राजनांदगांव: आंवलानवमी पर महिलाओं ने आंवला वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधा और झूला झूल कर आनंद उठाया. शहर के कई स्थानों में महिलाओं ने आंवला नवमी का पर्व धूमधाम से मनाया. पुत्र की प्राप्ति और सुख समृद्धि के लिए महिलाएं कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला वृक्ष की पूजा अर्चना करती हैं.
आंवला नवमी पर राजनांदगांव में पूजा: आंवला नवमी के मौके पर महिलाएं राजनांदगांव शहर के नगर निगम परिसर स्थित बगीचे पर पहुंचीं और आंवला वृक्ष की विधि विधान से पूजा अर्चना की. आंवला वृक्ष की पूजा कर पेड़ में रक्षा सूत्र बांधकर सुख समृद्धि की कामना की. पेड़ की छांव में बैठकर महिलाओं ने भोजन भी किया.
सुहागिनों ने आंवला पेड़ की पूजा अर्चना कर मांगा सौभाग्य का आशीर्वाद: आंवला नवमी के मौके पर सोलह श्रृंगार से सजी महिलाओं ने आंवला वृक्ष की विधि विधान से पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की और आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण किया और झूला का आनंद लिया- एकता गुप्ता, व्रती महिला
आंवला नवमी की मान्यता: ऐसी मान्यता है कि आंवलानवमी पर आंवला वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है. आंवला वृक्ष की पूजा करने और दान पुण्य करने से घर का भंडार कभी खाली नहीं होता. भगवान विष्णु के साथ साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है.
आंवले के पेड़ की पूजा की कथा: एक बार मां लक्ष्मी ने पृथ्वी भ्रमण के दौरान भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की सोची. लेकिन उनके मन में आया कि भगवान विष्णु और शिव की पूजा कैसे करें. तब उनके मन में आया कि तुलसी को भगवान विष्णु से प्रेम है और भगवान शिव को बेल पत्र से. दोनों की गुणवत्ता आंवले के पेड़ में पाई जाती है. इसके बाद मां लक्ष्मी ने विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर आंवले के पेड़ की पूजा आराधना की.
लक्ष्मी देवी की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए. लक्ष्मी माता ने उनके लिए आंवले के पेड़ के नीचे ही खाना बनाया और उसे विष्णु और भगवान शिव को परोसा. इसके बाद माता लक्ष्मी ने उस भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. जिस दिन माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ की पूजा की वो दिन कार्तिक महीने की नवमी तिथि थी. तब से आंवला पेड़ की पूजा की परंपरा चली आ रही है.