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भविष्य में कोविड जैसी स्थिति से कैसे निपटा जाए, शिक्षा नीति में पूरी तरह छूट गया

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Published : Aug 1, 2020, 2:08 PM IST

नई शिक्षा नीति 2020 को लेकर 'सेव द चिल्ड्रेन' इंडिया की शिक्षा प्रमुख कमल गौर ने ईटीवी भारत के डिप्टी न्यूज एडिटर कृष्णानंद त्रिपाठी से विशेष बातचीत की जिसमें उन्होंने बताया कि इस नीति में भविष्य में कोविड जैसी स्थिति के लिए अपने स्कूलों को किस तरह से तैयार करें ताकि ऐसी वैश्विक महामारी कोविड-19 में शिक्षा को कोई नुकसान नहीं हो. पढ़ें पूरी खबर...

new education policy 2020
नई शिक्षा नीति 2020

नई दिल्ली : नई शिक्षा नीति 2020 अपनी प्रकृति से प्राथमिक और उच्च शिक्षा दोनों के लिए पूरी तरह से बदलाव लाने वाली है, लेकिन कोविड का संदर्भ पूरी तरह से छोड़ दिया गया है. 'सेव द चिल्ड्रेन' इंडिया की शिक्षा प्रमुख कमल गौर का यह कहना है. उन्होंने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में कहा कि नीति में इसका उल्लेख नहीं है कि भविष्य में कोविड जैसी स्थिति के लिए अपने स्कूलों को किस तरह से तैयार करें ताकि ऐसी वैश्विक महामारी में शिक्षा को कोई नुकसान नहीं हो. पेश है बातचीत का संपादित अंश-

प्रश्न- क्या 10+2 वाले प्रारूप को एक नए 15 साल की शिक्षा प्रणाली में बदल देने मात्र से हमलोग देश में जिस तरह शिक्षा दे रहे हैं उसका तरीका बदल जाएगा ?
उ.- यदि उद्देश देखें तो यह प्राथमिक और उच्च शिक्षा दोनों के लिए पूरी तरह से बदलाव लाने वाली नीति है. इसने कई क्षेत्रों को विस्तार से कवर किया है. नए क्षेत्र, और पहले सीखने की शुरुआत नई शिक्षा नीति का हिस्सा बना है. यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि अब बुनियादी शिक्षा पर ध्यान होगा, जिसके लिए हम लोग संघर्ष कर रहे थे. लेकिन, इसमें कुछ कड़ियां छूट भी गई हैं. उदाहरण के तौर पर इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इसे कैसे हासिल कर पाएंगे. हम शिक्षा तक शत प्रतिशत बच्चों की पहुंच की बात तो करते हैं लेकिन कैसे होगा उसका रास्ता नहीं बताया गया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

प्र.- कुछ आलोचकों की दलील है कि प्राकृतिक संख्या की शुरुआत एक से होती है इसलिए स्कूलिंग व्यवस्था कक्षा एक से होनी चाहिए, लेकिन निजी स्कूलों ने प्रारंभिक शिक्षा का व्यावसायीकरण करने के लिए प्रेप और बालवाड़ी शुरू कर दिया है. इसलिए प्रेप-एजुकेशन को इस नीति में शामिल करने पर आलोचना भी हो रही है.
उ.- सेव द चिड्रेन में हमारे, और भी कई शिक्षाविदों, सहयोगियों और साझेदारों का मानना है कि यह एक अच्छा प्रयास है, जिसमें आरंभिक शिक्षा को स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया गया है. क्योंकि यह बच्चों को स्कूल जाने के लिए अधिक तत्परता की बात करता है. हमारे काम का एक प्रमुख क्षेत्र स्कूल के लिए तैयार करना है. आंगनवाड़ी और प्रेप स्कूलों के पूरे विचार का मकसद ही बच्चों के स्कूल के लिए तैयार करना है.

