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एक तरफ वुमेन इम्पावरमेंट पर जोर, दूसरी तरफ पश्चिम चंपारण हस्तकरघा उद्योग तोड़ रहा दम - fund

महिलाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने और उनको आत्मनिर्भर बनाने वाला एकमात्र हस्तकरघा उद्योग दम तोड़ता नजर आ रहा है. थरुहट बहुल इलाके की महिलाओं के लिए गरीबी से लड़ने का एकमात्र अस्त्र साबित होने वाला यह लघु उद्योग सरकारी उदासीनता की वजह से आज बंद है.

पश्चिम चंपारण
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Published : Jul 23, 2019, 5:02 PM IST

पश्चिम चंपारण: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित थरुहट क्षेत्र में हस्तकरघा उद्योग से अनेक महिलाएं और युवतियां जुड़ी हुई हैं. जिसको देखते हुए सरकार ने इस उद्योग को बढ़ावा देना शुरू किया था. इसके पीछे सरकार का एकमात्र उद्देश्य हस्तकरघा उद्योग से महिलाओं को सशक्त करना और उन्हें बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराना रहा है. लेकिन सरकार की यह पहल आरंभ होने के साथ ही बैकफुट पर चली गई.

मदद के अभाव में लगा ताला
देवरिया तरुअनवा पंचायत में एक टायसन भवन बनाकर सरकार ने वर्ष 1998 में हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की थी. यहां महिलाओं को बुनकरी के गुण सिखाये जाते थे. साथ हीं इस हस्तकरघा केंद्र पर शॉल, बेडशीट, स्वेटर, तौलिया और पत्तों से खाना खाने के प्लेट भी बनाय जाते थे. महिलाओं द्वारा कुशलता से बनाये गए इन सामग्रियों की डिमांड भी बहुत थी और दूर दराज के क्षेत्रों में इसकी सप्लाई भी होती थी. लेकिन तीन चार साल चलाने के बाद जब सरकार ने फंड नहीं दिया तो इस केंद्र पर ताला लग गया.

हस्तकरघा उद्योग

मशीनें अब खा रही हैं जंग
हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की सचिव शांति देवी का कहना है कि हमलोग कोई पूंजीपति ग्रामीण नही हैं. सरकार ने जब इस केंद्र की नींव डाली तो हम ग्रामीणों को काफी खुशी हुई थी की गांव की महिलाएं और युवतियों को रोजगार मिलेगा. वो आर्थिक समपन्न होंगीं. लेकिन सरकार ने फंड नहीं दिया तो इसे बंद करना पड़ा. यहीं से प्रशिक्षण ले कर अनेक महिलाएं कुछ जगहों पे अपने खर्च से आज भी हस्तकरघा उद्योग को जीवित रखी हुई हैं. वहीं अन्य ग्रामीणों का कहना है कि हस्तकरघा से खाने के प्लेट सहित अनेक प्रकार के वस्त्रों की बुनाई होती थी. सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिस वजह से मशीनें अब जंग खा रही हैं.

कृषि के बाद एक महत्वपूर्ण लघु उद्योग
हस्तकरघा उद्योग देश का प्राचीन कुटिर उद्योग है. कृषि के बाद हस्तकरघा को एक महत्वपूर्ण रोजगार पैदा करने वाला उद्योग माना जाता है. लेकिन बुनकरों के हाथ की कारीगरी की शोभा बढ़ाने वाला यह उद्योग सरकारी उदासीनता की वजह से मरणासन्न हालत में पहुंच चुका है, जिसको फिर से जिंदा करने की जरूरत है.

पश्चिम चंपारण: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित थरुहट क्षेत्र में हस्तकरघा उद्योग से अनेक महिलाएं और युवतियां जुड़ी हुई हैं. जिसको देखते हुए सरकार ने इस उद्योग को बढ़ावा देना शुरू किया था. इसके पीछे सरकार का एकमात्र उद्देश्य हस्तकरघा उद्योग से महिलाओं को सशक्त करना और उन्हें बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराना रहा है. लेकिन सरकार की यह पहल आरंभ होने के साथ ही बैकफुट पर चली गई.

मदद के अभाव में लगा ताला
देवरिया तरुअनवा पंचायत में एक टायसन भवन बनाकर सरकार ने वर्ष 1998 में हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की थी. यहां महिलाओं को बुनकरी के गुण सिखाये जाते थे. साथ हीं इस हस्तकरघा केंद्र पर शॉल, बेडशीट, स्वेटर, तौलिया और पत्तों से खाना खाने के प्लेट भी बनाय जाते थे. महिलाओं द्वारा कुशलता से बनाये गए इन सामग्रियों की डिमांड भी बहुत थी और दूर दराज के क्षेत्रों में इसकी सप्लाई भी होती थी. लेकिन तीन चार साल चलाने के बाद जब सरकार ने फंड नहीं दिया तो इस केंद्र पर ताला लग गया.

