पश्चिम चंपारण: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित थरुहट क्षेत्र में हस्तकरघा उद्योग से अनेक महिलाएं और युवतियां जुड़ी हुई हैं. जिसको देखते हुए सरकार ने इस उद्योग को बढ़ावा देना शुरू किया था. इसके पीछे सरकार का एकमात्र उद्देश्य हस्तकरघा उद्योग से महिलाओं को सशक्त करना और उन्हें बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराना रहा है. लेकिन सरकार की यह पहल आरंभ होने के साथ ही बैकफुट पर चली गई.
मदद के अभाव में लगा ताला
देवरिया तरुअनवा पंचायत में एक टायसन भवन बनाकर सरकार ने वर्ष 1998 में हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की थी. यहां महिलाओं को बुनकरी के गुण सिखाये जाते थे. साथ हीं इस हस्तकरघा केंद्र पर शॉल, बेडशीट, स्वेटर, तौलिया और पत्तों से खाना खाने के प्लेट भी बनाय जाते थे. महिलाओं द्वारा कुशलता से बनाये गए इन सामग्रियों की डिमांड भी बहुत थी और दूर दराज के क्षेत्रों में इसकी सप्लाई भी होती थी. लेकिन तीन चार साल चलाने के बाद जब सरकार ने फंड नहीं दिया तो इस केंद्र पर ताला लग गया.
मशीनें अब खा रही हैं जंग
हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की सचिव शांति देवी का कहना है कि हमलोग कोई पूंजीपति ग्रामीण नही हैं. सरकार ने जब इस केंद्र की नींव डाली तो हम ग्रामीणों को काफी खुशी हुई थी की गांव की महिलाएं और युवतियों को रोजगार मिलेगा. वो आर्थिक समपन्न होंगीं. लेकिन सरकार ने फंड नहीं दिया तो इसे बंद करना पड़ा. यहीं से प्रशिक्षण ले कर अनेक महिलाएं कुछ जगहों पे अपने खर्च से आज भी हस्तकरघा उद्योग को जीवित रखी हुई हैं. वहीं अन्य ग्रामीणों का कहना है कि हस्तकरघा से खाने के प्लेट सहित अनेक प्रकार के वस्त्रों की बुनाई होती थी. सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिस वजह से मशीनें अब जंग खा रही हैं.
कृषि के बाद एक महत्वपूर्ण लघु उद्योग
हस्तकरघा उद्योग देश का प्राचीन कुटिर उद्योग है. कृषि के बाद हस्तकरघा को एक महत्वपूर्ण रोजगार पैदा करने वाला उद्योग माना जाता है. लेकिन बुनकरों के हाथ की कारीगरी की शोभा बढ़ाने वाला यह उद्योग सरकारी उदासीनता की वजह से मरणासन्न हालत में पहुंच चुका है, जिसको फिर से जिंदा करने की जरूरत है.