देहरादून : वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण न सिर्फ देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर भी इसका व्यापक प्रभाव दिखा है. कोरोना के चलते उत्तराखंड के भी सभी स्कूल बंद हैं, हालांकि शिक्षा बाधित न हो इसके लिए राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान वर्चुअल क्लासेस की शुरुआत की है, लेकिन पहाड़ों पर यह वर्चुअल क्लास 'जी का जंजाल' बनी हुई हैं. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या नेटवर्क की है.
यहां रहने वाले लोग मनरेगा, खेती आदि से जुड़े हुए हैं और आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं है कि स्मार्टफोन खरीद सकें. पहाड़ों पर वर्चुअल क्लासेस की क्या स्थिति है इसको परखने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर हकीकत को जाना. सबसे पहले ईटीवी भारत की टीम राजधानी देहरादून से करीब 490 किलोमीटर दूर प्राकृतिक आपदा के प्रति संवेदनशील और जोन फाइव में आने वाले पिथौरागढ़ जिले में पहुंची. यहां नेटवर्क मिलना इतना मुश्किल है कि विभागों के अफसर तक नेपाली सिम प्रयोग करते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऑनलाइन क्लासेज कैसी चल रही होंगी.
पिथौरागढ़ के जिला शिक्षा अधिकारी ए. के. जुकरिया बताते हैं कि उत्तराखंड में प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में छात्रों की कुल संख्या 7,71,857 है. साक्षरता की बात करें तो राज्य की दर 78.82 प्रतिशत है. इसमें पुरुषों की साक्षरता दर 87.40 प्रतिशत है तो सिर्फ 70 फीसदी महिलाएं ही साक्षर हैं. देहरादून जिला सबसे अधिक साक्षर है तो ऊधम सिंह नगर जिला साक्षरता में सबसे पीछे है. रुद्रप्रयाग जिले में पुरुष सबसे ज्यादा साक्षर हैं जबकि हरिद्वार के पुरुष साक्षरता में सबसे पीछे हैं. महिलाओं की साक्षरता में देहरादून जिला अव्वल है जबकि सीमांत जिला उत्तरकाशी महिलाओं की साक्षरता में फिसड्डी है. अगर पूरे देश में उत्तराखंड की साक्षरता की बात करें तो राज्य का स्थान 17वां है. जिला शिक्षा अधिकारी ए. के. जुकरिया ने खुद माना कि 60 फीसदी बच्चों को ही ऑनलाइन क्लासेज का लाभ मिल पा रहा है. यानी 40 फीसदी बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का लाभ नहीं ले पा रहे हैं.
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी नरेश कुमार हल्दियानी ने कहा कि चमोली जिले का भी कुछ ऐसा ही हाल है. जनपद के दशोली विकासखंड की निजमुला घाटी के आधे दर्जन से अधिक गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं पहुंच पाया है. इराणी गांव पहुंचने के लिए तो जिला मुख्यालय से 47 (सैंतालिस) किलोमीटर गाड़ी से और पांच किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है. घाटी के दुर्मी, पगना, इराणी, झींझी सहित अन्य गांवों में भी नेटवर्क दूर की कौड़ी है. बीएसए का कहना है कि जहां ऑनलाइन सुविधा नहीं मिल पा रही है वहां छात्रों को ऑफलाइन नोट्स बनाकर दिए जा रहे हैं.
उत्तरकाशी जिले के जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान बताते हैं कि उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से 45 किमी दूर भटवाड़ी ब्लॉक के कुज्जन गांव के छात्र-छात्राओं को क्लास के लिए गांव से 2 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. क्योंकि यहां भी मोबाइल के सिग्नल नहीं आते. यह स्थिति जनपद के भटवाड़ी, नौगांव और मोरी, पुरोला विकासखंड के कई गांवों की भी है. हालांकि डीएम ने टेलीकॉम कंपनियों से संचार व्यवस्था ठीक करने को कहा है.
ये तो रही पहाड़ी क्षेत्रों की बात. अगर राजधानी देहरादून का रुख करें तो पाएंगे कि यहां भी हालात कुछ ज्यादा अच्छे नहीं हैं. हमारी टीम मुख्यमंत्री आवास के सबसे नजदीक पड़ने वाले गांव गजवाड़ी और गजियावाला पहुंची. यह इलाका सीएम आवास और राजभवन से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां भी बच्चों और अभिभावकों ने नेटवर्क को बड़ी समस्या बताया.
कोरोना महामारी के इस दौर में ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से क्लासरूम को घर तक पहुंचाने की कवायद तो हो रही है लेकिन गांव तो छोड़िए जब उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में नेटवर्क और इंटरनेट खस्ता हाल हैं तो डिजिटल भारत का राग अलापने का कोई फायदा नजर आता नहीं.