कोरबा : तीरंदाजी का खेल आसान नहीं होता, धनुष उठाकर अचूक निशाना लगाना पड़ता है. कोरबा जिले के मुड़ापार क्षेत्र के एसईसीएल सेंट्रल वर्कशॉप स्टेडियम (SECL Central Workshop Stadium Korba) में मॉडर्न जमाने के धनुष बाण की निःशुल्क पाठशाला लगती (Father and son teach archery in Korba) है. करीब एक दशक से एकलव्यों को तैयार करने के लिए यहां ट्रेनिंग चल रही है. यहां से निकले खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते हैं. खिलाड़ियों की पीड़ा यह है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी नहीं कर पा रहे हैं. दरअसल तीरंदाजी के खेल में इस्तेमाल होने वाले उपकरण महंगे हैं. जिसके बारे में वह कल्पना भी नहीं कर पाते.
कितने साल से दे रहे ट्रेनिंग : सेदराम पिछले 10 साल से नि:शुल्क प्रशिक्षण शिविर लगा रहे हैं. इस साल लगभग 70 से 80 बच्चों को आर्चरी का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया है. इस प्रशिक्षण कैंप से कई राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकले हैं. इन खिलाड़ियों ने स्कूल लेवल के साथ ही ओपन टूर्नामेंट में भी गोल्ड मेडल जीता है.
क्या आ रही है परेशानी : सेदराम यादव के पुत्र भरत यादव कहते हैं कि "मैंने स्कूल और नेशनल को मिलाकर कुल 16 मेडल जीते हैं. इसमें 6 गोल्ड मेडल हैं. राष्ट्रीय स्तर पर कई राज्यों में बढ़िया परफॉर्मेंस दिया. लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हम कंपटीशन से बाहर हो जाते हैं. आर्चरी के उपकरण काफी महंगे होते हैं. कम से कम 2 लाख रुपये खर्च करने होते हैं. दो दर्जन बाण के दाम ही 40 हजार होते हैं. दो दर्जन बाण सामान्य तौर पर साल भर में खर्च हो ही जाते (Difficult to teach archery in Korba)हैं.''
क्या है दूसरे खिलाड़ियों की दिक्कत : तीरंदाजी के राज्य में उत्कृष्ट खिलाड़ी सरोज सिंह मरकाम लगातार प्रैक्टिस कर रहे हैं. सरोज कहते हैं कि ''तीरंदाजी के उपकरण इतने महंगे आते हैं कि मेरे पिता को उसके लिए जमीन गिरवी रखनी पड़ी. उन्होंने मुझे इस जमीन के बदले में उपकरण उपलब्ध कराए हैं. जिसकी कीमत 3 लाख 50 हजार रुपए है. अब मेरा टारगेट सीनियर ओपन टूर्नामेंट है. इसके बाद मुझे देश का नाम रोशन कर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना है. मैं जी तोड़ मेहनत कर रहा हूं.
राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भानु कुमार कहते हैं कि ''तीरंदाजी को क्रिकेट और फुटबॉल की तरह तवज्जो नहीं मिलती. तीरंदाजी के खिलाड़ी कुछ पिछड़ते जरूर हैं. तीरंदाजी के खेल को भी उतना ही महत्व मिलना चाहिए, जितना दूसरे खेलों को मिलता है. तभी इस खेल में और भी बेहतर खिलाड़ी पैदा होंगे''