दूसरा क्षेत्र है कि क्या स्कूल और व्यवस्था उन बच्चों के स्वागत के लिए तैयार हैं क्योंकि प्रेप स्कूलों में क्या होता है कि यह मुक्त होता है, प्राकृतिक तरह की व्यवस्था होती है और बच्चों की बहुत अधिक देखभाल की जाती है. जब एक बच्चा 10 गुना 10 वर्ग फीट के कमरे में होता है और जब वह बड़े स्कूल भवन में जाता है और वहां ऐसे शिक्षक मिलते हैं जो उनसे दूरी बनाकर रखते हैं, यह एक मुद्दा है.

प्र. यह नीति बुनियादी शिक्षा और गिनती की बात करती है. कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि पढ़ना-लिखना और मूल अंकगणित बहुत महत्वपूर्ण है और यदि बच्चा सीख लेता है तो वह जीवन में सफल हो सकता है. क्या आप इस बुनियादी शिक्षा के बारे में विस्तार से बताएंगी?
उ- बुनियादी शिक्षा प्री-स्कूल का विस्तार है. आप सीखने के तरीके पढ़ाते हैं, इसका अभ्यास कराते हैं. हमलोग प्री-स्कूल में पढ़ने और लिखने की बात नहीं करते. बुनियादी शिक्षा को शामिल करना गणित में इसके परिणामस्वरूप मिली शिक्षा का एक विस्तार होना चाहिए. इसे हम सीखने के तैयार सामान्य दृष्टिकोण कहते हैं जो गणित में इसके परिणामस्वरूप प्राप्त शिक्षा पर आधारित है. हमलोग इसके लिए संघर्ष करते रहे हैं. हमारे लिए यह एक स्वागत योग्य बदलाव है.

प्र.- भारतीय शिक्षा व्यवस्था की इस बात की आलोचना की जाती रही है कि इसमें चीजों को याद रखने और रटने पर ध्यान रहता है, जबकि अन्य विकसित देशों में ध्यान गहन सोच और बच्चों को चीजों के बारे में सवाल करने के बारे में सिखाने पर दिया जाता है. क्या इसे नई नीति में शामिल किया गया है?
उ.- इसी को गणित में परिणाम स्वरूप पढ़ने-लिखने की आई योग्यता कहा जाता है. इरादा नेक है, लेकिन मैं फिर पूछूंगी कि इसके लिए निवेश कहां है, इसके लिए पैसा कहां है? हम लोग ईडी-टेक, निगरानी और निजी स्कूलों के लिए अधिनियम की बात कर रहे हैं. सैद्धांतिक रूप से यह अच्छा है लेकिन हम इंतजार करके देखेंगे कि अमल के लिए कैसे आगे बढ़ा जा रहा है.

प्र. शिक्षकों की शिक्षा पर अधिक जोर है. दो साल की बीएड डिग्री चार साल से बदल दी जाएगी. क्या यह अच्छा कदम होगा?
उ. यह बहुत महत्वपूर्ण है. यहां तक कि इसके पहले की नीति में भी हमलोगों ने शिक्षकों के सतत पेशेवर विकास की बात की लेकिन कितने शिक्षकों ने पेशेवर प्रशिक्षण पाया? केवल 14-15 प्रतिशत. मुझे बहुत उम्मीद है कि शिक्षकों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से स्कूल के स्तर पर अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित होगी. इस बारे में हमारे बजट में बात होनी चाहिए.

प्र. – एएसईआर और एनएएस दोनों के सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई है कि बच्चों की कक्षा और ज्ञान बेमेल है. वह कक्षा के अनुरूप नहीं है. क्या नई नीति इस असंतुलन को ठीक करने में सक्षम होगी?
उ.- इरादा सही है. मसौदा सही है, लेकिन यह कैसे होगा इसका रोडमैप गायब है. हमारा ध्यान इसी पर केंद्रित होना चाहिए कि इस पर अमल कैसे करने जा रहे हैं? क्योंकि हमलोगों ने नए क्षेत्रों को जोड़ा है, इसमें तकनीक की बात कही गई है, जिसमें मुख्य रूप से पूंजी की जरूरत है.

