बालोद : बालोद जिले के ग्राम पंचायत सिवनी में एक ऐसी बस्ती है, जिसकी जनसंख्या लगभग 100 के आसपास (unique world of Balod Serpents) है. 100 लोगों की बस्ती में ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो अपनी जान पर खेलकर सैकड़ों लोगों की जान बचाते हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में जो भागती दौड़ती दुनिया से दूर प्रकृति के बीच अपना जीवन यापन कर रहे हैं. नाग पंचमी का पर्व (Nagpanchami 2022 ) है. ऐसे में इनके बारे में जानकर आप भी कहेंगे कि यदि ये ना होते तो कई लोग असमय ही दुनिया से जा चुके (rouble of snake catchers in Balod) होते.
कौन हैं ये लोग : ग्राम पंचायत सिवनी (Balod Gram Panchayat Seoni) के इस बस्ती में ऐसे लोग रहते हैं, जो हर वर्ष सैकड़ों लोगों की जान बचाते हैं. यह उस समय के विस्थापित हैं, जब कोरबा में बांगो जलाशय का निर्माण किया जा रहा था. इन सब का घर डूबान क्षेत्र में आया. जिसके बाद यह घुमंतू की तरह जीवन यापन करने लगे. आज लगभग 30 वर्षों से इसी जगह पर निवासरत हैं. यह रोजी मजदूरी करते हैं. लेकिन इनके पुरखों ने इन्हें कुछ ऐसा हुनर दिया है कि आज बालोद जिले सहित आसपास के जिलों में भी इनकी पूछपरख है. ये बुनियादी रूप से गोंड आदिवासी हैं.
क्या है इनका हुनर : बारिश का दिन है और इन दिनों में अक्सर जहरीले सांप अपने बिलों से बाहर आते हैं, तब इनका काम शुरू होता (friends of snakes in balod) है. बालोद जिले सहित आसपास के जिलों में जब भी किसी घर में जहरीले सांप घुसते हैं तो इन्हीं बस्ती के लोगों को याद किया जाता है. यह उनके घरों में जाते हैं और सांप को सुरक्षित पकड़कर लाते हैं. उनका भरण पोषण करते हैं और 2 माह बाद उन्हें सुरक्षित जंगल में छोड़ देते (chhattisgarh news ) हैं.
कैसे सीखी कला : सपेरों ने बताया कि '' यह उनके पुरखों की दी हुई जागीर है. बचपन से ही सांपों के बीच रहे और हमारे गुरुओं ने इसे व्यापार नहीं लोगों की सुरक्षा की नजर से देखते हुए यह गुण सिखाया. आज हम लोगों की रक्षा भी कर रहे हैं. हम खुद को काफी खुशनसीब समझते हैं कि हम कम से कम अपने हुनर के बदौलत लोगों की जान तो बचा (balod news ) पाते हैं.''
वन विभाग नहीं देता है सूचना : अक्सर सुनने में आता है जब कहीं पर सांपों का डेरा हो कहीं सांप घुस गया हो तो सबसे पहले वन विभाग को सूचना दी जाती है और स्नैक कैचर बुलाया जाता है. लेकिन बालोद जिले में विशेषकर इन्हें याद किया जाता है. वन विभाग से पहले इनकी पूछपरख है. यह अपनी पूछपरख के हिसाब से अपने हर काम में खरा उतर पाए हैं.
सांपों का करते हैं भरण पोषण : सपेरों ने बताया कि '' जब कोई हमें बुलाता है और किसी के जीवन पर खतरा होता है तब हम सांप पकड़ते हैं. फिर हम उन्हें लाते हैं. पानी पिलाते हैं. सांप को जंगली कीड़े मकोड़े खिलाते हैं और जीवित रखते हैं. जब तक सांप हमारे पास होता है, उसकी जिम्मेदारी हमारी होती है. फिर उन्हें 3 महीने के बाद जंगलों में छोड़ देते हैं. इस दरमियान एक बार सांपों का जहर निकाला जाता है. इस जहर को वापस आने में लगभग 3 महीने का समय लगता है.''
मुसीबत में है समाज : इनका जीवन जंगलों में घूम घूम कर गुजर गया. इन्होंने समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का निर्णय लिया. एक अपनी बस्ती बसा ली. लेकिन कई वर्षों तक इनकी बस्ती उपेक्षित रही. आज इन्हें शासन की कई योजनाओं का लाभ मिल रहा है. आवास से लेकर राशन तक आसानी से उपलब्ध है. यह अपने बच्चों को अपने जैसा नहीं बल्कि पढ़ा लिखा समझदार बनाना चाहते हैं. इनके बच्चे आठवीं की कक्षा तक तो आसानी से पढ़ लेते हैं. लेकिन आगे बड़ी कक्षाओं में जाने के लिए जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है. इन लोगों को अपनी जाति साबित करने में काफी दिक्कतें हो रही हैं. जाति प्रमाण पत्र के विकल्प को लेकर ये वर्ग काफी चिंतित है. शासन प्रशासन से एक स्थाई व्यवस्था की मांग कर रहे हैं.''
समय पर पहुंचे तो कर लेते हैं इलाज :आज शासन प्रशासन की मेहनत से जगह-जगह हाईटेक अस्पताल बन चुके हैं. एंटी स्नैक वेनम आ गए हैं. लेकिन इनका दावा है कि सर्पदंश की समय रहते उन्हें सूचना दी जाए तो वे प्राण रक्षा कर पाने में सक्षम हैं. इसके साथ ही कई जड़ी बूटियों का इन्हें ज्ञान है. जिसका उपयोग ये मानव समाज की रक्षा के लिए करते हैं.