सरगुजा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन पर अंबिकापुर लगातार काम कर रहा है. स्वच्छता के इस सपने को अंबिकापुर जिला प्रशासन पूरा करने की कोशिश में लगा हुआ है. स्वच्छता को लेकर लगातार काम करने वाले अंबिकापुर को स्वच्छता के क्षेत्र में कई खिताब मिल चुके हैं. हमने और आपने ये कभी नहीं सोचा होगा कि जिस कचड़े को हम घर से बाहर फेंक रहे हैं, नालियों में बहा रहे हैं. वहीं कचरा आज लाखों की आमदनी का जरिया बना हुआ है.
ETV भारत सरगुजा के अंबिकापुर में स्वच्छता के मुहिम से जुड़ी कहानियां आप तक लगातार पहुंचाता आ रहा है. इस बार आपको जानकर हैरानी होगी की अंबिकापुर नगर निगम नालियों में बहा दिए जाने वाले गीले कचरे से भी लाखों की कमाई कर रहा है. बात सिर्फ पैसे कमाने की ही नहीं है, बात है इस प्रक्रिया से शहर को गंदगी मुक्त करना. ये बिलकुल वैसा ही सिद्धांत हैं, जैसे 'BEST OUT OF WASTE'.
अंबिकापुर में कचरे से खाद तैयार करने के लिए बनाए गए कंपोस्ट सेंटर
जो कचरा शहर की नालियों को जाम करता था, सड़न की वजह से बदबू का कारण बनता था, जिससे छुटकारा पाना और जिसका निपटारा करना एक बड़ी समस्या होती थी. अब उन सभी परेशानियों से शहर को निजात मिल चुका है. इसके साथ ही रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं. दरअसल, साल 2014 में तत्कालीन महिला कलेक्टर ने डोर टू डोर कचरे के कलेक्शन के लिए सॉलिड लिक्विड एन्ड वेस्ट मैनेजमेंट (SLRM) के नाम से एक योजना बनाई थी. ये योजना आज न सिर्फ सैकड़ों लोगों की जीविका का साधन बना हुआ है, बल्कि शहर को गौरवान्वित भी कर रहा है. शहरों को साफ रखने के लिए काम करने वाली स्वच्छता दीदियों को भी रोजगार मिल रहा है.
अंबिकापुर में लिक्विड वेस्ट के मैनेजमेंट और गीले कचरे से जैविक खाद बनाई जा रही है. ये गीला कचरा इस साल नगर निगम को 5 लाख से ज्यादा की आय दे चुका है. शहर में कचरे से खाद बनाने के लिए कंपोस्ट सेंटर बनाए गए हैं, जहां गीले कचरे से जैविक खाद बनाया जाता है. अंबिकापुर नगर निगम क्षेत्र में फिलहाल 17 SLRM केंद्र हैं, जहां कचरे को इक्ट्ठा कर अलग किया जाता है.
- इस प्रक्रिया के लिए अंबिकापुर नगर निगम ने 15 लाख रुपए का एक प्लांट स्थापित किया.
- शहर से दूर भिट्ठी गांव में इस प्लांट की स्थापना की गई जिसका टोटल स्टेब्लिशमेंट खर्च 42 लाख रुपए आया.
- इस पूरी यूनिट को चलाने में महज 17 वर्कर काम करते हैं.
- गीले कचरे के इस प्रोसेसिंग प्लांट से हर साल नगर निगम को 8 से 10 लाख की आय होती है.
- वर्तमान में रोजाना 15 टन गीले कचरे की प्रोसेसिंग की जाती है.
- यह खाद थोक में 3 रुपए किलो और चिल्हर के हिसाब से 5 रुपए किलो में बेची जाती है.
- किसानों के साथ कृषि विभाग और किचन गार्डन में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
- दूसरे राज्यों से भी लोग इस खाद की डिमांड कर रहे हैं. झारखंड के रांची से एक व्यापारी ने अम्बिकापुर से इस खाद को मंगाया है.
- इसके अलावा नगर निगम अपने उद्यानों में भी इस खाद का इस्तेमाल करता है.
- अब तक साल 2020 में इससे 5 लाख 5 हजार रुपए की आय अर्जित की जा चुकी है
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खर्च और आमदनी के इन आंकड़ों के बीच सबसे अहम बात यह है की वो कचरा जो नगर निगम के लिए मुसीबत का सबब बना रहता था, आज वही कचरा ना सिर्फ आय का साधन बना हुआ है, बल्कि स्वच्छता सर्वेक्षण में नंबर वन आने के लिए भी मुख्य वजह बना हुआ है.