इस नीति में कोविड का संदर्भ शामिल किया जाना चाहिए था क्योंकि हमलोग कोविड की वजह से कई साल पीछे चले गए हैं. नीति में कुछ ऐसी योजना होनी चाहिए कि हमलोग कोविड के प्रभाव से कैसे उबरेंगे. यह भी इसमें नहीं है. स्कूल की सुरक्षा और उसके लचीलेपन पर भी कुछ नहीं है. आज कोविड है, कल सार्स या एच5एन1 या कोई अन्य आपदा आ सकती है लेकिन इसके लिए योजना कहां है? हमलोग अपने स्कूल को और अधिक लचीला कैसे बनाने जा रहे हैं? हमलोग आपातकाल के दौरान पढ़ाई के एक दिन का भी नुकसान नहीं होने का प्रचार करते हैं लेकिन नीति में आपातकाल के संदर्भ में कहां प्रावधान है?

प्र. आपने निवेश की कमी की बात की. क्या इसके साथ ही लाइसेंस राज को दूर किया जाना चाहिए? क्या किसी के लिए भी यह खुला होना चाहिए कि आए और शिक्षा क्षेत्र में निवेश करे?
उ.- यह देश और सरकार की जिम्मेदारी है. मैं निवेश लाने के विचार के खिलाफ नहीं हूं लेकिन यह किसी भी सरकार का संवैधानिक दायित्व है और इसका पालन किया जाना चाहिए. मैं शिक्षा में सरकारी निवेश और निजी क्षेत्र के नियामक दिशा-निर्देश के लिए प्रचार करूंगी, चाहे वह फीस हो या निजी स्कूलों में वंचित समाज के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा हो. नीति में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) का पूरा उल्लेख ही गायब है.

प्र.- नीति में उन छात्रों के लिए जो किसी कारण से पढ़ाई छोड़ देते हैं उनके लिए कई बार पढ़ाई छोड़ने का विकल्प है. आप इसे किस तरह देखती हैं?
उ. – यह बहुत मददगार होने जा रहा है. एक मौका देने और अपनी पढ़ाई का विषय चुनने का विचार महत्वपूर्ण है. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के स्तर पर विज्ञान का कोई छात्र भी कला विषय का चयन कर सकता है. यह बहुत अच्छा कदम है और यह दुनिया में बच्चे जैसे पढ़ रहे हैं उनके साथ खुद को पंक्तिबद्ध करने जैसा है.

नई दिल्ली : नई शिक्षा नीति 2020 अपनी प्रकृति से प्राथमिक और उच्च शिक्षा दोनों के लिए पूरी तरह से बदलाव लाने वाली है, लेकिन कोविड का संदर्भ पूरी तरह से छोड़ दिया गया है. 'सेव द चिल्ड्रेन' इंडिया की शिक्षा प्रमुख कमल गौर का यह कहना है. उन्होंने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में कहा कि नीति में इसका उल्लेख नहीं है कि भविष्य में कोविड जैसी स्थिति के लिए अपने स्कूलों को किस तरह से तैयार करें ताकि ऐसी वैश्विक महामारी में शिक्षा को कोई नुकसान नहीं हो. पेश है बातचीत का संपादित अंश-

प्रश्न- क्या 10+2 वाले प्रारूप को एक नए 15 साल की शिक्षा प्रणाली में बदल देने मात्र से हमलोग देश में जिस तरह शिक्षा दे रहे हैं उसका तरीका बदल जाएगा ?
उ.- यदि उद्देश देखें तो यह प्राथमिक और उच्च शिक्षा दोनों के लिए पूरी तरह से बदलाव लाने वाली नीति है. इसने कई क्षेत्रों को विस्तार से कवर किया है. नए क्षेत्र, और पहले सीखने की शुरुआत नई शिक्षा नीति का हिस्सा बना है. यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि अब बुनियादी शिक्षा पर ध्यान होगा, जिसके लिए हम लोग संघर्ष कर रहे थे. लेकिन, इसमें कुछ कड़ियां छूट भी गई हैं. उदाहरण के तौर पर इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इसे कैसे हासिल कर पाएंगे. हम शिक्षा तक शत प्रतिशत बच्चों की पहुंच की बात तो करते हैं लेकिन कैसे होगा उसका रास्ता नहीं बताया गया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

