रायपुर: देशभर में महाशिवरात्रि को लेकर धूम मची है. शिवालयों में इस दिन दुग्धाभिषेक के साथ ही भगवान भोले पर धतूरा और बेल पत्ते चढ़ाए जा रहे हैं. भोले के भक्तों की लंबी कतारें महाशिवरात्रि के दिन मंदिरों में दिखाई दे रही है. लेकिन ETV भारत आज आपको इस खास दिन पर उन दुर्लभ मूर्तियों के दर्शन कराने जा रहा है, जो ऐतिहासिक होने के साथ ही काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. राजधानी रायपुर के घासीदास संग्रहालय में 6 वीं से 12 वीं शताब्दी की पुरानी शिव की मूर्तियां हैं. दर्जन भर से ज्यादा मूर्तियों को पुरातत्व विभाग ने संग्रहालय में संरक्षित करके रखा गया है. आइये जानते हैं कौन-कौन सी मूर्तियां संग्रहालय में मौजूद है.
रूद्रशिव की मूर्ति
भारतीय कला की अद्वितीय पाषाण प्रतिमा राजधानी रायपुर के घासीदास संग्रहालय में स्थित है. लगभग छठी सदी में निर्मित ताला से मिली भगवान रूद्र शिव की दुर्लभ प्रतिमा आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. विविध प्राणियों के सहयोग से निर्मित महाकाय विलक्षण देव आकृति की भगवान शिव की यह मूर्ति पशुपति रूप को अभिव्यक्त कर रही है.
उमा महेश्वर की मूर्ति
संग्रहालय में संरक्षित उमा महेश्वर की यह मूर्ति काफी दुर्लभ है. यह मूर्ति 11वीं सदी की मानी जा रही है. ये मूर्ति कबीरधाम जिले के भोरमदेव में खुदाई के दौरान मिली. काले पत्थर से निर्मित इस प्रतिमा में शिव के बायें जांघ पर पार्वती विराजमान हैं. शिव और पार्वती चतुर्भुजी हैं. शिव के दाहिने, ऊपर और बीच के हाथों में त्रिशूल और मातुलुंग है. उनके बाएं ऊपर हाथ में नाग है और निचला हाथ पार्वती के आलिंगन करते हुए शरीर के संपर्क में है. पार्वती के बाएं ऊपरी और निचले हाथों में दर्पण और श्रृंगार पेटिका है. दायां ऊपरी हाथ शिव के गले में स्थित है. शिव के मस्तक पर जटा मुकुट हैं. कानों में कुंडल गले में छह लड़ी मुक्तामाला और हाथ-पैरों में विभिन्न आभूषण है. पार्वती ने भी विविध पारंपरिक आभूषण पहन रखे हैं. दोनों के पैर के नीचे वाहन नंदी का अंकन है. चौकी पर गण और पार्वती का वाहन बैल और सिंह बैठे हैं.
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त्रिपुरान्तक मूर्ति
राजनांदगांव जिले के घटियारी गांव में खुदाई के दौरान दसवीं सदी की भगवान शिव की त्रिपुरान्तक मूर्ति मिली थी. षड्भुजी त्रिपुरान्तक शिव जी खट्वांग, डमरु, बाण और नीचे के हाथों में त्रिशूल धारण किए हुए हैं. शिव आलीढ़पाढ़ मुद्रा में धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाए अपने बायें पैर को उपर उठाते प्रदर्शित हैं. उनके बायें पैर के नीचे रथ का शिल्पांकन है. जिसे नंदी अपने कंधों पर रखे दौड़ने की मुद्रा में शिल्पांकित है. जिसे नंदी अपने कंधों पर रखे दौड़ने की मुद्रा में शिल्पांकित है. शिव जटामुकुट धारण किये हैं.
