कोरबा : जिले में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय में विरासत की अनमोल धरोहरें मौजूद हैं. लेकिन इन्हें सहेजने के लिए ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं. हाल ही में खनिज न्यास मद की भारी-भरकम राशि वाले कोरबा जिले में 943 करोड़ रुपए के कार्यों का अनुमोदन किया गया है. लेकिन विरासत की धरोहर को सहेजने की ओर किसी का ध्यान नहीं गया. बीते लगभग दो दशक से संग्रहालय (Archaeological Museum in Korba) उपेक्षाओं के बीच संचालित हो रहा है. अब तो हालात ये हैं कि यहां रखे शिल्प कला और डिस्प्ले में दीमक लगने लगे हैं. वर्तमान में संग्रहालय का संचालन जिला पुरातत्व संघ के माध्यम से हो रहा है. तकनीकी अड़चनों के कारण राज्य के पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग ने संग्रहालय का अधिग्रहण ही नहीं किया है. जिसके कारण संग्रहालय को सहेजने के लिए ना तो फंड है ना ही कोई संसाधन.
कब से संचालित है भवन : जिले का पुरातत्व संग्रहालय वर्तमान में घंटाघर ओपन थिएटर के ठीक बगल में संचालित है. यहां धरोहर को सहेजने के लिए पर्याप्त स्थान जरूर मौजूद है. लेकिन भवन में कई स्थानों पर दरारें आ गई हैं. जितना बड़ा भवन है, उतने संसाधन यहां मौजूद नहीं है. जिन दो कर्मचारियों की यहां नियुक्ति है, उन्हें समय पर वेतन नहीं मिल रहा है. साफ-सफाई भी नहीं हो पाती. पुरातत्व मार्गदर्शन हरि सिंह के मुताबिक ''मौजूदा भवन में संग्रहालय को साल 2013 में शिफ्ट किया गया था. तब 76 लाख की लागत से भवन का निर्माण हुआ था. इसके पहले संग्रहालय का संचालन टीपी नगर के इंदिरा गांधी स्टेडियम के छोटे से कमरे में होता था. संग्रहालय को अपना भवन तो मिल गया लेकिन आज तक इसका अधिग्रहण नहीं हो सका है. जिसके कारण संग्रहालय को सहेजने और इसके विकास के लिए कोई फंड नहीं है.''
क्यों हुई है दुर्दशा : कला प्रेमियों के लिए संग्रहालय में आर्ट गैलरी भी मौजूद है. इस आर्ट गैलरी में कई तरह के एग्जिबिशन किए जा सकते हैं. लेकिन रखरखाव के अभाव में यहां वीरानी छाई रहती है. निर्माण से लेकर अब तक यहां आज तक बमुश्किल ही कोई प्रदर्शनी लगी ( plight of the Archaeological Museum in Korba) है. जो संसाधन मौजूद हैं, उन्हें संजोकर नहीं रखा जा रहा है. जिसके कारण भवन की उपयोगिता साबित नहीं हो रही है. राज्य के अन्य किसी भी संग्रहालय में इतनी बड़ी आर्ट गैलरी मौजूद नहीं है. राज्य सरकार ने हाल ही में रायगढ़, अंबिकापुर, राजनांदगांव सहित राज्य के चार संग्रहालय को अधिग्रहित करने की सूचना जारी की है लेकिन उसमें कोरबा का नाम नहीं है.
किसकी है जिम्मेदारी : वर्तमान में पुरातत्व संग्रहालय कोरबा का संचालन जिला पुरातत्व संघ कोरबा की तरफ से होता है. जिसके अध्यक्ष कलेक्टर होते हैं. जबकि सांसद के प्रतिनिधि सहित विधायक भी समिति में शामिल होते हैं. नियम के मुताबिक हर 3 महीने में एक बार पुरातत्व संघ की बैठक होनी चाहिए. लेकिन विडंबना यह है कि साल 2014 के बाद 5 महीने पहले एक बैठक हुई थी.
बिना बैठक निर्णय कैसे : हरि सिंह कहते हैं कि '' बैठक नियमित नहीं होने से जरूरी निर्णय नहीं हो पाते. संग्रहालय के विकास और रखरखाव के लिए किसी तरह का कोई भी फंड मौजूद नहीं होता. जिसके कारण कई तरह की दिक्कतें आती हैं. यदि संघ इस ओर ध्यान दे तो इस संग्रहालय की खोई पहचान वापस आ सकती है.''
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संग्रहालय क्यों है जरुरी : पुरातत्व संग्रहालय कोरबा में आदिमानव से जुड़े प्रमाण मौजूद हैं. करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्म यहां सुरक्षित रखे गए हैं. इसके अलावा मुगलकालीन पात्र , सिक्के और मूर्तियां सभी नायाब हैं. संग्रहालय में आठवीं शताब्दी से लेकर 11वीं और 12वीं शताब्दी की गणेश प्रतिमा, शिवलिंग और कई तरह की मूर्तियां मौजूद हैं. ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल और जमींदारी प्रथा से जुड़ी कई बंदूकें, पत्र और पोशाक संग्रहालय में हैं. संग्रहालय में जिले में अलग-अलग स्थानों पर मिले शैल चित्रों की भी प्रदर्शनी लगाई गई है. यह अपने आप में इतिहास को समेटे हुए हैं.