सरगुजा: देश के दूसरे सबसे स्वच्छ शहर अंबिकापुर में साल 2017 से शहर की सफाई का काम रात में किया जाता है. जबकि, अमूमन शहर की सड़कों पर दिन में ही झाड़ू लगाई जाती थी. स्वच्छ भारत मिशन के तहत अम्बिकापुर नगर निगम ने देश के सामने एक मॉडल प्रस्तुत किया है. अंबिकापुर मॉडल पर ही आज पूरे देश में स्वच्छता का काम किया जा रहा है. इसी मॉडल का एक तरीका नाइट स्वीपिंग भी था. अंबिकापुर नगर निगम ने 2017 से ही इसकी शुरुआत कर दी थी. हालांकि बाद में स्वच्छ भारत मिशन के तहत होने वाले स्वच्छता सर्वेक्षण में भी नाइट स्वीपिंग अनिवार्य की गई.
यह भी पढ़ें: budget session of chhattisgarh assembly: संसदीय सचिवों की उपयोगिता को लेकर सदन में विपक्ष का हंगामा
ईटीवी भारत ने रात में की पड़ताल
ईटीवी भारत रात में सड़कों पर जांच पड़ताल करने निकला. हमने देखा कि, किस तरह से अंबिकापुर की सड़कों पर रात में स्वीपिंग का काम किया जाता है. यहां शहर के रास्तों को सफाईकर्मी झाड़ू से साफ कर रहे थे तो वहीं रिंग रोड व अन्य मुख्य मार्गो पर आटोमेटिक स्वीपिंग मशीन से सड़क के किनारे जमने वाली धूल की मोटी परत को साफ किया जा रहा था. इस दौरान हमने सफाई कर्मी से पूछा कि रात में झाड़ू क्यों लगाते हो?
सफाईकर्मी ने बताया कि साहब का आदेश हुआ कि रात में झाड़ू लगाना है, तो रात में लगा रहे हैं. दिन में भी लगाते थे. असल अंबिकापुर में दिन में भी झाड़ू लगाई जाती है. कर्मचारियों की ड्यूटी शिफ्ट के अनुसार लगाई जाती है. इस दौरान स्वच्छ भारत मिशन के नोडल अधिकारी रितेश सैनी सफाई का काम देख रहे थे.
उन्होंने बताया कि, दिन में बाजार खुला रहता है. सड़कों पर ट्रैफिक ज्यादा रहता है. इस कारण सफाई करने में भी दिक्कतें होती हैं. इसलिए रात में आसानी से शहर को साफ किया जाता है. इसके साथ ही पहले लोग देर रात अपने घरों का कचरा सड़क पर फेंक दिया करते थे और पहले से गंदी सड़क पर पता भी नहीं चलता था, लेकिन जब हम रात में पूरा शहर साफ कर देते हैं तो लोग उसे गंदा भी नहीं करते. साफ सड़क पर अगर कोई कचरा फेंकता है तो उसकी पहचान करना आसान हो जाता है.
यह भी पढ़ें: स्टॉफ की कमी से जूझ रहा अंबिकापुर नगर निगम, प्रस्ताव के बाद भी नहीं हो रही भर्ती
पुरानी सफाई पद्धति को नया रूप देते हुये डे और नाइट स्वीपिंग दोनों का काम हो रहा है. इसके साथ ही SLRM मॉडल एक बेहतर परिणाम दे रहा है. बीते वर्षों में इस मॉडल ने बेहतर परिणाम दे रहे हैं. प्रतिदिन शहर से 52 मीट्रिक टन कचरा एसएलआरएम सेंटर का कितना महत्व है और इन दीदियों ने शहर की सफाई व्यवस्था में कितना बड़ा योगदान दिया है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर में 470 दीदियां कार्य कर रही हैं.
150 रिक्शा की मदद से कचरा संग्रहण किया जा रहा है. रोजाना 50 से 52 मीट्रिक टन कचरा निकलता है. इसके साथ ही प्रतिमाह शहर में 16 सौ टन कचरे का संग्रहण किया जाता है. साल 2015 से अब तक के सफर में इन स्वच्छता दीदियों ने शहर के 48 वार्डों से 1 लाख 20 हजार टन कचरा का संग्रहण किया है. गीले कचरे से खाद व सूखे कचरे रिसाइकिलिंग कर प्लास्टिक, दाना और अन्य कार्य किये गए.
70 वर्षों का कचरा प्रोसेस कर बनाया पार्क
बड़ी बात यह है कि शहर से निकलने वाला 1 लाख 20 हजार टन कचरा को फेंकने के लिए 15-16 एकड़ जमीन चाहिए. सांडबार स्थित डम्पिंग यार्ड में साल 2016 तक 16 एकड़ जमीन पर कचड़ा का पहाड़ बना हुआ था. 70 वर्षों के इस कचरे को निगम ने प्रोसेस कर सेनेटरी पार्क में तब्दील किया है.
यह भी पढ़ें: कोरबा में नागराज के घर का सर्वे पूरा: यहां विकसित होगा किंग कोबरा का रहवास
निगम को दिलाई अतिरिक्त व्यय से मुक्ति
डोर टू डोर कचरा प्रबंधन कर नगर निगम ने ना सिर्फ कचरे से कमाई की है, बल्कि निगम को अतिरिक्त व्यय से भी मुक्ति दिलाई है. स्वच्छता प्रबंधन के माध्यम से कचरा बेचकर 84 लाख रुपए प्रतिमाह की आय होती हैं. जबकि 1.92 करोड़ रुपए का यूजर का चार्ज वसूल किया जाता है.
इस हिसाब से अब तक कचरा बेचकर निगम ने 5.50 करोड़ रुपए की आय अर्जित की. 8 करोड़ रुपये का यूजर चार्ज वसूला. कुल 13.50 करोड़ की कमाई की जबकि इस प्रोजेक्ट में 16 करोड़ रुपये खर्च किए. प्रारंभ के कुछ वर्षों में आय और यूजर चार्ज के अंतर को छोड़ दिया जाए तो निगम को महज 3 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़े. जबकि 13 करोड़ रुपये की आय हो गई. शहर में अब भी पुरानी पद्धति से सफाई कराई जाती तो सड़क से ट्रैक्टर के माध्यम से इतने कचरा को डम्पिंग यार्ड में फेंकने में ही 18 करोड़ रुपए खर्च होते, इसके अतिरिक्त कर्मचारियों के वेतन, नाली की सफाई सहित अन्य व्यय को देखा जाए तो यह राशि 25 करोड़ से अधिक होती है.