood in Bastar
कलाकृति से बनाई देश भर में पहचान

पहले देवी-देवताओं की बनाते थे मूर्तियां

उनकी लगन और निष्ठा ने उन्हें काष्ठ कला में पारंगत कर दिया. राजकुमार बताते हैं कि साल 1992 में शिल्पी ग्राम कोण्डागांव में अंतर्राष्ट्रीय बेल मेटल शिल्पकार जयदेव बघेल ने एक प्रशिक्षण शिविर चलाया, जहां अशिक्षित राजकुमार ने भी काष्ठ कला का प्रशिक्षण लिया था. शुरुआती दौर में वह देवी-देवताओं और स्थानीय आदिवासियों की मूर्तियां बनाया करते थे.

Dialogue Associate Center Jagdalpur
पर्यावरण संरक्षण का दे रहे संदेश

पर्यावरण को बचाने का आया विचार

फिर एक दिन उनके मन में विचार आया कि क्यों ना एक ऐसी कला का इजाद किया जाए, जिससे पर्यावरण को बचाया जा सके और वो जीवंत कहानियों पर भी आधारित हो. फिर उन्होंने जंगल, नदी-नाले, पहाड़, खेत-खलिहान को अपनी कला में समावेश करना शुरू किया. उन्होंने लकड़ी खरीदकर मोटे-मोटे लट्ठे से किसी एक विषय को लेकर कलाकृति उकेरना शुरू किया. लोगों ने इस कला को बहुत ही ज्यादा पसंद किया.

देश के कोने-कोने में लगाई अपनी कला की प्रदर्शनी

शिल्पकार राजकुमार कोर्राम ने इस कला के माध्यम से देश के हर कोने में अपनी कला की प्रदर्शनी लगाई. जहांगीर आर्ट गैलरी दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, बेंगलुरू तमाम बड़े शहरों में अपने कला के माध्यम से पहचान बनाई. आज वह इस कला के माध्यम से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं, लेकिन कोरोना के चलते अब बाजार के मंदा रहने से चिंतित नजर आते हैं. वहीं राजकुमार शासन-प्रसासन से आग्रह करते है कि कलाकारों को बाजार उपलब्ध करवाने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करें, ताकि आने वाले समय में भी कलाकृतियों को जीवित रखा जा सके.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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