प्र.- कुछ आलोचकों की दलील है कि प्राकृतिक संख्या की शुरुआत एक से होती है इसलिए स्कूलिंग व्यवस्था कक्षा एक से होनी चाहिए, लेकिन निजी स्कूलों ने प्रारंभिक शिक्षा का व्यावसायीकरण करने के लिए प्रेप और बालवाड़ी शुरू कर दिया है. इसलिए प्रेप-एजुकेशन को इस नीति में शामिल करने पर आलोचना भी हो रही है.
उ.- सेव द चिड्रेन में हमारे, और भी कई शिक्षाविदों, सहयोगियों और साझेदारों का मानना है कि यह एक अच्छा प्रयास है, जिसमें आरंभिक शिक्षा को स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया गया है. क्योंकि यह बच्चों को स्कूल जाने के लिए अधिक तत्परता की बात करता है. हमारे काम का एक प्रमुख क्षेत्र स्कूल के लिए तैयार करना है. आंगनवाड़ी और प्रेप स्कूलों के पूरे विचार का मकसद ही बच्चों के स्कूल के लिए तैयार करना है.

दूसरा क्षेत्र है कि क्या स्कूल और व्यवस्था उन बच्चों के स्वागत के लिए तैयार हैं क्योंकि प्रेप स्कूलों में क्या होता है कि यह मुक्त होता है, प्राकृतिक तरह की व्यवस्था होती है और बच्चों की बहुत अधिक देखभाल की जाती है. जब एक बच्चा 10 गुना 10 वर्ग फीट के कमरे में होता है और जब वह बड़े स्कूल भवन में जाता है और वहां ऐसे शिक्षक मिलते हैं जो उनसे दूरी बनाकर रखते हैं, यह एक मुद्दा है.

प्र. यह नीति बुनियादी शिक्षा और गिनती की बात करती है. कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि पढ़ना-लिखना और मूल अंकगणित बहुत महत्वपूर्ण है और यदि बच्चा सीख लेता है तो वह जीवन में सफल हो सकता है. क्या आप इस बुनियादी शिक्षा के बारे में विस्तार से बताएंगी?
उ- बुनियादी शिक्षा प्री-स्कूल का विस्तार है. आप सीखने के तरीके पढ़ाते हैं, इसका अभ्यास कराते हैं. हमलोग प्री-स्कूल में पढ़ने और लिखने की बात नहीं करते. बुनियादी शिक्षा को शामिल करना गणित में इसके परिणामस्वरूप मिली शिक्षा का एक विस्तार होना चाहिए. इसे हम सीखने के तैयार सामान्य दृष्टिकोण कहते हैं जो गणित में इसके परिणामस्वरूप प्राप्त शिक्षा पर आधारित है. हमलोग इसके लिए संघर्ष करते रहे हैं. हमारे लिए यह एक स्वागत योग्य बदलाव है.

प्र.- भारतीय शिक्षा व्यवस्था की इस बात की आलोचना की जाती रही है कि इसमें चीजों को याद रखने और रटने पर ध्यान रहता है, जबकि अन्य विकसित देशों में ध्यान गहन सोच और बच्चों को चीजों के बारे में सवाल करने के बारे में सिखाने पर दिया जाता है. क्या इसे नई नीति में शामिल किया गया है?
उ.- इसी को गणित में परिणाम स्वरूप पढ़ने-लिखने की आई योग्यता कहा जाता है. इरादा नेक है, लेकिन मैं फिर पूछूंगी कि इसके लिए निवेश कहां है, इसके लिए पैसा कहां है? हम लोग ईडी-टेक, निगरानी और निजी स्कूलों के लिए अधिनियम की बात कर रहे हैं. सैद्धांतिक रूप से यह अच्छा है लेकिन हम इंतजार करके देखेंगे कि अमल के लिए कैसे आगे बढ़ा जा रहा है.

