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बस्तर दशहरा : बस्तर से गायब हुआ साल का पेड़, रथ के लिए लकड़ी खोज रहे कारीगर

बस्तर में साल के पेड़ कम होते जा रहे है. इस कारण रथ के निर्माण में समस्याएं आ रही है. वहीं बस्तर दशहरा के लिए कुछ दिन ही बचे है जिस कारण कारीगर खासा परेशान है.

बस्तर से गायब हुआ साल का पेड़
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Published : Aug 7, 2019, 10:42 PM IST

जगदलपुर : प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना-जाने वाला बस्तर कभी साल से घिरा रहता था. लेकिन साल से घिरा बस्तर अब दिन ब दिन सिमटता जा रहा है. इस वजह से इलाके में साल के पेड़ों की भी कमी हो गई है. इस कारण बस्तर दशहरे में निर्माण किए जाने वाला रथ का काम अधूरा है. विशालकाय रथ के लिए साल की लकड़ी का न मिल पाना चिंता का विषय बना हुआ है.

बस्तर से गायब हुआ साल का पेड़

बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले विश्व प्रसिध्द दशहरा लकड़ियों से बना विशालकाय रथ की वजह से खास है. हर साल आदिवासी की ओर से साल की लकड़ियों से 12 चक्कों का रथ तैयार किया जाता है. इसे 200 कारीगर तैयार करते हैं. इस साल रथ निर्माण के लिए आदिवासी कारीगरों को सबसे महत्वपूर्ण साल की लकड़ियों को ढूंढने मे काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

पढ़ें : SPECIAL: ऐसी कौन सी रस्में होती हैं कि बस्तर दशहरा 75 दिन मनाया जाता है, देखिए

अंधाधुन कटाई रोकने में नाकाम प्रशासन
इतिहासकार संजवी पचौरी के बताया कि 611 सालों से बस्तर में दशहरा के पहले साल की लकड़ियों से रथ बनाने की परपंरा है. वहीं पेड़ों की अंधाधुन कटाई को रोक पाने में नाकाम प्रशासन विश्व प्रसिध्द दशहरा पर्व को लेकर भी उदासीनता बरत रही है. वहीं राजनीतिक और प्रशासनिक दखल के बाद आदिवासियों की भी रूचि कम हो रही है. वहीं आने वाली पाढ़ी भी रथ के निर्माण कार्य में रूचि नहीं ले रही है.

साल के पेड़ बस्तर से होते गायब
प्रशासन के अधिकारी भी मानते है कि पहले की तुलना में अब बस्तर के वनों में साल के पेड़ आसानी से नहीं मिल रहे हैं. हालांकि बस्तर कलेक्टर का कहना है कि 'इसके लिए वृक्षारोपण में जोर दिया जाएगा और इस वर्ष रथ निर्माण के लिए लकड़ियों की कमी न पड़े इसके लिए भी व्यवस्था की जाएगी.

दशहरा की मान्यता
दरअसल बस्तर का दशहरा विश्व विख्यात है, शांति, अंहिसा और सद्भभाव का प्रतीक बस्तर दशहरे में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है. इसकी विशेषता है लकड़ी से बने लगभग 20 फुट चौड़े, 40 फूट लंबे और 50 फूट उंचे भव्य विशालकाय दो मंजिले रथ से शहर की परिक्रमा की जाती है. 1408 ईं. में तत्कालीन चालुक्य वंशी महाराजा पुरषोत्तम देव ने शक्ति पूजा के रूप मे इस महापर्व की शुरूआत की थी, तब से लेकर आज तक इस पर्व को बडे धूमधाम मनाया जाता है.

जगदलपुर : प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना-जाने वाला बस्तर कभी साल से घिरा रहता था. लेकिन साल से घिरा बस्तर अब दिन ब दिन सिमटता जा रहा है. इस वजह से इलाके में साल के पेड़ों की भी कमी हो गई है. इस कारण बस्तर दशहरे में निर्माण किए जाने वाला रथ का काम अधूरा है. विशालकाय रथ के लिए साल की लकड़ी का न मिल पाना चिंता का विषय बना हुआ है.

बस्तर से गायब हुआ साल का पेड़

बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले विश्व प्रसिध्द दशहरा लकड़ियों से बना विशालकाय रथ की वजह से खास है. हर साल आदिवासी की ओर से साल की लकड़ियों से 12 चक्कों का रथ तैयार किया जाता है. इसे 200 कारीगर तैयार करते हैं. इस साल रथ निर्माण के लिए आदिवासी कारीगरों को सबसे महत्वपूर्ण साल की लकड़ियों को ढूंढने मे काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

पढ़ें : SPECIAL: ऐसी कौन सी रस्में होती हैं कि बस्तर दशहरा 75 दिन मनाया जाता है, देखिए

अंधाधुन कटाई रोकने में नाकाम प्रशासन
इतिहासकार संजवी पचौरी के बताया कि 611 सालों से बस्तर में दशहरा के पहले साल की लकड़ियों से रथ बनाने की परपंरा है. वहीं पेड़ों की अंधाधुन कटाई को रोक पाने में नाकाम प्रशासन विश्व प्रसिध्द दशहरा पर्व को लेकर भी उदासीनता बरत रही है. वहीं राजनीतिक और प्रशासनिक दखल के बाद आदिवासियों की भी रूचि कम हो रही है. वहीं आने वाली पाढ़ी भी रथ के निर्माण कार्य में रूचि नहीं ले रही है.

