रायपुर : सरगुजा जिले के हरिहरपुर में स्थानीय लोग 2 मार्च से धरना दे रहे हैं . यह आंदोलन इलाके के परसा कोल ब्लॉक में खनन के खिलाफ किया जा रहा है . खनन परियोजना के प्रभावित गांव साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर के ग्रामीण इस परियोजना का काफी अरसे से विरोध कर रहे हैं . अब इन ग्रामीणों के साथ छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्यों के संगठन जुड़ गए हैं . हसदेव अरण्य क्षेत्र के आंदोलनरत ग्रामीणों के समर्थन में 4 मई को 8 से 10 राज्यों में कई संगठनों ने प्रदर्शन किया .
आदिवासियों की नहीं हुई सुनवाई : हसदेव बचाओ आंदोलन के संचालक आलोक शुक्ला का कहना है कि ''अक्टूबर 2021 में 300 किलोमीटर पदयात्रा के बाद भी हसदेव के आदिवासियों की कोई सुनवाई नही हुई, बल्कि अदानी के लिए गैरकानूनी रूप से समस्त स्वीकृतियां दे दी गई हैं . हसदेव में पर्यावरण चिंताओं को दरकिनार करते हुए, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को ताक पर रखकर परसा और परसा ईस्ट कोल ब्लॉक में खनन की स्वीकृति दी गई है.'' शुक्ला ने बताया कि ''इसके खिलाफ लगातार गांव के आदिवासी आंदोलनरत हैं . पिछले एक दशक से हसदेव को बचाने के लिए आंदोलन चल रहा है . हसदेव सिर्फ एक गांव का मामला नहीं है . हसदेव अरण्य क्षेत्र, एक समृद्ध जंगल है . यह जंगल वन्य प्राणियों के लिए आवश्यक है . यह क्षेत्र हसदेव नदी का कैचमेंट एरिया है .''
''पर्यावरण का विनाश दु:खद'' : हसदेव बचाओ आंदोलन के संचालक आलोक शुक्ला मानते हैं कि '' पर्यावरणीय संवेदनशील इलाके का विनाश बहुत ही दुखद है .शुक्ला ने बताया कि, इसके खिलाफ में कल पूरे देश में आंदोलन हुआ. देश के 8 से 10 राज्यों में लोगों ने प्रदर्शन किया.आंदोलनकारियों ने हसदेव नदी को बचाने के लिए अपील की है और हसदेव के आंदोलन में एकजुटता प्रदर्शित की है .'' आलोक शुक्ला के मुताबिक ''हसदेव को बचाने के लिए लोग एकजुट है . पर्यावरण एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला को उम्मीद है कि, केंद्र और राज्य सरकार इन आवाजों को अनसुना नहीं करेगी .'' शुक्ला यह भी मानते हैं कि सरकारें, हसदेव को बचाने की दिशा में आगे कदम बढ़ाएंगी और खनन के लिए दी गईं कानूनी स्वीकृतियों को भी सरकारें वापस लेंगी .
क्या है हसदेव अरण्य : छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा और सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल समृद्ध वन क्षेत्र है. जो जैव-विविधता से परिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है. जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के नागरिकों और खेतों की प्यास बुझाता है. यह वन क्षेत्र सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि मध्य-भारत का एक समृद्ध वन है. जो मध्य प्रदेश के कान्हा के जंगलों को झारखण्ड के पलामू के जंगलों से जोड़ता है. यह हाथी जैसे 25 महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है.