ETV Bharat / state

इस गांव के लोग घर-बार छोड़ एक दिन के लिए जाते हैं वनवास, जानिए क्यों

गांव के कुछ लोग बताते हैं कि यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आईं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर लोग वनवास को जाएं.

author img

By

Published : May 13, 2019, 1:02 PM IST

Updated : May 13, 2019, 9:57 PM IST

जंगल में पहुंचे गांव के लोग

बेतियाः बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा अनुमंडल के नौरंगिया गांव के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं. वैशाख की नवमी तिथि को लोग ऐसा करते हुए 12 घंटे के लिए गांव के बाहर जंगल चले जाते हैं. यहां मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से दैवीय प्रकोप से निजात मिलती है.

थारू समुदाय बाहुल्य इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा जीवंत है. इस प्रथा के चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी छोड़ने की हिम्मत नहीं करते. लोग जंगल में जाकर वहीं, पूरा दिन बिताते हैं. आधुनिकता के इस दौर में इस गांव के लोग आज भी अंधविश्वास की दुनिया में जी रहे हैं.

villagers in forest
जंगल में रुके ग्रामीण

दैवीय प्रकोप के कारण ऐसा करते हैं
गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह दैवीय प्रकोप से निजात पाना है. वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी. गांव में अक्सर आग लगती थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप रहता था. हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था. लिहाजा, इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना कर ऐसा करने का फरमान सुनाया था.

एक अन्य कहानी भी...
वहीं, गांव के कुछ लोग बताते हैं कि यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आईं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर लोग वनवास को जाएं. इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई जो आज भी कायम है.

12 घंटों के लिए वनवास

यहां रुकते हैं लोग
नवमी के दिन लोग घर खाली कर वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं. यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. वहीं, 12 घंटे यहीं गुजारने के बाद वापस घर आते हैं. हैरानी की बात तो ये है कि आज भी इस मान्यता को लोग उत्सव की तरह मना रहे हैं.

उत्सव जैसा रहता है माहौल
इस पूरे मामले में ग्रामीणों ने बताया कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते, पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती. लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परम्परा किसी उत्सव से कम नहीं है. इस दिन जंगल में पिकनिक जैसा माहौल रहता है. मेला लगता है. वहीं, पूजा करने के बाद रात को सब वापस आते हैं.

(फिलहाल, इस गांव की इस मान्यता को देखने के बाद यह कहना गलत ना होगा कि अधुनिकता के इस दौर में मान्यता से परे कुछ भी नहीं. अंधविश्वास की बेड़ियां आज भी लोगों को जकड़े हुए हैं. ईटीवी भारत ऐसे किसी भी अंधविश्वास का कोई समर्थन नहीं करता है. )

बेतियाः बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा अनुमंडल के नौरंगिया गांव के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं. वैशाख की नवमी तिथि को लोग ऐसा करते हुए 12 घंटे के लिए गांव के बाहर जंगल चले जाते हैं. यहां मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से दैवीय प्रकोप से निजात मिलती है.

थारू समुदाय बाहुल्य इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा जीवंत है. इस प्रथा के चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी छोड़ने की हिम्मत नहीं करते. लोग जंगल में जाकर वहीं, पूरा दिन बिताते हैं. आधुनिकता के इस दौर में इस गांव के लोग आज भी अंधविश्वास की दुनिया में जी रहे हैं.

villagers in forest
जंगल में रुके ग्रामीण

दैवीय प्रकोप के कारण ऐसा करते हैं
गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह दैवीय प्रकोप से निजात पाना है. वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी. गांव में अक्सर आग लगती थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप रहता था. हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था. लिहाजा, इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना कर ऐसा करने का फरमान सुनाया था.

एक अन्य कहानी भी...
वहीं, गांव के कुछ लोग बताते हैं कि यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आईं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर लोग वनवास को जाएं. इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई जो आज भी कायम है.

12 घंटों के लिए वनवास

यहां रुकते हैं लोग
नवमी के दिन लोग घर खाली कर वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं. यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. वहीं, 12 घंटे यहीं गुजारने के बाद वापस घर आते हैं. हैरानी की बात तो ये है कि आज भी इस मान्यता को लोग उत्सव की तरह मना रहे हैं.

उत्सव जैसा रहता है माहौल
इस पूरे मामले में ग्रामीणों ने बताया कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते, पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती. लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परम्परा किसी उत्सव से कम नहीं है. इस दिन जंगल में पिकनिक जैसा माहौल रहता है. मेला लगता है. वहीं, पूजा करने के बाद रात को सब वापस आते हैं.

(फिलहाल, इस गांव की इस मान्यता को देखने के बाद यह कहना गलत ना होगा कि अधुनिकता के इस दौर में मान्यता से परे कुछ भी नहीं. अंधविश्वास की बेड़ियां आज भी लोगों को जकड़े हुए हैं. ईटीवी भारत ऐसे किसी भी अंधविश्वास का कोई समर्थन नहीं करता है. )

Intro:बगहा अनुमंडल स्थित नौरंगिया गांव के थारू समुदाय की एक ऐसी प्रथा है जिसके तहत पुरा गांव खाली कर जंगल मे में ही दिन गुजारते हैं। बैशाख के नवमी के दिन गांव का एक एक घर खाली कर दिया जाता है और वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं, यहीं पर इनका खाना पीना होता है और शाम को घर लौटते हैं।


Body:वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना अंतर्गत नौरंगिया गांव के लोगों की एक मान्यता है कि इस दिन गांव में कोई नही रहेगा। इसलिए उस गांव के सभी घरों के पूरे सदस्य भजनी कुट्टी में चले जाते हैं और सुबह से शाम तक वहीं रहते हैं। भजनी कुट्टी स्थित माँ दुर्गा की पूजा थारू समाज के लोग आज बैसाख नवमी के दिन पूरे श्रद्धा से करते हैं। उसके बाद वहीं पर मांस मछली बनाते खाते हैं और पूरा दिन पिकनिक मना शाम को घर लौटते हैं।
ऐसा माना जाता है कि थारू समाज के पूर्वजों के समय नौरंगिया पंचायत व उसके आस पास के गांवों में हमेशा आग लगती थी और चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप रहता था। ऐसे में भजनी कुट्टी पर रहने वाले सन्त परमहंस ने गांव वालों को बताया कि प्रत्येक वैशाख की नवमी को गांव खाली कर भजनी कुट्टी स्थित माँ दुर्गा के दरबार मे आकर दिन गुजारने पर यह प्रकोप खत्म हो जाएगा। तभी से इस पंचायत क्षेत्र और आस पास के गांव के लोग अपना घर खाली कर बिना ताला या दरवाजा लगाए भजनी कुट्टी आ जाते हैं और यही पर पूजा करने के साथ साथ खाना बनाते खाते हैं।


Conclusion:यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। इस दिन छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक कोई भी गांव में नही रहता। इनका कहना है कि ये घर पर ताला भी नही मारते, पूरा घर बिल्कुल खुला रहता है। और चोरी भी नही होती। थारू समाज के लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परम्परा किसी उत्सव से कम नही होता है। इस दिन ये दिन भर यही पर पिकनिक जैसे माहौल में समय बिताते हैं और मेला का आनंद लेते हैं।
Last Updated : May 13, 2019, 9:57 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.