दुर्ग : आपने कई प्राचीन मंदिर देखे होंगे. उस मंदिर से जुड़ी कहानियां भी सुनी होंगी. लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के दर्शन कराने वाले हैं.वो अपने आप में अनोखी है. ये मंदिर भले ही प्राचीन नहीं है.लेकिन ये मंदिर को जिस तरह से बनाया जा रहा है. उसे देखने के बाद ये लग रहा है कि आने वाली पीढ़ियां इस कलाकृति को देखकर जरूर आज के दिनों को याद करेंगी.
ज्योतिकलश से बन रहा है मंदिर :दुर्ग जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर धमधा से खैरागढ़ जाने वाले रास्ते पर मौजूद है एक (Unique temple in Dhamdha of the durg) मंदिर.ये मंदिर आम मंदिरों से बिल्कुल अलग है. क्योंकि इस मंदिर के लिए ईंट या पत्थरों का नहीं बल्कि ज्योति कलशों का इस्तेमाल किया जा रहा है. मंदिर को छोटे-बड़े दियों से बनाया जा रहा है. इस निर्माणाधीन मंदिर के पास ही हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गई है.
कलश के अपमान की वजह से निर्णय : मंदिर के पुजारी नरेंद्र बाबा ने बताया कि इस मंदिर को बनाने के पीछे एक अहम मकसद है. दरअसल नवरात्रि और दीपावली के समय लोग 9 दिन मां दुर्गा की पूजा करने के साथ-साथ कलश में दीप जलाते हैं. 9 दिन बाद उन ज्योति कलश को तालाब या नदी में विसर्जित कर देते हैं. उसके बाद कलश पर लोगों के पैर लगते हैं.जबकि पूजन सामग्रियों में खुद भगवान का वास होता है. इसलिए बेकार पड़े कलश और दीयों को इकट्ठा करके मंदिर निर्माण शुरु (Jyoti Kalash Temple in Dhamdha of Durg) किया गया.
14 साल से बन रहा मंदिर : इस मंदिर का निर्माण 14 साल पहले शुरू हुआ था. अब तक इस मंदिर में एक लाख से ज्यादा कलश और दीप लग चुके हैं. यह मंदिर लगभग 50 फीट तक बन चुका है. लोग अपनी श्रद्धा से मंदिर निर्माण के लिए लगातार दान कर रहे हैं. लोगों की आस्था इस मंदिर के निर्माण और पूजा के प्रति लगातार बढ़ रही है. मंदिर निर्माण के लिए दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी (Dantewada maa Danteshwari), डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी और रतनपुर की मां महामाया मंदिर से मिट्टी के कलश लाए जा चुके हैं.
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दीयों से बनने वाला पहला मंदिर : मंदिर के पुजारी नरेन्द्र बाबा ने बताया कि यह मंदिर देश का पहला मंदिर है जो मिट्टी के कलश से बना है.पूरे देश में ऐसा कोई भी मंदिर नहीं है. उनका कहना है कि इस मंदिर को देखने के लिए प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश से लोग यहां पर आते हैं.