हस्तकरघा उद्योग

मशीनें अब खा रही हैं जंग
हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की सचिव शांति देवी का कहना है कि हमलोग कोई पूंजीपति ग्रामीण नही हैं. सरकार ने जब इस केंद्र की नींव डाली तो हम ग्रामीणों को काफी खुशी हुई थी की गांव की महिलाएं और युवतियों को रोजगार मिलेगा. वो आर्थिक समपन्न होंगीं. लेकिन सरकार ने फंड नहीं दिया तो इसे बंद करना पड़ा. यहीं से प्रशिक्षण ले कर अनेक महिलाएं कुछ जगहों पे अपने खर्च से आज भी हस्तकरघा उद्योग को जीवित रखी हुई हैं. वहीं अन्य ग्रामीणों का कहना है कि हस्तकरघा से खाने के प्लेट सहित अनेक प्रकार के वस्त्रों की बुनाई होती थी. सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिस वजह से मशीनें अब जंग खा रही हैं.

कृषि के बाद एक महत्वपूर्ण लघु उद्योग
हस्तकरघा उद्योग देश का प्राचीन कुटिर उद्योग है. कृषि के बाद हस्तकरघा को एक महत्वपूर्ण रोजगार पैदा करने वाला उद्योग माना जाता है. लेकिन बुनकरों के हाथ की कारीगरी की शोभा बढ़ाने वाला यह उद्योग सरकारी उदासीनता की वजह से मरणासन्न हालत में पहुंच चुका है, जिसको फिर से जिंदा करने की जरूरत है.

Intro:युवतियों को बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने और उनको स्वावलम्बी बनाने वाला एकमात्र हस्तकरघा कुटीर उद्योग पश्चिम चंपारण में दम तोड़ता नजर आ रहा। थरुहट बहुल इलाके की महिलाओं के लिए गरीबी से लड़ने का एक अस्त्र साबित होने वाला यह लघु उद्योग सरकारी उदासीनता की वजह से बंद होता जा रहा है।


Body:पश्चिम चंपारण के बगहा 2 प्रखंड स्थित थरुहट क्षेत्र में हस्तकरघा उद्योग से अनेक महिलाएं और युवतियां जुड़ी हुई हैं जिसको देखते हुए सरकार ने इस उद्योग को बढ़ावा देना शुरू किया। सरकार का एकमात्र उद्देश्य था कि हस्तकरघा उद्योग से जहाँ महिला सशक्तिकरण को बल मिलेगा वहीं बड़े पैमाने पर रोजगार भी पैदा होगा। इसी के मद्देनजर नक्सल प्रभावित क्षेत्र थरुहट में सरकार ने हस्तकरघा उद्योग को बढ़ावा देने की पहल शुरू की। लेकिन सरकार की यह पहल आरंभ होने के साथ हीं बैकफुट पर चली गई।
देवरिया तरुअनवा पंचायत में एक टायसन भवन बनाकर सरकार ने वर्ष 1998 में हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की। यहाँ महिलाओं को बुनकरी के गुण सिखाये जाते थे साथ हीं इस हस्तकरघा केंद्र पर शाल, बेडशीट, स्वेटर, तौलिया और पत्तों से खाना खाने के प्लेट भी बनते थे । महिलाओं द्वारा कुशलता से बनाये गए इन सामग्रियों की डिमांड भी बहुत थी और दूर दराज के क्षेत्रों में इसकी सप्लाई भी होती थी। लेकिन तीन चार साल चलाने के बाद जब सरकार ने फंड नही दिया तो इस केंद्र पर ताला लग गया।
हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र की सचिव शांति देवी का कहना है कि हमलोग कोई पूंजीपति ग्रामीण नही हैं। सरकार ने जब इस केंद्र की नींव डाली तो हम ग्रामीण काफी खुश हुए की गांव के युवतियों को रोजगार मिलेगा और आर्थिक समपन्नता होगी, लेकिन सरकार ने फंड नही दिया तो इसे बंद करना पड़ा। यहीं से प्रशिक्षण प्राप्त कर अनेक महिलाएं कुछ जगहों अपने खर्च से आज भी हस्तकरघा उद्योग को जीवित रखी हुई हैं। वहीं अन्य ग्रामीणों का कहना है कि हस्तकरघा से खाने के प्लेट सहित अनेक प्रकार के वस्त्रों की बुनाई होती थी । सरकार ने ध्यान नही दिया जिस वजह से मशीनें अब जंग खा रही हैं।
बाइट- शांति देवी, सचिव, हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र
बाइट- जयंती देवी, सहयोगी , हस्तकरघा प्रशिक्षण केंद्र
बाइट- प्रदीप पासवान, ग्रामीण।


Conclusion:हस्तकरघा उद्योग देश का प्राचीन कुटिर उद्योग है। कृषि के बाद हस्तकरघा एक महत्वपूर्ण कुटिर उद्योग व रोजगार पैदा करने वाला उद्योग माना जाता है। लेकिन बुनकरों के हाथ की कारीगरी का शोभा बढ़ाने वाला यह उद्योग सरकारी उदासीनता की वजह से मरणासन्न हालत में पहुच चुका है, जिसको पुनः जिंदा करने की जरूरत है।
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