साल के पेड़ बस्तर से होते गायब
प्रशासन के अधिकारी भी मानते है कि पहले की तुलना में अब बस्तर के वनों में साल के पेड़ आसानी से नहीं मिल रहे हैं. हालांकि बस्तर कलेक्टर का कहना है कि 'इसके लिए वृक्षारोपण में जोर दिया जाएगा और इस वर्ष रथ निर्माण के लिए लकड़ियों की कमी न पड़े इसके लिए भी व्यवस्था की जाएगी.

दशहरा की मान्यता
दरअसल बस्तर का दशहरा विश्व विख्यात है, शांति, अंहिसा और सद्भभाव का प्रतीक बस्तर दशहरे में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है. इसकी विशेषता है लकड़ी से बने लगभग 20 फुट चौड़े, 40 फूट लंबे और 50 फूट उंचे भव्य विशालकाय दो मंजिले रथ से शहर की परिक्रमा की जाती है. 1408 ईं. में तत्कालीन चालुक्य वंशी महाराजा पुरषोत्तम देव ने शक्ति पूजा के रूप मे इस महापर्व की शुरूआत की थी, तब से लेकर आज तक इस पर्व को बडे धूमधाम मनाया जाता है.

Intro:जगदलपुर। देश मे बस्तर मे की पहचान यंहा के प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से है, बस्तर को साल वनो का व्दीप भी कहा जाता है। लेकिन वनो से घिरे बस्तर मे अब जंगल दिन ब दिन सिमटते जा रहे है, वनो की अंधाधूद कटाई से जंहा बस्तर की प्राकृतिक सौंदर्य घटती जा रही है, वही घटते जंगलो की वजह से विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व के लिए निर्मित होने वाले विशालकाय रथ के लिए लकडी न मिल पाना भी चिंता का विषय बन गया है,  सिमटते वनो की वजह से आदिवासी ऱथकारीगरो को रथ निर्माण के लिए सबसे जरूरी लकडियों का आसानी से मिलना मुश्किल हो गया है। वही लकडी की समस्या के अलावा नई पीढी की रथ निर्माण कला सीखने मे अरुचि भी इस वर्ष चिंता का विषय बना हुआ है।   


Body:बस्तर मे 75 दिनो तक मनाये जाने वाले विश्व प्रसिध्द दशहरा पर्व मे सबसे खास आर्कषण का केन्द्र होता है लकडियो से बना विशालकाय रथ।  हर वर्ष आदिवासी ग्रामीणो द्वारा साल वृक्ष के लकडियो से 200 रथ कारीगरो द्वारा  12 चक्को का विशालकाय नये रथ का निर्माण किया जाता है। और इस रथ मे मां दंतेश्वरी की छत्र को रथारूढ कर शहर मे परिक्रमा लगायी जाती है, लेकिन इस वर्ष इस रथ निर्माण के लिए आदिवासी कारीगरो को  सबसे महत्वपूर्ण साल वृक्ष के लकडियो को ढूंढने मे काफी मशक्कत करनी पड रही है। इतिहासकार संजवी पचौरी के अनुसार बीते 611 सालो से बस्तर मे दशहरा पर्व के दौरान इसी साल वन के लकडियो से रथ बनाने की पंरपंरा है। लेकिन अब इस साल वन के लकडियो को खोजने के लिए आदिवासियो का काफी मशक्कत करनी पड रही है। इतिहासकार संजीव पचौरी का मानना है कि पेडो की अंधाधूद कटाई को रोक पाने मे नाकामयाब प्रशासन विश्व प्रसिध्द दशहरा पर्व को लेकर भी उदासीनता बरत रही है, जब से इस पर्व का राजनीतिकरण और प्रशासनिक दखल अंदाजी हुआ है, उससे इस पर्व मे आदिवासियो मे भी रूचि की कमी है और यही वजह है कि पीढी दर पीढी रथ निर्माण करते आ रहे आदिवासी रथ कारीगरो की नयी पीढी रथ निर्माण कार्य मे रूचि नही ले रही है, जिसके चलते यह एक चिंता का विषय बन गया है।


Conclusion:इधर प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी भी मानते है कि पहले की तुलना मे अब बस्तर के वनो मे वैसे पेड आसानी से नही मिल पाते जैसे रथ निर्माण के लिए उपयोग लाये जाने जरूरी है। हांलाकि बस्तर कलेक्टर कहना है कि इसके लिए वृक्षारोपण मे जोर दिया जायेगा। और इस वर्ष रथ निर्माण के लिए लकडियो की कमी न पडे इसके लिए व्यवस्था की जायेगी।
दरअसल बस्तर का दशहरा पर्व अपनी अनूठी मान्यता वैभवशाली परंपरा और 75 दिनो तक चलने वाले अनुष्ठानों के लिए विश्व विख्यात है, शांति अंहिसा और सद्भभाव के प्रतीक बस्तर दशहरा महापर्व मे रावण का पुतला दहन नही किया जाता, और इसकी विशेषता है लकडी से बने लगभग 20 फुट चौडे,40 फूट लंबे और 50 फूट उंचे भव्य विशालकाय दुमंजिले रथ की शहर परिक्रमा ।शक्ति पूजा के रूप मे इस महापर्व की शुरूआत बस्तर के तत्कालीन चालुक्य वंशी महाराजा पुरषोत्तम देव ने सन 1408 ईं. मे अपने राज्यअभिषेक के साथ की थी,तब से लेकर आज तक इस पर्व को बडे धूमधाम मनाया जाता है।    

बाईट1- संजीव पचौरी, इतिहासकार
बाईट2- अयाज़ तम्बोली, कलेक्टर बस्तर
 
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