उमा महेश्वर की दुर्लभ मूर्ति
जबलपुर के कारीतलाई में खुदाई के दौरान 10 वीं सदी ईसवी की उमा महेश्वर की मूर्ति मिली थी. बलुआ पत्थर की इस प्रतिमा में शिव लीलासन में बैठे हुए हैं. पार्वती शिव की बायीं जांघ पर बैठी है. दोनों ने विविध प्रकार के आभूषण पहने हैं. शिव चतुर्भुजी है किंतु पार्वती के 2 हाथ हैं. शिव के ऊपर दाएं-बाएं हाथों में त्रिशूल और सांप है. दाहिने निचले हाथ में अक्षमाला है. पार्वती का दायां हाथ शिव के गले में लिपटा हुआ है. बाया हाथ टूटने पर अवस्थित है. उमा महेश्वर कैलाश पर्वत पर बैठे हैं. प्रतिमा के ऊपरी भाग के दाएं और चतुर्भुजी ब्रह्मा और बाएं ओर चतुर्भुजी विष्णु बैठे हैं. उमा महेश्वर के दोनों ओर एक एक गण बैठे हैं. उसके नीचे एक ओर गणेश और दूसरी ओर कार्तिकेय हैं. जिनके बीच में नंदी और कैलाश को उठाने के लिए प्रयासरत रावण प्रदर्शित है. माना जा रहा है कि यह मूर्ति काफी दुर्लभ है, इसलिए यह मूर्ति आकर्षण का केंद्र बिंदु बनी हुई है.
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नटराज की मूर्ति
घासीदास संग्रहालय में राजनांदगांव जिला के घटियारी गांव से भगवान शिव की नटराज स्वरूप 11 वीं सदी की मूर्ति मिली है. ये मूर्ति काफी लोकप्रिय रही है. नटराज के रूप में प्रदर्शित यह प्रतिमा अष्टभुजी हैं और विविध आयुध सहित प्रदर्शित है. पैरों के पास नंदी अंकित हैं. शिव के सिर पर जटा मुकुट सुशोभित है और अन्य पारंपरिक आभूषण धारण किए हुए हैं.
अंधकासुर संहार प्रतिमा
पुराणों में वर्णित है कि अंधकासुर के पद से संबंधित कथानक मूर्तिकला में भी रूपायित मिलती है. अंधकासुर दैत्य का वध करने के लिए शिव उसे अपने शूल में उठाए हुए प्रदर्शित हैं. शिव के हाथों में पारंपरिक आयुध प्रतिष्ठित है. उनके पैरों के पास नंदी है. अंधकासुर संघार की यह प्रतिमा 11वीं सदी की है.
6वीं से 12वीं शताब्दी तक कि भगवान शिव की दुर्लभ मूर्तियां
महंत घासीदास संग्रहाध्यक्ष डॉ प्रतापचन्द पारख बताते हैं कि महंत घासीदास संग्रहालय भारत के नौ पुराने संग्रहालयों में से एक है. यहां पर भगवान शिव की छठवीं से लेकर 12वीं शताब्दी तक की विभिन्न मूर्तियां हैं. इनमें सबसे प्राचीन मूर्ति रूद्र शिव की है, जो बिलासपुर के पास ताला गांव से बरामद किया गया है. इस मूर्ति की विशेषता विलक्षण है. हमारी राशियों से संबंधित है. इस मूर्ति को कहा जाता है कि इसे अपने तांत्रिक क्रियाओं के लिए उपयोग किया जाता है. इसी तरह एक विलक्षण मूर्ति कल्याण सुंदर की है. जिसमें भगवान शिव और पार्वती के विवाह के बारे में बताया गया है. इसके साथ ही उमा महेश्वर की भी मूर्ति है. त्रिपुरान्ताक समेत दर्जन भर से अधिक मूर्तियां यहां पर उपलब्ध है, जो भी लोग यहां आएंगे दुर्लभ मूर्तियां भगवान शिव के दर्शन को मिलेंगे'.