सरगुजा: राम वन गमन पर्यटन परिपथ योजना ने छत्तीसगढ़ को धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन के क्षेत्र में बड़ी पहचान दी है. पूरे देश में राम वनगमन पर्यटन परिपथ योजना की चर्चा है. सरगुजा में भी भगवान श्रीराम ने चौदह साल के वनवास काल का करीब दो साल समय यहीं के वनों और वनवासियों के बीच बिताया था. प्रदेश में प्रभु श्रीराम के पद चिन्हों और पड़ावों की पौराणिक कथाओं को जीवंत करने के उद्देश्य से 10 स्थानों का चयन किया गया. जिसमें सरगुजा का रामगढ़ भी शामिल है.
क्यों खास है रामगढ़? : रामगढ़ में भगवान के वन गमन के पड़ाव की निशानियां दिखती हैं. यही वजह है कि सरकार ने इसे राम वन गमन पथ में शामिल किया है. अंबिकापुर से करीब 60 किलोमीटर दूर रामगढ़ पर्वत स्थित है. मान्यता है कि 14 साल के वनवास के दौरान भगवान राम यहां आए थे. भगवान श्रीराम ने इस पर्वत पर विश्राम किया था. इस पर्वत पर कई अलग-अलग गुफाएं है. माना जाता है कि राम-लक्ष्मण और सीता इन गुफाओं में निवास करते थे.
श्रीराम सीता और लक्ष्मण की गुफाएं: रामगढ़ को रामगिरि भी कहा जाता है. रामगढ़ पर्वत टोपी की आकृति का है. इन गुफाओं में मिलने वाले छिद्र भगवान राम से संबंधित होने के दावे की पुष्टि करते हैं. सीताबेंगरा एक छोटे आकार की गुफा है. यहां सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है. इसका भू-विन्यास आयताकार है. गुफा 14 मीटर लंबी, 5 मीटर चौड़ी है. गुफा के सामने अर्धचंद्राकार बेंच बनी है. जोगीमारा गुफा की लंबाई 3 मीटर, चौड़ाई 1.8 मीटर है. मान्यता है कि एक गुफा से दूसरी गुफा में संवाद स्थापित करने के लिए गुफाओं में लंबे छेद कर गुफाओं को आपस में जोड़ा गया था. यह आज के मोबाइल फोन जैसा काम करता था. इसलिए यहां स्थित गुफाओं को सीताबेंगरा, लक्ष्मण बेंगरा कहा जाता है. सरगुजा में गुफाओं को बेंगरा कहा जाता है.
रामगढ़ पर्वत पर भरत मुनि की नाट्यशाला: रामगढ़ पर्वत जाने पर सबसे पहले एक नाट्यशाला दिखाई देती है. इस नाट्यशाला को देखकर ही लगता है कि किसी बड़े आयोजन के लिए यहां मंच और लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई होगी. नाट्यशाला में गूंजती आवाज किसी साउंड सिस्टम का अहसास कराती है. इन अद्भुत खूबियों की वजह से यह भी माना जाता है कि भरत मुनि ने इसी नाट्यशाला से प्रभावित होकर नाट्य शास्त्र की रचना की थी.
महाकवि कालीदास ने यहीं की थी मेघदूतम की रचना: मान्यता यह भी है कि इसी पर्वत पर बैठकर महाकवि कालीदास ने महाकाव्य मेघदूतम की रचना की थी. विरह में वे मेघ में पत्र लिख रहे थे. वो मेघ यहां से संदेशा लेकर जा रहे थे. इस अद्भुत संयोग को भी रामगढ़ से जोड़ा जाता है. इतनी सारी खूबियों की वजह से रामवनगमन पथ पर पड़ने वाला रामगढ़ का यह पड़ाव बेहद खास बन गया है.
क्यों खास है राम वन गमन पर्यटन परिपथ? : भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष में उन्होंने 10 वर्ष छत्तीसगढ़ में ही गुजारा था. आज भी छत्तीसगढ़ में पौराणिक, धार्मिक व ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार कई ऐसे स्थान मिल जाएंगे, जिन्हें भगवान राम से जोड़कर देखा जाता है. छत्तीसगढ़ के कोरिया में सीतामढ़ी हरचौका से लेकर सुकमा के रामाराम तक करीब 2260 किलोमीटर का राम वन गमन पर्यटन परिपथ विकसित किया जा रहा है. राम के वनवास काल से संबंधित 75 स्थानों को चिन्हित किया गया है. इन जगहों को नये पर्यटन सर्किट के रुप में आपस में जोड़ा जा रहा है. सरकार ने पहले चरण में उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरिया से लेकर दक्षिण के सुकमा तक 9 स्थानों का सौंदर्यीकरण और विकास किया है. इनमें से उत्तर छत्तीसगढ़ के सबसे खास जगह रामगढ़ में हुए कार्यों का शुभारंभ किया जा रहा है.
राम वन गमन पथ योजना के पहले चरण में शामिल स्थान:
सीतामढ़ी हरचौका - जिला एमसीबी
रामगढ़ - जिला सरगुजा
शिवरीनारायण - जिला जांजगीर-चांपा
तुरतुरिया - जिला बलौदाबाजार
चंदखुरी - जिला रायपुर
राजिम - जिला गरियाबंद
सप्तऋषि आश्रम - जिला धमतरी
जगदलपुर - जिला-बस्तर
रामाराम - जिला सुकमा
दूसरे चरण में इन स्थानों को किया जा रहा विकसित: छत्तीसगढ़ सरकार ने पहले चरण में उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरिया से लेकर दक्षिण के सुकमा तक 9 स्थानों का सौंदर्यीकरण और विकास किया है. वहीं राम वन गमन पर्यटन परिपथ योजना के दूसरे चरण में इन जगहों को विकसित किये जाने का काम जारी है. राम वन गमन पर्यटन परिपथ योजना के दूसरे चरण में छत्तीसगढ़ के 15 जिलों के 44 जगहों को विकसित किये जाने का काम जारी है.
कोरिया - सीतामढ़ी, घाघरा, कोटाडोल, सीतामढ़ी छतौड़ा (सिद्ध बाबा आश्रम), देवसील, रामगढ़ (सोनहत), अमृतधारा.
सरगुजा - देवगढ़, महेशपुर, बंदरकोट, अंबिकापुर से दरिमा मार्ग, मंगरेलगढ़, किलकिला, बिलद्वार गुफा, सारासोर, रकसगण्डा.
जांजगीर-चांपा - चंद्रपुर, खरौद, जांजगीर
बिलासपुर - मल्हार
बलौदाबाजार भाटापारा - धमनी, पलारी, नारायणपुर, कसडोल
महासमुंद - सिरपुर
रायपुर - आरंग, चंपारण्य
गरियाबंद - फिंगेश्वर
धमतरी - मधुबन (राकाडीह), अकलतरा में अतरपुर
कांकेर - कंक ऋषि आश्रम
कोण्डागांव - गढ़धनोरा (केशकाल), जटायुशीला (फरसगांव)
नारायणपुर - नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगर
दंतेवाड़ा - बारसूर, दंतेवाड़ा, गीदम
बस्तर - चित्रकोट, नारायणपाल, तीरथगढ़
सुकमा - रामाराम, इंजरम, कोंटा