प्र. शिक्षकों की शिक्षा पर अधिक जोर है. दो साल की बीएड डिग्री चार साल से बदल दी जाएगी. क्या यह अच्छा कदम होगा?
उ. यह बहुत महत्वपूर्ण है. यहां तक कि इसके पहले की नीति में भी हमलोगों ने शिक्षकों के सतत पेशेवर विकास की बात की लेकिन कितने शिक्षकों ने पेशेवर प्रशिक्षण पाया? केवल 14-15 प्रतिशत. मुझे बहुत उम्मीद है कि शिक्षकों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से स्कूल के स्तर पर अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित होगी. इस बारे में हमारे बजट में बात होनी चाहिए.

प्र. – एएसईआर और एनएएस दोनों के सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई है कि बच्चों की कक्षा और ज्ञान बेमेल है. वह कक्षा के अनुरूप नहीं है. क्या नई नीति इस असंतुलन को ठीक करने में सक्षम होगी?
उ.- इरादा सही है. मसौदा सही है, लेकिन यह कैसे होगा इसका रोडमैप गायब है. हमारा ध्यान इसी पर केंद्रित होना चाहिए कि इस पर अमल कैसे करने जा रहे हैं? क्योंकि हमलोगों ने नए क्षेत्रों को जोड़ा है, इसमें तकनीक की बात कही गई है, जिसमें मुख्य रूप से पूंजी की जरूरत है.

इस नीति में कोविड का संदर्भ शामिल किया जाना चाहिए था क्योंकि हमलोग कोविड की वजह से कई साल पीछे चले गए हैं. नीति में कुछ ऐसी योजना होनी चाहिए कि हमलोग कोविड के प्रभाव से कैसे उबरेंगे. यह भी इसमें नहीं है. स्कूल की सुरक्षा और उसके लचीलेपन पर भी कुछ नहीं है. आज कोविड है, कल सार्स या एच5एन1 या कोई अन्य आपदा आ सकती है लेकिन इसके लिए योजना कहां है? हमलोग अपने स्कूल को और अधिक लचीला कैसे बनाने जा रहे हैं? हमलोग आपातकाल के दौरान पढ़ाई के एक दिन का भी नुकसान नहीं होने का प्रचार करते हैं लेकिन नीति में आपातकाल के संदर्भ में कहां प्रावधान है?

प्र. आपने निवेश की कमी की बात की. क्या इसके साथ ही लाइसेंस राज को दूर किया जाना चाहिए? क्या किसी के लिए भी यह खुला होना चाहिए कि आए और शिक्षा क्षेत्र में निवेश करे?
उ.- यह देश और सरकार की जिम्मेदारी है. मैं निवेश लाने के विचार के खिलाफ नहीं हूं लेकिन यह किसी भी सरकार का संवैधानिक दायित्व है और इसका पालन किया जाना चाहिए. मैं शिक्षा में सरकारी निवेश और निजी क्षेत्र के नियामक दिशा-निर्देश के लिए प्रचार करूंगी, चाहे वह फीस हो या निजी स्कूलों में वंचित समाज के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा हो. नीति में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) का पूरा उल्लेख ही गायब है.

प्र.- नीति में उन छात्रों के लिए जो किसी कारण से पढ़ाई छोड़ देते हैं उनके लिए कई बार पढ़ाई छोड़ने का विकल्प है. आप इसे किस तरह देखती हैं?
उ. – यह बहुत मददगार होने जा रहा है. एक मौका देने और अपनी पढ़ाई का विषय चुनने का विचार महत्वपूर्ण है. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के स्तर पर विज्ञान का कोई छात्र भी कला विषय का चयन कर सकता है. यह बहुत अच्छा कदम है और यह दुनिया में बच्चे जैसे पढ़ रहे हैं उनके साथ खुद को पंक्तिबद्ध करने जैसा है.

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