रायपुर: इन दिनों छत्तीसगढ़ में धरना प्रदर्शनों का दौर एक बार फिर बढ़ (demonstration increased in Bhupesh government ) गया है. आए दिन होने वाले धरना-प्रदर्शन भूपेश सरकार के लिए मुसीबत का सबब बनते जा रहे हैं. कोई नौकरी, कोई नौकरी में प्रमोशन, वेतन वृद्धि, तो कोई अन्य दूसरी मांगों को लेकर धरना दे रहा है. इन धरनों का सरकार की सेहत पर कितना असर पड़ेगा. क्या आगामी विधानसभा चुनाव में इसका असर कांग्रेस वोट बैंक पर पड़ सकता है. यह ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब मिलना मुश्किल है. लेकिन इस पर कुछ कयास जरूर लगाए जा सकते हैं.
जानकारों की माने तो पिछले 2 साल कोरोना में निकल गए और अब विधानसभा चुनाव को महज 2 साल ही शेष बचे हैं, उसमें भी अंतिम का 1 साल विधानसभा चुनावी आचार संहिता सहित दूसरी बंदिशों में चला जाएगा. इस वजह से सरकार को काम करने के लिए सिर्फ 1 साल का समय ही शेष बचा है. इस 1 साल में ही कांग्रेस को सभी असंतुष्ट को साधना है और यदि उन्हें साधने में कांग्रेस नाकाम रही तो उसका खामियाजा उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है.
प्रदर्शनों से छत्तीसगढ़ कांग्रेस को हो सकता है नुकसान (chhattisgarh assembly elections 2023)
वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि 'जैसे-जैसे चुनाव करीब आते हैं. वैसे-वैसे आंदोलनों की संख्या बढ़ जाती है. सभी चुनाव को देखते हुए अपनी मांगों को पूरा करने सरकार पर दबाव बनाते हैं. वर्तमान में कांग्रेस सरकार के 3 साल बीत चुके हैं और काम करने के लिए महज 2 साल ही शेष रह गए हैं. ऐसे में विभिन्न संगठन जैसे कर्मचारी संगठन, राजनीतिक संगठन हो या सामाजिक संगठन हो या हो NGO. सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत यह धरना प्रदर्शन करने लगते हैं.
नये पुलिस कैंप का विरोधः ग्रामीणों के आंदोलन का बढ़ा स्वरूप, हजारों की तादाद में जुट रही भीड़
कोरोना काल में धरना प्रदर्शन पर रोक
तिवारी ने कहा कि कोरोना के चलते छत्तीसगढ़ सरकार ने 2 सालों तक धरना प्रदर्शन पर रोक लगा रखी थी. जिस वजह से यह सभी अखबार, टेलीविजन और सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाते थे. लेकिन अब जैसे ही इन्हें मौका मिला यह सड़कों पर उतर आए हैं और अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन करने लगे हैं.
रामअवतार तिवारी ने कहा कि अधिकतर मांगों का आधार आर्थिक होता है. वर्तमान में सरकार पहले से ही कर्ज के बोझ के तले दबी हुई है. विभिन्न योजनाओं को संचालित करने लगातार सरकार कर्ज ले रही है. केंद्र सरकार से भी राज्य का अंश नहीं मिल रहा है. इस वजह से भी छत्तीसगढ़ सरकार आर्थिक तंगी से गुजर रही है. ऐसे में आंदोलनकारियों की मांगों को पूरा करना राज्य सरकार के लिए संभव नहीं है. हालांकि बीच-बीच में शासन ने जरूर कुछ वर्गों की मांगों पर विचार किया और उसे पूरा भी किया है.
भूपेश सरकार पर प्रदर्शनों का असर (demonstrations effect in Bhupesh government )
रामअवतार तिवारी ने कहा कि ऐसी स्थितियों में भूपेश सरकार के सामने एक बड़ी चुनौतियां और दुविधा की स्थिति रहेगी. आर्थिक स्थिति सुधारना, सरकार की सेहत को ठीक करना उसकी एक बड़ी चुनौती है. दूसरी तरफ अलग-अलग मांग और दबाव बढ़ेंगे तो सड़कों में प्रदर्शन ज्यादा दिखेंगे. अब इसको संतुलन करने के लिए राज्य सरकार को इन बातों को गंभीरता पूर्वक विचार करना होगा. सरकार को यह भी तय करना होगा कि कौन सी मांग जायज है और कौन सी नहीं. जायज मांगों पर विचार और मंथन कर निर्णय लेना होगा. जिनकी मांग जायज और बड़ी है. उसकी समीक्षा होनी चाहिए. क्या कांग्रेस घोषणा पत्र में उसका वादा किया गया था. इस सबकी अगर समीक्षा नहीं की गई तो धरना और प्रदर्शन दिनों दिन बढ़ते जाएंगे.
तिवारी ने कहा कि 'सबको संतुष्ट करना सरकार के लिए संभव नहीं है. सबको संतुष्ट नहीं किया जा सकता है. धरना प्रदर्शन के दौरान सरकार ने कुछ संगठनों और वर्गों की मांगों को पूरा भी कियाा है. ऐसे में प्रदर्शनकारियों को लगता है कि इस तरह से आने वाले समय में उनकी मांग भी पूरी होगी और वह लगातार सरकार पर दबाव बनाने के लिए धरना प्रदर्शन का सहारा लेते हैं. ऐसे में सरकार को निर्णय लेना होगा कि किन मांगों को पूरा किया जाए और किसे नहीं.
बहरहाल चुनाव को अभी 2 साल का समय शेष है. ऐसे में देखने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेश भर में लगातार एक के बाद एक धरना प्रदर्शन कर रहे विभिन्न संगठनों और वर्गों को कैसे संतुष्ट करती है. असंतुष्टों को साधने के लिए क्या रणनीति बनाती हैं. यदि सरकार इन्हें साधने में नाकाम रहती है तो इसका आगामी विधानसभा चुनाव में क्या असर पड़ेगा.